पुरुषोत्तम अग्रवाल

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
पुरुषोत्तम अग्रवाल
Purushottam Agrawal.jpg
पुरुषोत्तम अग्रवाल, 2012
जन्मसाँचा:br separated entries
मृत्युसाँचा:br separated entries
मृत्यु स्थान/समाधिसाँचा:br separated entries
व्यवसायप्रोफेसर, सदस्य संघ लोक सेवा आयोग, आलोचक, कवि, चिन्तक, कथाकार
उल्लेखनीय सम्मानदेवी शंकर अवस्थी सम्मान, मुकुटधर पाण्डेय सम्मान, प्रथम राजकमल कृति सम्मान
जालस्थल
http://www.purushottamagrawal.com/

साँचा:template otherसाँचा:main other

पुरुषोत्तम अग्रवाल हिंदी के एक प्रमुख आलोचक, कवि, चिन्तक और कथाकार हैं।

परिचय

इनका जन्म 25 अगस्त 1955 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। इन्होंने १९७४ में महारानी लक्ष्मी बाई कॉलेज, ग्वालियर, मध्य प्रदेश से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. १९७७ में जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर, मध्य प्रदेश से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के बाद भारतीय भाषा केंद्र, भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन संस्थान, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय[1], नई दिल्ली से हिंदी में एम॰ए॰(हिंदी साहित्य 1979) और एम.फिल की उपाधियाँ प्राप्त कीं. अग्रवाल को १९८५ में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली ने हिंदी के प्रसिद्द आलोचक नामवर सिंह के निर्देशन में 'कबीर की भक्ति का सामाजिक अर्थ' विषय पर पीएच.डी की उपाधि प्रदान की.

1982-90 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में अध्यापन के बाद पुरुषोत्तम अग्रवाल की नियुक्ति उसी भारतीय भाषा केंद्र में एसोशिएट प्रोफ़ेसर के रूप में हुई जहाँ से इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। २००३ में ये यहीं पर प्रोफेसर और केंद्र के अध्यक्ष बने. प्रतिभाशाली प्राध्यापक के रूप में वे विद्यार्थियों में बहुत लोकप्रिय रहे. २००५ से २००७ तक राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान परिषद् (एनसीईआरटी) की हिंदी पाठ्यक्रम निर्माण समिति (छठवीं कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक के लिए) के प्रमुख सलाहकार भी रहे.

पुरुषोत्तम अग्रवाल कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, यूनाइटेड किंगडम के फैकल्टी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में ब्रिटिश अकैडमी विजिटिंग प्रोफेसर रहे. २००२ में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ही वोल्फसन कॉलेज के फेलो के रूप में कार्य किया। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में ‘वर्तमान भारतीय राजनीति में अस्मिता विमर्श’ विषय पर दो संगोष्ठियों का संचालन किया। मई से जुलाई, २००२ के बीच वे नेशनल कॉलेज ऑफ मैक्सिको, मैक्सिको सिटी में विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे. भारतीय इतिहास और संस्कृति के विभिन्न विषयों पर चार संगोष्ठियों का संचालन किया। नवंबर-दिसंबर, २००४ के दौरान अमरीका की अपनी अकादमिक यात्रा में इन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयार्क; इमोरी विश्वविद्यालय, अटलांटा; राइस विश्वविद्यालय, हॉस्टन में विभिन्न विषयों पर भाषण दिए. अमेरिकन एकेडमी ऑफ रिलीजन के निमंत्रण पर अटलांटा में कबीर की भक्ति संवेदना पर इंटरनेशनल एसोसियेशन ऑफ हिस्टोरियंस ऑफ रिलीजंस की वार्षिक सभा में निबंध पाठ. इमोरी विश्वविद्यालय के हेल इंस्टीट्युट ने इनके सम्मान में लंच पर एक सभा का आयोजन किया। इस सभा में पुरुषोत्तम अग्रवाल ने चुनाव के बाद के भारतीय परिदृश्य पर चर्चा की.इसके अतिरिक्त हाइडेलबर्ग, फ्रैंकफर्ट, बैंकाक, लन्दन, पेरिस, कोलम्बो, येरेवान, अस्त्राखान की अकादमिक, व्याख्यान और शोध यात्रायें कीं.

