पक्षियों का वर्गीकरण

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उपवर्ग

पक्षी वर्ग दो उपवर्गों में विभक्त है :

आर्किमॉनिथीज़ (Archaeornithes)

इस उपवर्ग के अंतर्गत जुरैसिक काल के वे सभी दंतयुक्त जबड़े, नाखूनदार अंगुलियों और लंबी दुमवाले तथा स्वतंत्र रीढ़, कशेरुकपुच्छीय और स्वंतत्र करभिकास्थियाँ (metacarpals) तथा पतली तलदंडहीन उरोस्थि (keelless sternum) वाले पक्षी, जैसे ऑर्किआँप्टेरिक्स (Archaeopteryx) तथा आर्किऑरनिस (Archaeornis) आते हैं।

निऑरनिथीज़ (Neornithes)

इस उपवर्ग के अंतर्गत कुछ लुप्त और ऐसे वर्तमान पक्षी हैं जिनकी करभिकास्थियाँ मिलकर एकाकार हो गई हैं तथा दुम छोटी और डैने की अँगुलियों में बिरले ही किसी किसी में नख वर्तमान हैं। दाँत केवल लुप्त पक्षियों में विद्यमान थे।

पक्षियों के अधिगण (super orders)

आधुनिक पक्षी निम्नलिखित तीन अधिगणों (super orders) में विभक्त हैं। किसी-किसी अधिगण के अंतर्गत लुप्त सदस्य भी मिलें हैं। कुछ अधिगणों में कोई जीवित प्रतिनिधि नहीं मिलता।

ओडॉएटॉग्नैथी (Odontognathae) अधिगण

इसके अंतर्गत वे दंतधारी पक्षी हैं, जो आर्किऑर्निथीज़ से अधिक विकसित थे, किंतु उड़ने में असमर्थ थे।

यह अधिगण फिर निम्नलिखित दो भागों में विभक्त है :

  • (१) हेस्पेरॉर्निथिफांर्मीज (Hesperornithiformes) गण - इसके अंतर्गत हेस्पेरॉर्निस (Hesperornis) तथा उत्तरी अमरीका के क्रिटैशस (cretaceous) कालीन तैराक और गोताखोर पक्षी आते हैं। इनके जबड़ों में नुकीले दाँत होते थे। इनका शरीर लंबा था और उरोस्थि तलदंडहीन थी। अंसमेखला (shoulder girdle) अति क्षीण थी और ये पक्षी उड़ने में असमर्थ थे।
  • (२) इक्थिऑर्निथिफॉर्मीज़ (Ichthyornithiformes) - इस गण के अंतर्गत उत्तरी अमरीका के कैनजैस प्रदेश के क्रिटेशस युग की अनेक जातियाँ आती हैं। इनमें छोटे और नुकीले, मुड़े हुए और गड्ढों में स्थित दाँत होते थे। उरोस्थि में भली भाँति विकसित तल दंड होता था तथा कुररी पक्षी की भाँति वे तेज उड़ाकू होते थे। ये इक्थिऑर्निस (Ichthyornis) की भाँति जलवासी थे।

पैलिऑग्नैथी (Palaeognathae) अथवा रैटाइटी (Ratitae) अधिगण

इसके अंतर्गत अनुडुयी, किंतु दौड़ने में सहायता करनेवाले, क्षीण डैने और उरफलक, लंबी टांगें और घुँघराले परवाले पक्षी आते हैं। इस अधिवर्ग के सदस्यों में हनुसंधिका (quadrate) करोटि (skull) के साथ केवल एक ही शीर्ष द्वारा जुड़ती हैं, अंसफलक (scapula) और अंसतुंड (coracoid) छोटे और एकरूप होते हैं एवं अंसतुंड अंसफलकीय कोण (coraco scapular angle) एक समकोण से अधिक होता है। जत्रुक (clavicle) और पुच्छफाल (pygostyle) अनुपस्थित होते हैं। पिच्छिकाओं (barbules) में अंतग्र्रंथित रचना नहीं होती। नर में शिश्न विद्यमान रहता है और बच्चे अकाल प्रौढ़ होनेवाले (precocious) होते हैं।

यह अधिगण निम्नलिखित सात गणों (orders) में बँटा है :

