पनडुब्बी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(पनडुब्बियों से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
सन् १९७८ में एल्विन
प्रथम विश्व युद्ध में प्रयुक्त जर्मनी की यूसी-१ श्रेणी की पनडुब्बी

पनडुब्बी(अंग्रेज़ी:सबमैरीन) एक प्रकार का जलयान (वॉटरक्राफ़्ट) है जो पानी के अन्दर रहकर काम कर सकता है। यह एक बहुत बड़ा, मानव-सहित, आत्मनिर्भर डिब्बा होता है। पनडुब्बियों के उपयोग ने विश्व का राजनैतिक मानचित्र बदलने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। पनडुब्बियों का सर्वाधिक उपयोग सेना में किया जाता रहा है और ये किसी भी देश की नौसेना का विशिष्ट हथियार बन गई हैं। यद्यपि पनडुब्बियाँ पहले भी बनायी गयीं थीं, किन्तु ये उन्नीसवीं शताब्दी में लोकप्रिय हुईं तथा सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध में इनका जमकर प्रयोग हुआ। विश्व की पहली पनडुब्बी एक डच वैज्ञानिक द्वारा सन १६०२ में और पहली सैनिक पनडुब्बी टर्टल १७७५ में बनाई गई। यह पानी के भीतर रहते हुए समस्त सैनिक कार्य करने में सक्षम थी और इसलिए इसके बनने के १ वर्ष बाद ही इसे अमेरिकी क्रान्ति में प्रयोग में लाया गया था। सन १६२० से लेकर अब तक पनडुब्बियों की तकनीक और निर्माण में आमूलचूल बदलाव आया। १९५० में परमाणु शक्ति से चलने वाली पनडुब्बियों ने डीज़ल चलित पनडुब्बियों का स्थान ले लिया। इसके बाद समुद्री जल से आक्सीजन ग्रहण करने वाली पनडुब्बियों का भी निर्माण कर लिया गया। इन दो महत्वपूर्ण आविष्कारों से पनडुब्बी निर्माण क्षेत्र में क्रांति सी आ गई। आधुनिक पनडुब्बियाँ कई सप्ताह या महिनों तक पानी के भीतर रहने में सक्षम हो गई है।

द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी पनडुब्बियों का उपयोग परिवहन के लिये सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए किया जाता था। आजकल इनका प्रयोग पर्यटन के लिये भी किया जाने लगा है। कालपनिक साहित्य संसार और फंतासी चलचित्रों के लिये पनडुब्बियों का कच्चे माल के रूप मे प्रयोग किया गया है। पनडुब्बियों पर कई लेखकों ने पुस्तकें भी लिखी हैं। इन पर कई उपन्यास भी लिखे जा चुके हैं। पनडुब्बियों की दुनिया को छोटे परदे पर कई धारावाहिको में दिखाया गया है। हॉलीवुड के कुछ चलचित्रों जैसे आक्टोपस १, आक्टोपस २, द कोर में समुद्री दुनिया के मिथकों को दिखाने के लिये भी पनडुब्बियो को दिखाया गया है।

आकार

पनडुब्बी के भीतर कृत्रिम रूप से जीवन योग्य सुविधाओं की व्यस्था की जाती है। आधुनिक पनडुब्बियाँ अपने चालक दल के लिये प्राणवायु ऑक्सीजन समुद्री जल के विघटन की प्रक्रिया से प्राप्त करती है। पनडुब्बियों में कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करने की भी व्यस्था होती है ताकि पनडुब्बी के भीतर कार्बन डाईऑक्साइड ना भर जाए। ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता के लिये पनडुब्बी में एक ऑक्सीजन टंकी भी होती है। आग लगने पर बचाव के लिये भी व्यस्था की जाती है। आग लगने की स्थिति में जिस भाग में आग लगी होती है, उसे शेष पनडुब्बी से विशेष रूप से बने परदों की सहायता से अलग कर दिया जाता है ताकि विषैली गैसें बाकी पनडुब्बी में ना फैले।

