पदोन्नति

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किसी संगठन में किसी कर्मचारी का पद बदलकर उसे उससे ऊपर वाला पद देना पदोन्नति (promotion) कहलाता है।

अभिप्राय एवं महत्व

किसी भी संगठन में कार्यरत कार्मिकों की कार्यकुशलता उनकी संतुष्टि तथा मनोबल के स्तर से भी प्रभावित होती है। पदोन्नति अर्थात् 'पद की उन्नति' आधुनिक कार्मिक प्रशासन का महत्वपूर्ण आयाम है। पदोन्नति, पद, स्तर सम्मान में वृद्धि करने या योग्यता के आधार पर आगे बढने से सम्बद्ध है। पदोन्नति को 'आन्तरिक भर्ती' या 'अप्रत्यक्ष भर्ती' भी कहा जाता है।

पदोन्नति की निम्न विशेषताएँ या लक्षण हैं –

  • j(१) पदोन्नति में पद–नाम परिवर्तित हो जाता है।
  • (२) यह निम्न पद से उच्च पद की ओर पहुँचने की प्रक्रिया है।
  • (३) पदोन्नति प्राप्त करने वाले कार्मिक का वेतन भी बढ़ जाता है।
  • (४) स्वाभाविक है पदोन्नति प्रतिष्ठा तथा सम्मान का सूचक है।
  • (५) पदोन्नति में कार्मिक के दायित्व उच्च तथा गुरुतर हो जाते हैं।
  • (६) यह संगठन की आंतरिक प्रक्रिया है।

पदोन्नति तो वर्तमान पद से उच्च पद के प्राप्त होने से सम्बद्ध है। उच्च पद के प्राप्त होने पर उस पर का वेतनमान, दायित्व तथा नया पद-नाम पदोन्नत कार्मिक को देय होते हैं तथा इससे कर्मचारी की प्रतिष्ठा तथा संतुष्टि दोनों का स्तर ऊँचा होता है।

पदोन्नति का महत्व

पदोन्नति प्रक्रिया की उपयोगिता निर्विवाद रूप से महत्वपूर्ण है। पदोन्नति के कारण एक तरफ संगठन की जीवन्तता बनी रहती है तो दूसरी ओर कर्मचारियों की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति भी होती है। संक्षेप में, पदोन्नति के निम्न महत्व हैं –

  • १. यह अनुभवी कर्मचारियों को संगठन में बनाए रखती है।
  • २. इस व्यवस्था से कार्मिक–विकास को दिशा मिलती है।
  • ३. यह कार्मिकों को श्रेष्ठ कार्य करनेको प्रोत्साहित करती है।
  • ४. पदोन्नति की शृंखला उपलब्ध होने पर निम्न पदों पर भी योग्य कार्मिक आना पसन्द करते हैं।
  • ५. पदोन्नति के कारण कर्मचारी तथा संगठन में अपनत्व का रिश्ता कायम होता है।
  • ६. पदोन्नति के कारण संगठन की प्रतिष्ठा तथा कार्यकुशलता बढ़ती है क्योंकि जिन संगठनों में पदोन्नति के कम अवसर होते हैं उनको योग्य एवं श्रेष्ठ कर्मचारी शीघ्र ही छोड़ देते हैं।
  • ७. वृत्तिका विकास एवं मनोबल वृद्धि में पदोन्नति का महत्व स्वयंसिद्ध है।

उम्मीदवार की योग्यता को सही रूप में जानने के लिए आजकल 'अज्ञात साक्षात्कार' लोकप्रिय होता जा रहा है। इसमें उम्मीदवार को यह पता नहीं रहता है कि उसकी परीक्षा ली जा रही है। होता यह है कि पद रिक्त होने पर भर्तीकर्ता सम्भावित उम्मीदवारों पर दृष्टि रखता है और जब उसके ध्यान में कुछ ऐसे लोग आ जाते हैं तो वह एक विशेष भाषणमाला का आयोजन कर देता है। यहाँ सम्भावित उम्मीदवारों को भाषण देने के लिए आमन्त्रित किया जाता है। इस पद्धति से उम्मीदवार के व्यक्तित्व के सर्वांगीण पक्ष पर मूल्यांकन करना सरल हो जाता है।