  • 1. स्ट्रथिऑनिफारमीज (Struthioniformes) गण - इस गण के अंतर्गत अफ्रीका और दक्षिण एशिया का आठ फुट ऊँचा शुतुर्मुर्ग (ostrich) नामक पक्षी आता है। इस गण के पक्षियों में केवल दो पदांगुलियाँ होती हैं और परों में अनुपिच्छ (aftershaft) का अभाव होता है। दौड़ते समय ये अपने अल्पवर्धित परों को फैला लेते हैं।
  • 2. रीफॉरमीज़ (Rheiformes) गण - इसके अंतर्गत दक्षिणी अमरीका की दौड़नेवाली दो जातियाँ हैं। इनमें तीन पदांगुलियाँ होती हैं, जैसे रीआ (rhea) में होता है।
  • 3. कैज़ुएरिइफॉरमीज (Casuariiformes) गण - इसके अंतर्गत एमू और कसोवरी (cassowary) पक्षी हैं। ये आस्ट्रेलिया, न्यूगिनी और ईस्ट इंडीज में पाए जाते हैं। कसोवरी छह फुट ऊँचा और तेज दौड़नेवाला होता है। इस गण के पक्षियों में तीन पदांगुलियों में तीक्ष्ण नाखून होते हैं। शुतुर्मुर्गु के बाद एमू ही बड़ा पक्षी है।
  • 4. ऐप्टरिजिफॉर्मीज (Apterygiformes) गण - इसके अंतर्गत कीवी की जातियाँ हैं, जो न्यूजीलैंड तथा उसे समीपवर्ती द्वीपों में पाई जाती हैं। कीवी शतुरर्मुर्ग और ऐमू की तुलना छोटी चिड़िया है, जो घरेलू मुर्गी से थोड़ी बड़ी, लगभग डैने रहित, तेज दौड़नेवाली और अपने नाखूनों से अपनी रक्षा करनेवाली होती है। इसका नासाद्वार चोंच के छोर पर स्थित होता है और आँखें छोटी होती हैं। आजकल के सभी पक्षियां के अंडों से इसका अंडा बड़ा होता है। पर में अनुपिच्छ नहीं होता।
  • 5. डाइनॉर्निथिफॉरमीज (Dinornithiformes) गण - इसके अंतर्गत न्यूजीलैंड की मोआ (moa) चिड़िया है। मोआ की संभवत: 20 जातियाँ थी, जिनके दस में पक्षी टर्की की माप से लेकर 10 फुट तक ऊंचे होते थे। अधिकांश जातियों में डैने और अंशमेखला का बिल्कुल ह्रास हो गया था और किसी किसी में उरोस्थि में तलदंड का कुछ भी अवशेष नहीं रह गया था। चोंच छोटी होती थी और स्थूल पैरों में चार चार अंगुलियाँ होती थीं। संभवत: वे शाकाहारी थीं और जिराफ की भाँति पत्तियाँ खाती थी। अत्यंतनूतन (pleistocene) युग की चट्टानों में इसके अनेक अवशेष मिलते हैं।
  • 6. ईपिऑर्निथिफारॅमीज (Aepyornithiformes) गण - इसके अंतर्गत मैडागास्कर की भीमकाय और अनुडुयी चिड़ियाँ थीं, जो हाल में ही, संभवत: कुछ ही शताब्दी पूर्व, लुप्त हो गई हैं। उपर्युक्त अन्य गणों के पक्षियों की तुलना में इनके डैने छोटे होते थे, किंतु पैर मजबूत और शक्तिशाली थे तथा उनमें चार चार अंगुलियाँ होती थीं। इनमें कुछ शुतुर्मुर्ग से भी बड़े थे। इनके अंडे 330 व् 241 मिमी. तक के पास गए है, जिनकी धारिता दो गैलन तक की है, जैसे ईपिऑर्निस (aepyornis) तथा मुलेरॉर्निस (mullerornis) के अंडे।
  • 7. टिनैमिफॉरमीज (Tinamiformes) गण - इस गण की चिड़ियों की आकृति तीतर से मिलती जुलती है और दुम नहीं के बराबर होती है। उरोस्थि तलदंडयुक्त होती है। इस गण के अंतर्गत एक परिवार और पचास जातियाँ हैं, जो दक्षिण मेक्सिको की मुख्य भूमि और मध्य तथा दक्षिणी अमरीका में पाई जाती हैं। ये प्राय: वृक्षवासी हैं और भद्दे तरीके से किसी प्रकार कुछ दूर तक उड़ सकती है। ये शाकाहारी हैं और एक बार में एक ही चमकीला रंगीन अंडा देती हैं।