२ जुलाई २००७ को भारत सरकार ने पुरुषोत्तम अग्रवाल को संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य मनोनीत किया। तब से लेकर अब तक वे इस पद पर बने हुए हैं।

इस दौरान इनकी छवि एक लोक बुद्धिजीवी की बनी. सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विषयों पर टी.वी. पर बहसों से वे देशभर में लोकप्रिय हुए. आज एक लोक बुद्धिजीवी के रूप में प्रोफेसर अग्रवाल का महत्त्व निर्विवाद है।

अकादमिक योगदान

अग्रवाल ने कई पुस्तकों का लेखन किया है, जिनमें 'संस्कृति: वर्चस्व और प्रतिरोध'[१], 'तीसरा रुख','विचार का अनंत', 'शिवदान सिंह चौहान', 'निज ब्रह्म विचार', 'कबीर: साखी और सबद', 'मजबूती का नाम महात्मा गाँधी' (गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नयी दिल्ली के वार्षिक भाषण का पुस्तकाकार प्रकशित रूप) 'अकथ कहानी प्रेम की: कबीर की कविता और उनका समय'(२००९) प्रमुख हैं। प्रो॰ अग्रवाल की प्रसिद्धि का आधार है: 'अकथ कहानी प्रेम की: कबीर की कविता और उनका समय'. इस पुस्तक ने अग्रवाल को दुनियाभर में कबीर के मर्मभेदी आलोचक के रूप में प्रसिद्ध कर दिया. कबीर पर अनगिनत पुस्तकें और लेख लिखे गए हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि हजारीप्रसाद द्विवेदी की पुस्तक 'कबीर' के बाद अग्रवाल की यह पुस्तक कबीर को नए ढंग से समझने में सबसे अधिक सहायक साबित होती है। पुरुषोत्तम अग्रवाल की पहचान भक्तिकाल, खासतौर पर कबीर के मर्मज्ञ आलोचक की है। शायद इसीलिए राजकमल प्रकाशन ने उन्हें सम्पूर्ण 'भक्ति श्रृंखला' का संपादक नियुक्त किया है।

पुरुषोत्तम अग्रवाल की छवि एक चिन्तक और आलोचक के रूप में है लेकिन इधर उन्होंने मूल्यवान रचनात्मक लेखन भी किया है। 2012 में उनका यात्रा-वृत्तान्त 'हिंदी सराय: अस्त्राखान वाया येरेवान' प्रकाशित हुआ। आजकल वे एक उपन्यास पर काम कर रहे हैं। इनकी एक कहानी - 'चेंग चुई' 2012 में प्रगतिशील बसुधा में, 'चौराहे पर पुतला' और 'पैरघंटी' 2013 नया ज्ञानोदय व 'शब्दांकन' में प्रकाशित हुई . एक फिल्म समीक्षक और स्तंभकार के रूप में भी पुरुषोत्तम अग्रवाल का काम महत्वपूर्ण है।2 नाटक और स्क्रिप्ट लेखन, वृत्तचित्र निर्माण और फिल्म समीक्षा में भी गहरी दिलचस्पी.

संपादन

1. 'हिंदी नई चाल में ढली' (पुस्तक) का संपादन.

2. 1983-84 के बीच उन्होंने साहित्येतर विषयों की चर्चित पत्रिका 'जिज्ञासा' का संपादन और प्रकाशन किया।

3. वर्तमान में राजकमल प्रकाशन की भक्ति श्रृंखला के संपादक हैं। इसके तहत अभी तक डेविड लोरेंजन की पुस्तक निर्गुण संतों के स्वप्न (अनुवाद : डॉ॰ धीरेन्द्र बहादुर सिंह) और डॉ॰ रमण सिन्हा की पुस्तक तुलसीदास : संगीत, चित्र..... का विस्तृत भूमिकाओं के साथ संपादन कर चुके हैं।

पुरस्कार-सम्मान

१. अपनी आलोचना पुस्तक "तीसरा रुख" के लिए १९९६ में देवी शंकर अवस्थी सम्मान से सम्मानित.

२. अपनी दूसरी आलोचना पुस्तक "संस्कृति: वर्चस्व और प्रतिरोध" के लिए १९९७ में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् के मुकुटधर पाण्डेय सम्मान से सम्मानित.

३. "अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय" के लिए २००९ में राजकमल प्रकाशन का १ लाख रुपये का प्रथम राजकमल प्रकाशन कृति सम्मान

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

बाहरी कड़ियाँ