पदोन्नति के प्रकार एवं सिद्धान्त

भारत में पदोन्नति दो प्रकार की होती है –

  • (२) वेतनमान पदोन्नति – जब एक ही सेवा या संवर्ग के अधिकारी वर्तमान स्थिति से उच्च स्थिति की ओर पदोन्नति होते है तो यह 'वेतनमान पदोन्नति' कहलाती है। उदाहरणस्वरूप कनिष्ठ लिपिक की वरिष्ठ लिपिक पद पर पदोन्नति अथवा राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को कनिष्ठ वेतनमान से वरिष्ठ वेतनमान या सुपर टाईम स्केल पर पदोन्नत देना इत्यादि।

पदोन्नति के दो प्रमुख सिद्धान्त प्रचलन में हैं –

  • (१) वरिष्ठता आधारित पदोन्नति
  • (२) योग्यता आधारित पदोन्नति

वरिष्ठता पर आधारित पदोन्नति एक परम्परागत एवं सरल प्रणाली है। इसके अनुसार उस कार्मिक के पहले पदोन्नति मिलेगी जिसकी सेवा अवधि दूसरों की तुलना में अधिक होगी। वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति की शुरूआत ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासनकाल में ही हो चुकी थी। यह सिद्धान्त अनुभवी कार्मिक को पुरस्कार में विश्वास करता है। इस प्रकार की पदोन्नति में निष्पक्षता, कार्मिक उपलब्धता, स्वचालन, मनोबल निर्माण, न्याय–स्थापना, अहं टकराव से बचाव आदि लाभ या गुण हैं तो दूसरी ओर दोष भी बहुत हैं। वरिष्ठता के कारण पदोन्नति मिलने से संगठन में योग्य कार्मिक बाहर जाना पसन्द करते है। बहुत से कर्मचारी कार्य में रूचि भी नहीं लेते हैं क्योंकि पदोन्नति तो नियत समय पर मिल ही जाती है। ब्रिटेन के नौसेनाध्यक्ष फिशर ने एक बार कहा था– ब्रिटिश साम्राज्य नष्ट हो जाएगा, क्योंकि इसमें वरिष्ठता के सिद्धान्त का पालन किया जाता है। वस्तुत : वरिष्ठता का सिद्धान्त प्रत्यक्षत: योग्यता का शमन भी होगा ही।

प्रथम वेतन आयोग ने यह सुझाव दिया था कि लोकसेवाओं में प्रत्यक्ष भर्ती तथा पदोन्नति के बीच विवेकपूर्ण सामंजस्य होना चाहिए। आयोग का मानना था कि उच्च पदों के संदर्भ में पदोन्नति के लिए वरिष्ठता के स्थान पर योग्यता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

योग्यता आधारित पदोन्नति व्यवस्था को अब शनैः–शनैः मान्यता मिल रही है। वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक प्रवृत्तियों से युक्त समाज में योग्यता को मान्यता मिलना स्वाभाविक है। पदोन्नति में योग्यता को आधार बनाने से महत्वाकांक्षी, कर्त्तव्यनिष्ठतथा उत्साही कार्मिकों को प्रेरणा प्राप्त होती है, प्रशासनिक कार्य कुशलता बढ़ती है तथा प्रशासन में नवाचार या परिवर्तन प्रक्रियाएँ क्रियान्वित की जा सकती हैं किन्तु इस सिद्धान्त के कारण जब कम कनिष्ठ व्यक्ति उच्च पद पर पहुंच जाता है तो वरिष्ठ कार्मिकों का अहं आहत होता है साथ ही कार्मिक असहयोग एवं संघर्ष प्रवृत्तियों को धारण कर लेते हैं।

पदोन्नति के लिए योग्यताएं

प्रो॰ विलोबी ने पदोन्नति के लिए पात्रता के दो आधारों का वर्णन किया है –

  • (क) सेवीवर्ग की योग्यताएँ, एवं
  • (ख) सेवा का स्तर

सेवीवर्ग की योग्यताएँ

पद वर्गीकरण के समय प्रत्येक पद के कार्यों, दायित्वों एवं योग्यताओं का निर्धारण किया जाता है। इन योग्यताओं में ज्ञान, कुशलता, अनुभव, शैक्षणिक योग्यता, लिंग, निवास, तकनीकी कुशलता आदि प्रमुख होती है। जिस पद के लिए पदोन्नत किया जाता है उसके लिए सभी आवश्यक योग्यताएँ सम्बन्धित प्रत्याशी में होनी चाहिए। इनके बिना पदोन्नति के लिए किसी कर्मचारी के नाम के संबंध में विचार ही नहीं किया जा सकता। जब ये आवश्यक योग्यताएँ निर्धारित की जाती है तभी यह तय हो जाता है कि पदोन्नति के लिए प्रत्याशियों का क्षेत्र व्यापक रहेगा अथवा संकीर्ण।