इंपेनी (Impennae) अथवा पेंग्विन (Penguins) अधिगण

इसके अंतर्गत वे पक्षी हैं जिन्होंने उड़ान का त्याग कर दिया है और जलजीवन के अनुकूल ढल गए हैं। इनकी अग्रभुजाएँ तैरने के लिए क्षेपणियों (fippers) में रूपांतरित हो गई हैं और पैर झिल्लीदार (webbed) हो गए हैं।

इस अधिगण में निम्नलिखित केवल एक ही गण हैं :

स्फ़ेनिसिफॉरमीस (Sphenisciformes) या इंपेनीस (Impennes) अथवा पेंग्विन गण - यह गण दक्षिणी गोलार्ध के ठंढे भागों, मुख्यत: अंटार्टिक के हिम और समुद्री अंचलों में, सीमित हैं। ये मछलियों का शिकार करते हैं और अपने अंडे पैरों पर ढोते हैं।

निऑग्नेथी (Neognathae) अथवा कैरिनेटी (Carinatae) अधिगण

इसके अंतर्गत सभी आधुनिक पक्षी आते हैं। इस वर्ग के पक्षियों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं : ये उड़नेवाले होते हैं, डैने अधिक विकसित, परों में अंतग्रंथित (interlocking) पिच्छिकाएँ और उरोस्थि तलदंडयुक्त होती है। पुच्छफाल उपस्थित रहता है, जिसके चारों तरफ पुच्छ के पर लगे होते हैं। जत्रुक वर्तमान होता है और अंसतुंड-अंसफलक (coraco scapular) कोण एक समकोण से छोटा होता है। हनुसंधिकास्थि (quadrate bone) करोटि से दो फलकिकाओं (facets) द्वारा जुड़ी रहती है।

