परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (भारत)

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परमाणु ऊर्जा विनियामक परिषद (एटॉमिक इनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड / एईआरबी) भारत में परमाणु ऊर्जा की नियामक संस्था है। यह एक स्वतंत्र एजेंसी है जो परामाणु उर्जा के सुरक्षित उपयोग से संबन्धित पहलुओं पर निगरानी रखता है। इसका गठन 15 नवम्बर 1983 को भारत के राष्‍ट्रपति के आदेशों के अनुरूप किया गया।[१] इसका मुख्यालय मुंबई में है।

बोर्ड का लक्ष्य यह है कि नाभिकीय उर्जा एवं आयननकारी विकिरण (ionizing radiation) से लोगों के स्वास्थ्य या पर्यावरण को होने वाला नुकसान सीमा में रहे। बोर्ड द्वारा तय सुरक्षा मानक अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों जैसे अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) तथा अंतरराष्ट्रीय विकिरण बचाव कमीशन (आईजीआरपी) की सिफारिशों के समरूप ही हैं।

कार्य

परमाणु उर्जा नियामक परिषद (एईआरबी) द्वारा भारत के सभी नाभिकीय विद्युत संयंत्रों की निरंतर विनियामक निगरानी रखी जाती है और उनके प्रचालन संबंधी लाइसेंस का नवीनीकरण करते समय इन संयंत्रों की सुरक्षा की आवधिक रूप से विस्‍तृत पुनरीक्षा की जाती है।[२]

एईआरबी के कार्यों में धारा २(१) के अनुसार विकिरण और औद्योगिक सुरक्षा क्षेत्रों में सुरक्षा नीतियों का विकास, तथा इसके अतिरिक्‍त २ (४) के अनुसार अंतरराष्‍ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) और अन्‍य अंतरराष्‍ट्रीय संगठनों द्वारा सुझाए गए सुरक्षा मानदंड पर आधारित मुख्‍य सुरक्षा नीतियों का विकास जिसे भारतीय स्थितियों के अनुरूप अपनाया जा सके, शामिल है। तदानुसार, एईआरबी द्वारा विनियमित की जाने वानी सुरक्षा नीतियों को एईआरबी के उच्‍च स्‍तरीय दस्‍तावेजों, परमाणु ऊर्जा (विकिरण संरक्षण) नियम, 2004, मिशन स्‍टेटमेंट और एईआरबी के विभिन्‍न नियामवली में शामिल किया गया है। इन दस्‍तावेज़ों में उपयुक्‍त गतिविधि/ क्षेत्र पर लागू होने वाली नीतियों, सिद्धांतों तथा/या सुरक्षा उद्देश्‍यों के साथ इन्‍हें पूरा करने के लिए विशेष विनियामक आवश्‍यकताओं को शामिल किया गया है।[१]

यह सिद्धांत और उद्देश्‍य देश में नाभिकीय सुरक्षा के लिए एईआरबी की व्‍यापक नीति को दर्शाते हैं।

एईआरबी पहले ही 141 विनियामक दस्‍तावेज़ों को प्रकाशित कर चुका है। विशेष विनियामक दस्‍तावेज़ बनाने को प्राथमिकता देने के संबंध में एईआरबी का दृष्टिकोण गतिशील और अविरत है। 27 शेष दस्‍तोवेज़ों को एईआरबी द्वारा स्‍थापित विकास ढांचा संबंधी दस्‍तावेज़ में शामिल किया गया है।

नैदानिक एक्‍स-किरण यूनिट/सुविधाएं परमाणु उर्जा नियामक परिषद के विनियामक नियंत्रण के अधीन नहीं है। तथापि, ऐसी सुविधाओं में विकिरण का अंतर्निहित खतरा बहुत कम है। इन सुविधाओं के विनियमन में, परमाणु उर्जा नियामक परिषद की पद्धति, मूलत: उपस्‍कार के डिजाइन में अंतर्निहित सुरक्षा सुनिश्चित करना है। ऐसे यूनिटों के विनिर्माण/बिक्री के दौरान गुणवत्‍ता आश्र्वासन बनाए रखना सुनिश्चित करने के लिए आपूर्तिकर्ताओं/विनिर्माताओं पर विनियामक नियंत्रण रखा जाता है ताकि, अंतिम उपभोक्‍ताओं के स्‍थान पर उपयोग के दौरान संतोषजनक कार्यनिष्‍पादन किया जा सके। यह पद्धति विश्र्वभर में अपनाई जा रही पद्धति के अनुरूप है।[३]

परमाणु उर्जा नियामक परिषद ने, अपने विनियामक नियंत्रण को सुदृढ़ बनाने के लिए एक आधुनिकतम वेब आधारित सेवा ‘विकिरण अनुप्रयोगों की ई-लाइसेंसिंग (E-LORA) को क्रियान्वित किया हैं।[३]

शक्तियाँ

परमाणु उर्जा अधिनियम, 1962 की धारा 30(3) के अनुसार ‘इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियम यह उपबंध कर सकते हैं कि नियमों का उल्‍लंघन, इस अधिनियम में जैसा अन्‍यथा अभिव्‍यक्‍त रूप से उपबंधित है उसके सिवाए, जुर्माने से जो 500 रूपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा।‘ तथापि, अधिनियम की धारा 24 के अनुसार, धारा 17 के अधीन बनाए गए किसी नियम का उल्‍लंघन (सुरक्षा के बारे में विशेष उपबंध) कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा। अंत: अधिनियम की धारा 24 में गम्‍भीर उल्‍लंघनों के लिए उपयुक्‍त और न्‍यायपूर्ण दंड के लिए अन्‍यथा अभिव्‍यक्‍त रूप से उपबंध किए गए हैं, जबकि धारा 30(3) के अंतर्गत, मामूली प्रशासनिक चूकों के लिए उपबंध किया गया है। इसको ध्‍यान में रखते हुए, सरकार ने इस जुर्माने को संशोधित करने के बारे में विचार नहीं किया है। परमाणु उर्जा नियामक परिषद को यह शक्ति भी प्राप्‍त है कि, वह अनुपालन न किए जाने की किस्‍म के आधार पर, किसी नाभिकीय तथा विकिरण सुविधा का लाइसेंस रद्द कर सकती है। किसी सुविधा का प्रचालन करने के संबंध में सहमति का वापस लिया जाना अपने आप में एक अत्‍यधिक कठोर आर्थिक शास्ति है और इसमें, लाइसेंसधारी की वित्‍तीय स्थिति पर गम्‍भीर रूप से प्रभाव डालने की क्षमता है। [३]

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