परमेश्वर अय्यर उल्लूर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

thumb|350px| प्रसिद्ध मलयालम कवि परमेश्वर अय्यर उल्लूर।


परमेश्वर अय्यर उल्लूर (1877 - 1949) मलयालम कवि एवं साहित्यिक इतिहासकार। त्रिवेंद्रम में पैदा हुए थे। त्रावणकोर सरकार के उच्च पदाधिकारी के रूप में इन्होंने काम किया। सेवानिवृत्ति के पश्चात् त्रावणकोर विश्वविद्यालय के प्राच्य विभाग के डीन नियुक्त हुए।

सर्वतोमुखी प्रतिभा एवं व्यापक क्षेत्रीय विद्वान् परमेश्वर अय्यर ने काव्यरचना का कार्य नवीन शास्त्रीय कवि के रूप में प्रारंभ किया। उन्होंने प्राचीन भारतीय उच्च साहित्यिक ग्रंथों से अधिकांश रूप में विषयों का चुनाव किया। प्रचलित प्रवृत्तियों एवं प्रणालियों से प्रभावित होकर उन्होंने "उमाकेरलम्" नामक महाकाव्य लिख। यह केरल के मध्यकालीन इतिहास के एक अध्याय पर आधारित है। यह निश्चित रूप से प्राचीन शास्त्रीय नियमों के अनुसार लिखा गया है और अलंकारों से परिपूर्ण है। नवीन स्वच्छंद (रोमांटिक) प्रवृत्तियों ने भी उन्हें अप्रभावित नहीं छोड़ा। उन्होंने छोटी-छोटी कविताएँ एवं गीत लिखना आरंभ, किया। वे, "अरुणोदयम्", "ताराहारम्", "किरणावलि", "कल्पशारिव", "अमृतधारा", तथा "चित्रशाला" में संकलित हैं। उनके तीन खंडकाव्य विशेषकर कर्णभूषणम् बहुत प्रसिद्ध हैं। कर्णभूषणम् महाभारत की उस प्रसिद्ध घटना पर आधारित है जिसमें कर्ण ने यह जानते हुए कि वह अपने को मृत्यु के बाणों के साथ प्रकट कर रहा था, इंद्र को कुंडल दे दिया। दूसरे खंडकाव्य "पिंगला" की कहानी भागवत से ली गई है। यह मिथिला की गणिका की शुद्धि के विषय में लिखा गया है। जिसमें उसने अपनी पापवृत्ति के जीवन को छोड़कर भक्ति एवं सदाचार का जीवन अपनाया। "भक्तिदीपिका" में यह बतलाया गया है कि वास्तविक भक्ति के क्षेत्र में जातीय भेद नहीं है। मलयालम में उलूर आधुनिक युग के तीन महान कवियों में से समझे जाते हैं। किंतु उनके काव्यों का अधिकांश भाग कृत्रिम आलंकारिक ढंगों एवं शैली के गुरुत्व से नष्ट हो जाता है। परमेश्वर अय्यर ने भी मलयालम साहित्य का चिरस्थायी इतिहास पाँच भागों में लिखा है। यह वास्तव में अद्भुत सर्वतोमुखी प्रतिभा से परिपूर्ण पैतीस वर्षों के कठोर परिश्रम का फल है। यह कृति केरल साहित्य, संस्कृति एवं इतिहास के ज्ञान का भांडार है।

बाहरी कड़ियाँ