इस अधिगण के अंतर्गत निम्नलिखित 22 गणों को मान्यता मिली है, जिनमें 16 प्रमुख हैं।

  • 1. गेविइफॉर्मीज़ या क़ोलिंबिफॉर्मीज़ या पाइगॉपोडीज़ (Gaviiformes या Colymbiformes या Pygopodes) - इस गण के सदस्य जलवासी पक्षी हैं और झीलों के किनारे नीड़निर्माण करते हैं। जल में तैरते नीड़ में ये छिलकेदार अंडे देते हैं। इनकी गर्दन लंबी होती है तथा ये गोताखोर होते हैं। ये पक्षी उत्तरी अमरीका, यूरोप तथा आर्कटिक क्षेत्र में पाए जाते हैं।
  • 2. पॉडिसिपिफॉर्मीज़ (Podicipiformes) गण - ये ठोस शरीरधारी है और प्राय: गोताखोर (divers) कहलाते हैं। ये पानी के किनारे रहनेवाली चिड़ियाँ हैं और इनका विस्तार विसतृत है। ये तैरनेवाले नीड़ों का निर्माण करती हैं। इनमें पदांगुलियाँ शरीर के बहुत पीछे स्थित होती हैं। बंजुल या पनडुब्बी (grebs) इनके उदाहरण हैं।
  • 3. प्रॉसेलैरिइफॉर्मीज़ या टरबाईनरीज़ (Procelariiformes या Turbinares) गण - इस जाति के पक्षी सामुद्रिक पक्षी हैं, जो वेलापवर्ती (pelagic) जीवन व्यतीत करते हैं और मादा प्राय: बिल में एक ही अंडा देती है। समुद्रकाक (petrels), फुल्मेरस (fulmarus) और ऐल्बेट्रॉस (albatross) इनके उदाहरण हैं।
  • 4. पेलिकैनिफॉर्मीज़ या स्टेगैनापॉडीज़ (Pelicaniformes या Stetganopodes) - इस गण के पक्षी जलवासी होते हैं और जल में गोता लगाने और शिकार करने के अनुकूल बन गए हैं। सभी सामूहिक रूप से चट्टानों या पेड़ों पर नीड़निर्माण करते हैं और इनके अंडे चित्तीदार होते हैं। फैलेक्रोकोरैक्स (phalacrocorax niger), शूलकाक (gannet), चम्मचबाज (spoon bill) तथा मेरुया या पेलिकन (pelican) इस गण के पक्षी हैं।
  • 5. सिकोनिइफॉर्मीज़ या हेरोडिओनीज़ (Ciconiiformes या Herodiones) गण - इस गण के अंतर्गत अर्धजलीय पक्षी हैं, जो दलदली स्थानों में रहते हैं और समीप के तालाबों या झीलों में शिकार करते हैं। इनकी टाँगें लंबी होती हैं। ये प्रबल उड़ाकू होते हैं और समूहों में नीड़निर्माण करते तथा बसेरा लेते हैं। इनके अंडे चित्तीदार नहीं होते। श्वेत बक (stork), खैरे या प्रख्यात अंजन बक (grey heron), बगुला या गाय बगुला (cattle egret), इसके उदाहरण हैं।
  • 6. ऐन्सेरिफॉर्मीज़ (Anseriformes) गण - इस गण के पक्षियों ने अपना जीवन जलवास के अनुकूल ढाल लिया है। अतएव इनके पैर झिल्लीदार तथा चोंच चिपटी होती है। ये जमीन पर अंडे देते हैं। अंडे बड़े और सफेद होते हैं। बतख तथा हंस इस गण के पक्षी है।
  • 7. फैलकोनिफॉर्मीज़ या ऐक्सिीपिट्रीज (Falconiformes या Accipitres) गण - इसके अंतर्गत दिन में शिकार करनेवाली चिड़ियाँ आती हैं। इनकी चोंचें तीक्ष्ण, मजबूत और मुड़ी तथा पैर और पंजे शक्तिशाली होते हैं। बाज (hawks), गिद्ध (vultures) और चील (kites) इस गण में आते हैं।
  • 8. गैलिफॉर्मीज़ (Galliformes) गण - इसके अंतर्गत मुर्गियाँ, तीतर और मोर आदि शिकार की (game birds) चिड़ियाँ आदि आती हैं। ये दाना चुगती हैं और स्थलीय हैं।
  • 9. ग्रुइफॉर्मीज़ (Gruiformes) गण - इसके अंतर्गत स्थलीय पक्षी हैं, किंतु ये दलदली स्थानों में रहते हैं। ये दौड़तें, तैरते हैं और जल में गीता भी लगाते हैं, किंतु अच्छे उड़ाकू नहीं होते। जलमुर्गी, करंडकुक्कुट (coot) और क्रौंच इसके उदाहरण हैं।
  • 10. डाइआट्राइमिफॉर्मीज़ (Diatrymiformes) - इस गण के साथ एक अन्य गण है, जो लुप्त हो गया है। इसके अंतर्गत उत्तरी अमरीका के इयोसिन (ecocene) युग के अनेक पक्षी आते हैं। यह बहुत बृहदाकार पक्षी था, जो सात फुट ऊँचा होता था। इसके डैने क्षीण थे, जिसके कारण यह उड़ने से लाचार था। डाइआट्राइमास्टीनी (Diatrymasteini) इसका उदाहरण है।
