पटना संग्रहालय

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पटना संग्रहालय

पटना संग्रहालय बिहार की राजधानी पटना में स्थित है। इसका निर्माण १९१७ में अंग्रेजी शासन के समय हुआ था ताकि पटना और आसपास पाई गई ऐतिहासिक वस्तुओं को संग्रहित किया जा सके। स्थानीय लोग इसे 'जादू घर' कहते हैं। मुगल-राजपूत वास्तुशैली में निर्मित पटना संग्रहालय को बिहार की बौद्धिक समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। भवन के केंद्र पर आकर्षक छतरी, चारों कोनों पर गुंबद और झरोखा शैली की खिड़कियां इसकी विशिष्टताएं हैं। प्राचीन भारत युग से 1764 तक कलाकृतियों को बिहार संग्रहालय में रखा गया है और 1764 के बाद के अवयव पटना संग्रहालय में रखे जाते हैं।[१] पटना संग्रहालय 2300 साल पुरानी दीदारगंज यक्षी मूर्तिकला को भी खो देगा।[२]

इतिहास

जानकारों के मुताबिक वर्ष 1912 में बंगाल से बिहार के विभाजन होने के बाद एक संग्रहालय की आवश्यकता महसूस की गई थी। तब तत्कालीन गवर्नर चार्ल्स एस बेली की अध्यक्षता में बिहार और उड़ीसा (अब ओडिशा) सोसाइटी की बैठक में बिहार के लिए एक प्रांतीय संग्रहालय स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया था जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया था।

इसके बाद तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस वर्तमान समय का मुख्य न्यायाधीश के आवास में 20 जनवरी 1915 को संग्रहालय की स्थापना की गई थी। जिस भवन में अभी संग्रहालय है उस भवन में संग्रहालय एक फरवरी 1929 में लाया गया था। इसी वर्ष सात मार्च को बिहार-उड़ीसा के तत्कालीन गवर्नर सर लैंसडाउन स्टीदेंसन ने इस संग्रहालय का उद्घाटन किया था।

परिचय

इस संग्रहालय में दुर्लभ संग्रह का भंडार है। संग्रहालय नव पाषाणकालीन पुरावशेषों और चित्रों, दुर्लभ सिक्कों, पांडुलिपियों, पत्थर और खनिज, तोप और शीशा की कलाकृतियों से समृद्ध है। वैशाली में लिच्छवियों द्वारा भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद बनवाए गए प्राचीनतम मिट्टी के स्तूप से प्राप्त बुद्ध के दुर्लभ अस्थि अवशेष वाली कलश मंजूषा है तो वृक्ष का जीवाश्म संग्रहालय में काफी पुराने चीड़ के एक वृक्ष का जीवाश्म भी यहां रखा हुआ है, जिसे देखने के लिए विदेश से भी लोग आते हैं। संग्रहालय में रात्रि की रोशनी व्यवस्था भी प्रशंसनीय है।

राहुल सांकृत्यायन द्वारा प्रदत्त लगभग 250 दुर्लभ पांडुलिपियों सहित कई पुस्तकों एवं शोध ग्रंथों के संरक्षण के लिए रासायनिक उपचार भी किए गए हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite web
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बाहरी कड़ियाँ