सेवा का स्तर

व्यक्तिगत योग्यताओं की भांति पदोन्नति की पात्रता का एक अन्य आधार प्रत्याशियों की सेवा का स्तर है। इसके अन्तर्गत यह निर्धारित किया जाता है कि पदोन्नति के लिए संभावित प्रत्याशी कहाँ से प्राप्त किये जायेंगे। प्राय: सेवा के नियमों में ही निर्धारित कर दिया जाता है कि किसी विशेष पद के रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए पदोन्नति उसी पद के तुरन्त नीचे वाले पद से की जाएगी या संगठन के किसी भी कर्मचारी से की जाएगी या उस ब्यूरो के किसी कर्मचारी से की जाएगी जिसका वह संगठन अंग मात्र है या संबंधित विभाग के किसी भी कर्मचारी से या सम्पूर्ण सरकारी सेवा के किसी कर्मचारी से की जाएगी। इन विकल्पों को निश्चित कर देने पर पदोन्नति की रेखाएँ स्पष्ट हो जाती हैं। पदोन्नति की पात्रता के क्षेत्र पर प्राय: एक संगठनात्मक प्रतिबन्ध लगाया जाता है और पदोन्नतियाँ साधारणत: एक ही विभाग अथवा ब्यूरो के अन्तर्गत की जाती है, अन्तर-विभागीय पदोन्नतियों का समर्थन नहीं किया जाता है। इस व्यवस्था की हानि यह है कि इसके फलस्वरूप कर्मचारियों के पदोन्नति के अवसर कम रह जाते हैं, साथ ही योग्य प्रत्याशियों का सम्भावित क्षेत्र भी छोटा हो जाता है। उक्त लाभों तथा हानियों का सापेक्षिक प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि सेवा अथवा संगठनात्मक इकाई का क्षेत्र कितना व्यापक है।

प्रो॰ विलोबी की मान्यता है कि विभिन्न कर्मचारियों की सेवा की शर्तों में भारी अन्तर रहता है, इसलिए यदि उन सभी के लिए एकरूप व्यवस्था स्थापित करने की चेष्टा की गई तो यह घातक होगा। इस दृष्टि से कुछ सामान्य सिद्धान्त निर्धारित किये जा सकते हैं, ये निम्नलिखित हैं –

  • (१) प्रत्येक सेवा के लिए पदोन्नति की व्यवस्था स्वयं की होती है तथा यह अन्य सेवा से पर्याप्त भिन्न है। अत: प्रत्येक सेवा में पदोन्नति की समस्या पर पृथक से विचार किया जाना चाहिए।
  • (२) जहाँ तक सम्भव हो सके, सभी कर्मचारियों को पदोन्नति के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने की चेष्टा की जानी चाहिए।
  • (३) पदोन्नति द्वारा रिक्त स्थान की पूर्ति करते समय संबंधित संगठन के बाहर के कर्मचारी की अपेक्षा अन्दर के कर्मचारी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

पदोन्नति व्यवस्था की विशेषताएँ

पदोन्नति व्यवस्था की विफलता अनेक बार तो सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक कारणों से होती है। कभी–कभी यह इसलिए भी हो जाती है कि सेवी वर्ग प्रबन्ध उपयुक्त पदोन्नति व्यवस्था की मूलभूत विशेषताओं से परिचित नहीं होता है। प्रो॰ विलोबी ने संक्षेप में इन विशेषताओं का उल्लेख निम्न प्रकार किया है –

