संघीय शरियाई न्यायालय

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

संघीय शरियाई न्यायालय, पाकिस्तान की एक न्यायिक संस्थान है, जिसका कार्य यह जाँच व निर्धारित करना है की देश की विधि, शरिया का पालन करती है या नहीं। इस निकाय में कुल आठ मुसलमान न्यायाधीश होते हैं। जिसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल होते हैं। यह सभी न्यायाधीश, पाकिस्तान के राष्ट्रपति की अनुमोदन से नियुक्त किये जाते हैं। जिनका पाकिस्तान की उच्चतम न्यायालय या किसी भी प्रान्तीय न्यायालय के सेवानिवृत्त या सेवारत न्यायाधीश में से चुना जाना आवश्यक है। संघीय शरीयत अदालत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रियाज अहमद खान हैं।

कार्य व संयोजन

संघीय शरीयत न्यायालय के 8 न्यायाधीश में से 3 न्यायाधीशों का उलेमा होना आवश्यक है, जिसका का अध्ययन इस्लामिया और व्यवस्था का आलम होगा जिन्हें इस्लामी कानूनों और नियमों में अत्यधिक मूल्यांकन कौशल प्राप्त हो। इस अदालत के सभी न्यायाधीश 3 साल की अवधि के लिए तैनात किए जाते हैं। किसी भी न्यायाधीश की दूर तैनाती पाकिस्तान के राष्ट्रपति के विवेक पर बढ़ाया जा सकता है।

यह अदालत, अपने दम पर किसी भी नागरिक या पाकिस्तानी सरकार(संघीय या प्रांतीय) के अनुरोध पर किसी भी कानून को जाँचने का अधिकार रखती है। यह अधिकार इस बिंदु को परिभाषित करने के लिए उपलब्ध है कि कोई भी विचार या लागू कानून, शरीयत इस्लामी के खिलाफ तो नहीं है। संघीय शरई अदालत के फैसले के खिलाफ आवेदन पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत क प्लेट बेंच कार्यालय में दायर की जा सकती है। कानून की जाँच कर रहीं न्यायचौकी में 3 मुसलमान न्यायाधीश होते जो सर्वोच्च न्यायालय के सेवारत न्यायाधीश होते हैं और 2 को इस्लामी शिक्षा और शरीयत के उलेमा होना चाहिए। इन की तैनाती भी पाकिस्तान के राष्ट्रपति की मंजूरी से किया जाता है। अगर कोई भी लागू या लंबित कानून इस्लामी कानून के खिलाफ करार पाया जाए तो पाकिस्तान सरकार इस बात के लिये अनिवार्य है कि वह इस कानून में उचित परिवर्तन लाया और इस्लामी शरीयत के अनुसार, पुनः पारित करवाए, साथ ही प्रशासन, संशोधित इस्लामी शरीयत के सटीक कानून को लागू करने के लिए बाध्य होगी।

इस अदालत के अधिकार क्षेत्र में आपराधिक मामलों की सुनवाई भी शामिल है जो सीमा की श्रेणी में आते हैं। इस अदालत का फैसला किसी भी प्रांतीय न्यायालय के फैसले पर भी प्रभावित हो सकता है। सीमाओं से संबंधित किसी भी परीक्षण और पालन के लिए यह अदालत अपने कर्मचारियों निर्धारित करने का अधिकार भी रखती है।

विवाद

1980 में जब यह अदालत की स्थापना की गई थी, तब से यह अदालत कई बार आलोचना व विवाद का विशय बनती रही है, और कई अवसरों पर विवादास्पद भी रही है। इसे सैन्य सरकार में इस्लामीकरण के दावे में इस अदालत को आठवें संशोधन के द्वारा स्थापित किया गया था। विरोधियों के अनुसार यह अदालत समानांतर में स्थापित किया गया एक संस्थान है जो रियासत-ए पाकिस्तान की उच्च न्यायालयों के निर्णयों को प्रभावित कर, कई जटिलताओं का कारण बनता है, यहाँ तक कि यह अदालत संसद की संप्रभुता पर भी प्रभावित करने की क्षमता रखती है। इसके अलावा अदालत में न्यायाधीशों व सचिवों की नियुक्ति प्रक्रिया और न्यायाधीशों का कार्यकाल भी अक्सर प्रतिकूल चर्चा का केन्द्र रहा है। आलोचनाकारों के अनुसार अदालत के आधार और तैनाती प्रक्रिया किसी भी मामले में स्वतंत्र न्यायपालिका की निशानी नहीं है और अदालत के तहत होने वाले फैसलों पर संघ के प्रमुख अधिकारी प्रभावित हो सकते हैं। अतीत में प्रायः इस अदालत को संघीय अदालतों में अवांछित न्यायाधीशों को बहलाने के लिए भी इस्तेमाल होती रही है। इसके अलावा कई निर्णय जो अदालत द्वारा आयोजित किए गए, इस्लामी समानता, न्याय और बुनियादी मानव अधिकारों के मामले में महत्वपूर्ण थे अब तक आलोचना का निशाना बन रहे हैं। इसके अलावा महिलाओं के अधिकार संगठन भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन की श्रेणी में कई मामलों के फैसलों के खिलाफ आवाज उठा चुकी हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