पंचायतीराज में महिला सहभागिता

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पंचायती राज में महिला भागीदारी भारतीय शासन व्यवस्था में महिला प्रतिनिधित्व संबंधी चिंतन का महत्वपूर्ण विचारबिंदु है।

इतिहास

भारत में महिलाओं का स्थान विषय पर गठित समिति ने 1974 में अनुशंसा की थी कि ऐसी पंचायतें बनाई जाऐं जिनमें केवल महिलाएं ही हों। नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान फॉर द विमेन, 1988 ने ग्राम पंचायत से लेकर जिला परिषद तक 30 प्रतिशत सीटों के आरक्षण की अनुशंसा की थी। महिलाओं को प्रदत्त आरक्षण को पंचायतीराज संस्थानों में राव समिति द्वारा प्रस्तुत संतुतियों की सबसे महत्पूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें पहली बार महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था रखी गई। वर्तमान सृजनषील समाज में नारीवादियों द्वारा आत्मनिर्णय एवं स्वाषासन के लिए सामाजिक रूपांतरण की मांग प्रबल हुई है। इसकी अभिव्यक्ति भारतीय संसद में 110वें व 112वें संविधान संषोधन विधेयक, 2009 के रूप मंे हुई, जिनका संबंध क्रमषः पंचायतीराज और शहरी निकायों के सभी स्तरों में महिलाओं के लिए निर्धारित 33 प्रतिषत सीटों को बढ़ाकर 50 प्रतिषत करने से था।

संवैधानिक प्रावधान

भारतीय संविधान के 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम, अप्रेल 1993 ने पंचायत के विभिन्न स्तरों पर पंचायत सदस्य और उनके प्रमुख दोनों पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थानों के आरक्षण का प्रावधान किया । जिसमें देश के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में सन्तुलन आये। इस संशोधन के माध्यम से संविधान में एक नया खण्ड (9) और उसके अन्तर्गत 16 अनुच्छेद जोडे गए। अनुच्छेद 243 (5) (3) के अन्तर्गत महिलाओं की सदस्यता और अनुच्छेद 243 (द) (4) में उनके लिए पदों पर आरक्षण का प्रावधान है। अनुच्छेद 243 (घ) में यह उपबन्ध है कि सभी स्तर की पंचायत में रहने वाली अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण होगा। प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले कुल स्थानों में से एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे। राज्य विधि द्वारा ग्राम और अन्य स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष के पदों के लिए आरक्षण कर सकेगा तथा राज्य किसी भी स्तर की पंचायत में नागरिकों के पिछड़े वर्गों के पक्ष में स्थानों या पदों का आरक्षण कर सकेगा। वर्तमान में बिहार, हिमाचल प्रदेष, उत्तराखण्ड, राजस्थान और केरल ने पंचायत में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाकर 50% कर दिया है।

पंचायतों में महिलाएं

पंचायतों की संख्या की स्थिति 1 अप्रैल, 2005 के अनुसार इस प्रकार है ग्राम पंचायत 2,34,676 मध्यवर्ती पंचायत 6,097 जिला पंचायत 537 कुल पंचायत संस्थाएं 2,41,310। इन संस्थाओं में महिलाओं की संख्या और उनका प्रतिषत इस प्रकार है- जिला पंचायत में 41 प्रतिषत, मध्यवर्ती पंचायत में 43 प्रतिषत और ग्राम पंचायत में 40 प्रतिषत। पंचायतों में माध्यम से महिलाओं के सषक्तिकरण का कार्य किया जा रहा है। पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी उनके लिए आरक्षित 33 प्रतिषत की न्यूनतम सीमा से अधिक है। देष में पंचायतों के 22 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से करीब 9 लाख महिलाएं हैं। तीन स्तरों वाली पंचायत प्रणाली में 59,000 से अधिक महिला अध्यक्ष हैं। पंचायत में पहुंची महिलाएं निःशुल्क भूमि आंवटन, आवास निर्माण सहायता, ग्रामीण विकास कार्यक्रम, स्वरोजगार कार्यक्रम के कार्यान्वयन आदि में बढ़-चढ़कर योगदान दे रही हैं।

सहभागिता बढ़ाने के उपाय

आरक्षण के कारण सैद्धान्तिक रुप से शक्ति महिलाओं के हाथों में आ गई है। परन्तु यह भी कि आज पुरुष ही सत्ता पर वास्तविक नियन्त्रण रखे हुए है। अज्ञानता एवं अनुभवहीनता, पुरुषों पर निर्भरता महिलाओं के लिए आरक्षण को अर्थहीन बना देती है। अतः यह आवश्यक है कि महिलाओं में जागरुकता लाई जाये। उनको राजनीतिक जानकारी से अवगत करवाया जाए। जहां तक सम्भव हो उन्हे नई भूमिका को निभाने के लिए शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाए। पंचायतों में कार्यरत महिलाओं को समय-समय पर नए कार्यक्रमों की जानकारी दी जाये तथा वर्तमान में चालू कार्यक्रमों में उन्हें कितने संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे है इसकी जानकारी भी दी जाए तभी वे ग्राम के लिए प्रभावशाली योजनाएं बना सकेंगी व विभिन्न कार्यक्रमों के लक्ष्य तक पहुंच पाएगी। इसके अतिरिक्त ग्राम पंचायतों की कार्यप्रणाली उनकी भूमिका पर समय-समय पर मीडिया, पत्र-पत्रिकाओं द्वारा जानकारी उपलब्ध कराई जाए व रेडियो, व टी.वी. प्रसारणों में वार्ताओं व विशेष रुप से ग्राम पंचायतों को ध्यान में रखकर सूचनाओं का प्रसारण किया जाना चाहिए।

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