भारतीय नौसेना में

सिंधु रक्षक, भारतीय नौसेना की शत्रु विनाशक पनडुब्बी, ३००० टन वजन की यह पनडुब्बी सतह से २४० मीटर नीचे-नीचे ६४० किलोमीटर तक शत्रु सीमा में प्रवेश कर सकती है।

विश्व की सभी प्रमुख नौसेनाओं के समान ही भारतीय नौसेना ने भी अपने बेड़े में पनडुब्बियों को सम्मिलित किया है। भारतीय नौसेना के बेड़े में वर्तमान में १६ डीज़ल चलित पनडुब्बियाँ हैं। ये सभी पनडुब्बियाँ मुख्य रूप से रुस या जर्मनी में बनीं हुईं हैं। वर्ष २०१०-११ में इस बेड़े मे ६ और पनडुब्बियाँ सम्मिलित कर ली जाएगीं। भारतीय नौसेना पोत (आई एन एस) अरिहंत (अरि: शत्रु हंतः मारना अर्थात शत्रु को मारने वाला) परमाणु शक्ति चालित भारत की प्रथम पनडुब्बी है।[१][२] इस ६००० टन के पोत का निर्माण उन्नत प्रौद्योगिकी पोत (ATV) परियोजना के अंतर्गत पोत निर्माण केंद्र विशाखापत्तनम में २.९ अरब डॉलर की लागत से किया गया है। इसको बनाने के बाद भारत वह छठा देश बन गया जिनके पास इस प्रकार की पनडुब्बियां है।

कुछ रहस्यमयी पनडुब्बियाँ

यू एस एस स्कॉर्पियन का मलबा।
  • २२ मई १९६८ को, जब वियतनाम युद्ध अपने चरम पर था तब अमेरिका की यू एस एस स्कॉर्पियन नामक पनडुब्बी उत्तरी अटलांटिक महासागर में कहीं खो गई। बड़े खोज अभियान स्वरुप, दुर्घटना के छह महीने बाद नवंबर १९६८ में आयरलैंड के एज़ोरा से ७२५ किमी दूर दक्षिण पश्चिम में यह पनडुब्बी खोज ली गई। यह यहाँ पर तीन टुकड़ों में पाई गई। यह एक परमाणु पनडुब्बी थी जिसपर ९९ लोग सवार थे और सभी मारे गये थे। इसका पिछला भाग इस प्रकार उखड़ा हुआ पाया गया जैसे किसी आंतरिक विस्फोट से उड़ाया गया हो। दुर्घटना के कारण आज भी रहस्य बने हुए हैं।
यू एस एस स्कॉर्पियन का जलावतरण।
  • १९४३ में यू एस एस ट्रिगरफिश नामक पनडुब्बी शत्रुओं के जहाज़ों द्वारा नष्ट कर दी गई। इसका कोई चिन्ह नहीं मिला। ५० वर्षों बाद सन डीगो समुद्र तट पर यह फिर से पाई गई। इसके चालक दल का कोई सुराग नहीं मिला। पचास वर्षों तक यह पनडुब्बी पुरी तरह अज्ञात रही।
  • स्कॉटलैंड में नवंबर २००६ में आर्कने के समुद्र तट के पास ७० फीट की गहराई में दो रहस्यमयी पनडुब्बियों के अवशेष पाए गए। नवीनतम त्रिआयामी सोनार तकनीक से इन टुकड़ो के चित्र भी लिये गए, लेकिन इन पनडुब्बियों की राष्ट्रीयता नहीं पहचानी जा सकी। इनके चालक दलों का भी कोई चिन्ह नहीं मिला। अनुमान लगाए जा रहें है कि ये जर्मनी की यू बोट हैं जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नष्ट हुई होंगी।

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite webसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
  2. कैसे बनी पहली भारतीय परमाणु पनडुब्बी? स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।। जोश १८

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:commons