  • 11. कैरेड्राइफॉर्मीज़ (Charadriiformes) गण - इसके अंतर्गत छिछले जल में चलनेवाले अनेक पक्षी आते हैं। जल में चलनेवाले पक्षी मुख्यत: जमीन पर रहते हैं, पर कभी-कभी खुले जलस्थानों या दलदलों में भी रहते हैं। इनमें कुछ के पैर और चोंच लंबी होती है। कठफोड़वा तथा ढोमरा या गंगचिल्ली (gulls) इसके उदाहरण है।
  • 12. कोलंबिफॉर्मीज़ (Coumbiformes) या कपोत गण - इस गण के अंतर्गत सभी प्रकार के कबूतर, हारिल, पेड़की इत्यादि आते हैं। ये दाना चुगनेवाले होते हैं और मकानों तथा पेड़ों पर नीड़निर्माण करते हैं। ये तेज और कौशलपूर्वक उड़नेवाले पक्षी हैं। इनके बच्चे अन्नपुट ग्रंथियों (crop glands) से स्रावित कपोतदुग्ध (pigeon's milk) पर पलते हैं।
  • 13. सिटासिफॉर्मीज़ (Psittaciformes) या शुक गण - इस गण के पक्षी सुग्गा, तोता, पहाड़ी सुग्गा, इत्यादि लाक्षणिक रूप से पेड़ों पर निवास करनेवाले और फलाहारी होते हैं। इनकी चोंच विशेष रूप मुड़ी होती है और पैर की अँगुलियाँ आपस में जुड़ी (syndactylus) होती हैं। ये वृक्षों की शाखाओं और टहनियों पर आरोहण के अनुकूल होते हैं।
  • 14. कुक्यूलिफॉर्मीज़ (Cuculiformes) गण - इसके अंतर्गत सभी प्रकार के कोयल और पपीहे आते हैं। ये जंगलों में दूसरे पक्षियों के घोसलों में अंडे देकर उनसे अंडे सेने का कार्य लेते हैं।
  • 15. स्ट्रिजिफाँर्मीज़ (Strigiformes) गण - इसके अंतर्गत वे निशिचर पक्षी या उल्लू, श्वेत उल्लू इत्यादि, हैं, जो छछूँदर, चूहे इत्यादि का शिकार करते हैं। इस कार्य के लिए इनकी चोंच और पंजे विशेष प्रकार से मुडे और फौलादी होते हैं। इनकी श्रवणशक्ति तीक्ष्ण और ध्वनिहीन उड्डयन शक्ति होती है।
  • 16. कैप्रिमुल्जिफॉर्मीज़ (Caprimulgiformes) गण - इसके अंतर्गत दबनक या अंधी चिड़ियाँ या चिप्पक आते हैं।
  • 17. माइक्रोपॉडिफॉर्मीज़ या एपॉडिफ़ॉर्मीज़ (Micropodi formes या Apodiformes) गण - इसके अंतर्गत अच्छी उड़ान भरनेवाली, अबाबील इत्यादि, चहचहानेवाली चिड़ियाँ हैं। इनके डैने लंबे होते हैं और ये कीटाहारी होती हैं।
  • 18. कोलिइफॉर्मीज़ (Coleiformes) गण - यह एक छोटा गण है, जो अफ्रीका में पाया जाता है। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के कौलीज़ (colies) आते हैं।
  • 19. ट्रोगोनिफॉर्मीज़ (Trogoniformes) गण - इसके अंतर्गत केवल एक परिवार सदासुहागिन या कुचकुचिया या हमेशापियारा (togons) है।
  • 20. कॉरासाइफॉरमीज़ (Coraciiformes) गण - इसके अंतर्गत वे पतरींगा, नीलकंठ इत्यादि, चिड़ियाँ आती हैं, जिनके पैर की अँगुलियाँ कुछ दूर तक जुड़ी होती हैं।
  • 21. पिसिफॉरमीज़ (Piciformes) गण - इसके पक्षी हुदहुद, काष्ठकूट (picus) और धनेश हैं, जो कीटाहारी और वृक्षारोहक होते हैं। ये पेड़ में छिद्र बनाकर घोंसला बनाते हैं।
  • 22. पैसेरिफॉर्मीज़ (Passeriformes) गण - यह गण बहुत ही बड़ा है और इसके अंतर्गत विविध प्रकार के पक्षी जैसे कौवे, गौरैया, चटक, तिलियर (starling), चकवा (lark), तुलिका (pipits), खंजन (wagtail), रामगंगरा (tit), वृक्षसर्पी (treecreeper) आदि हैं। इनके पैर विश्राम करने के लिए पक्षिसाद (perching) होते हैं। इनके अतिरिक्त श्यामा, पीलक, भुजंगा, मैना, लालमुनिया, लाल, चकोर, रज्जुपुच्छ या माराडीक (circletailed swallow), बया और दर्जिन चिड़िया आदि भी हैं।

इन्हें भी देखें