  • (१) सरकारी सेवा के सभी पदों के लिए पदाधिकारियों की सभी आवश्यक योग्यताओं एवं कर्त्तव्यों का उल्लेख करते हुए मापदण्ड निर्धारित किए जाएं।
  • (२) इन सभी पदों का विभिन्न सेवाओं को छोडकर अन्य सभी की सामान्य प्रकृति एक जैसी हो। प्रत्येक सेवा के अन्तर्गत पदों की व्यवस्था उनके सापेक्षिक महत्व के अनुसार पद सोपान के रूप में प्रतिबंधित की जाए।
  • (३) इस वर्गीकरण में राजनीतिक प्रकृति की सेवाओं को छोडकर अन्य सभी उच्चतर प्रशासनिक पद शामिल किए जाएँ।
  • (४) यह सिद्धान्त स्वीकार किया जाना चाहिए कि जहाँ तक हो सके उच्चतर के पदों के रिक्त स्थानों की पूर्ति सेवा के निम्न स्तरों से पदोन्नति करके अथवा दूसरी सेवाओं से स्थानान्तरण करके की जाएगी।
  • (५) यह सिद्धान्त स्वीकार किया जाए कि पदोन्नति द्वारा कर्मचारियों के चयन का आधारभूत सिद्धान्त केवल योग्यता होगा।
  • (६) पदोन्नति के लिए उपयुक्त कर्मचारियों की सापेक्षिक योग्यताओं को निर्धारित करने के लिए पर्याप्त साधनों की व्यवस्था की जाए।

उक्त विशेषताओं को अपनाने के बाद यह बहुत कुछ निश्चित हो जाता है कि कर्मचारियों की पदोन्नति एक वैज्ञानिक आधार पर हो सकेगी और विभिन्न उच्च पदों पर न केवल योग्य व्यक्तियों को नियुक्त किया जा सकेंगे वरन् संबंधित तथा संभावित कर्मचारियों के मन में इसकी निष्पक्षता के प्रति संतोष की भावना भी जाग्रत की जा सकेगी। प्रत्येक पदाधिकारी इस संबंध के साथ सर्वश्रेष्ठ कार्य करने के लिए एक प्रभावशाली अभिप्रेरण रहेगी कारण वह न केवल वर्तमान पद के कार्यों को भली प्रकार सम्पन्न करेगा वरन् भावी पद के लिए भी तैयार रहेगा।

आदर्श पदोन्नति व्यवस्था

आदर्श पदोन्नति व्यवस्था के दो पहलू है –

  • (क) यह प्रबन्ध को विश्वास दिलाती है कि संगठन को विभिन्न उच्च पदों पर श्रेष्ठ प्रतिभाशील व्यक्तियों की सेवा का लाभ मिलेगा।
  • (ख) यह कर्मचारियों को विश्वास दिलाती है कि पदोन्नतियाँ योग्यता के आधार पर की गई है तथा पदोन्नति के अवसर व्यापक है।

इन दोनों बातों को ध्यान में रखते हुए स्टाल महोदय ने मुख्यतः निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए है जिन्हें अपनाकर आदर्श पदोन्नति व्यवस्था को लागूकिया जा सकता है –

  • (१) यदि ऊँची योग्यता वाले प्रत्याशी संगठन में मौजूद हो तो पदों को उन्ही की नियुक्ति द्वारा भरा जाना चाहिए, किन्तु बाहर से प्रवेश को पूरी तरह अवरूद्ध नहीं करना चाहिए।
  • (२) उच्च पदों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा कार्य पर प्रशिक्षण का विकास किया जाना चाहिए।
  • (३) सम्पूर्ण सेवा के हित के लिए ही पदोन्नति का क्षेत्र प्रतिबन्धित किया जाना चाहिए। जहां सम्भव हो सके वहाँ अन्तर्विभागीय एवं अन्तर्मण्डलीय पदोन्नतियाँ होनी चाहिए।
  • (४) नई भर्ती की भाँति पदोन्नति के समय भी अवसर की समानता का ध्यान रखा जाना चाहिए। सभी योग्यता प्राप्ति कर्मचारियों के बारेमें पदोन्नति के लिए विचार किया जाना चाहिए।
  • (५) पदोन्नति के लिए कोई भी एक मापदण्ड पर्याप्त नहीं है तथा एक उपयुक्त पदोन्नति व्यवस्था में प्रणाली की दृष्टि से लोचशीलता रहनी चाहिए।
  • (६) एक आदर्श पदोन्नति व्यवस्था में पर्यवेक्षक का योगदान महत्वपूर्ण है। सेवीवर्ग अधिकारियों द्वारा अभिलेख प्रणाली तथा अन्य प्रक्रियाओं द्वारा पदोन्नति के पात्रों का निर्धारण करके पर्यवेक्षक को बताना चाहिए तथा अन्त में उनकी तुलनात्मक योग्यताओं के आधार पर पदोन्नति का निर्णय किया जाना चाहिए।