नाभिकीय अम्ल

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आरएनए तथा डीएनए की तुलना

नाभिकीय अम्ल (Nucleic acid) बहुलक मैक्रोअणु (अर्थात् विशाल जैव-अणु) होता है, जो एकलकिक न्यूक्लियोटाइड्स की शृंखलाओं से बनता है। जैवरासायनिकी के परिप्रेक्ष्य में, ये अणु आनुवांशिक सूचना पहुँचाने का काम करते हैं, साथ ही ये कोशिकाओं का ढाँचा भी बनाते हैं। सामान्यतः प्रयोग होने वाले नाभिकीय अम्ल हैं डी एन ए या डीऑक्सी राइबो नाभिकीय अम्ल एवं आर एन ए या राइबो नाभिकीय अम्ल। नाभिकीय अम्ल प्राणियों में सदा ही उपस्थित होता है, क्योंकि यह सभी कोशिकाओं और यहाँ तक की विषाणुओं में भी होता है। नाभिकीय अम्ल की खोज फ्रेडरिक मिशर ने की थी।

कृत्रिम नाभिकीय अम्लों में आते हैं:

इन सभी को प्राकृतिक डी एन ए एवं आर एन ए से पृथक पहचानने में अणु की रीढ़ में बदलावों की सहायता ली जाती है।

रासायनिक ढांचा

नाभिकीय अम्ल टर्म को बायपॉलीमर परिवार, जिसका कोशिका केन्द्रक में खास कार्य है; के सदस्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। नाभिकीय अम्ल के मोनोमर को न्यूक्लियोटाइड कहते हैं।

प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में तीन घटक होते हैं:

नाभिकीय  अम्ल के प्रकार उनके न्यूक्लियोटाइड में शर्करा के ढांचे के आधार पर भिन्न होते हैं। जैसे: डी.एन.ए. में दो डीऑक्सीराइबोज़ होते हैं, जबकि आर.एन.ए. में राइबोज़ होता है (जहां भिन्नता मात्र हाइड्रॉक्सिल समूह की उपस्थिति की है)। साथ ही दोनों नाभिकीय अम्ल प्रकारों में पाए जाने वाले नाइट्रोजिनस क्षार भिन्न हैं:- एडेनाइन, साइटोसिन एवं गुवानाइन दोनों ही में मिलते हैं, जबकि थाइमिन केवल डी.एन.ए. में ही मिलता है और आ.एन.ए. में यूरेसिल मिलता है। अन्य दुर्लभ नाभिकीय अम्ल क्षार भी हो सकते हैं, जैसे आइनोसिन विकसित टआंस्फर आर.एन.ए. में।

नाभिकीय अम्ल प्रायः या तो एकल-सूत्री या द्वि-सूत्री होते हैं; यद्यपि तीन या अधिक सूत्रों वाले ढाँचे भी बन सकते हैं। एक द्वि-सूत्री नाभिकीय अम्ल में दो एकल-सूत्री नाभिकीय अम्ल हाइड्रोजन बंध द्वारा जुड़े रहते हैं, किन्तु कोई एक सूत्र भी वापस मुड़ कर द्वि-सूत्र जैसा जुड़ सकता है, जैसा कि टी-आर.एन.ए. एवं आर-आरएनए में होता है। कोशिका के भीतर, डीएनए प्रायः द्विसूत्री होता है, यद्यपि कुछ विषाणुओं में एकल-सूत्री डी.एन.ए. भी होता है, जो उनका जीनोम होता है। रिट्रोवायरस का जीनोम एकल सूत्री आ.एन.ए. ही होता है।

नाभिकीय अम्ल में शर्करा और फॉस्फेट, एक-दूसरे से एकांतरित शृंखला में जुड़े रहते हैं, जो साझे ऑक्सीजन परमाणुओं द्वारा जुडे रहते हैं, जिनसे फॉस्फोडिस्टर बन्ध बना रहता है। पारंपरिक नोमेन्क्लेचर में नाभिकीय अम्ल में वे कार्बन परमाणु, जिनमें फॉस्फेट समूह जुड़ता है, वे शर्करा के तीसरे एवं पाँचवें कार्बन होते हैं। इससे नाभिकीय अम्ल को ध्रुवता मिलती है। ये क्षारक, एक ग्लाइकोसिडिक लिंकेज को पैन्टोज़ शर्करा वलय के पहले कार्बन तक जोड़ते हैं। क्षारक पायरिमिडाइन के एन-१ एवं प्यूराइन के एन-९ को राइबोज़ के प्रथम कार्बन से एन-बीटा ग्लाइकोसिल बन्ध द्वारा जोड़ते हैं।

नाभिकीय अम्ल के प्रकार

राइबोनाभिकीय अम्ल

साँचा:main राइबोनाभिकीय  अम्ल, या आर.एन.ए. एक नाभिकीय अम्ल का पॉलीमर होता है; जिसके मोनोमर न्यूक्लियोटाइड होते हैं। यह जीन द्वारा डी एन ए से प्रोटीन में, अनुवांशिक सूचना की प्रतिलिपि करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह डी.एन.ए एवं प्रोटीन समूह (राइबोसोम) के बीच संदेशवाहक का कार्य करता है, राइबोसोम का जीवंत भाग बनता है और इसके साथ ही यह प्रोटीन संश्लेषण में प्रयोग हेतु अमीनो अम्ल के लिए, आवश्यक वाहक अणु का कार्य भी करता है।

निरजारराइबोनाभिकीय (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक) अम्ल

साँचा:main निरजारराइबोनाभिकीय अम्ल वह नाभिकीय अम्ल होता है, जिसमें सभी प्राणियों के विकास एवं प्रकार्य के लिए अनुवांशिक सूचना सुरक्षित रहती है। इस अणु की प्रमुख भूमिका लंबे समय तक अनुवांशिक सूचना का भंडारण करना है, जो कि नक्शों के ब्लूप्रिंट्स रखने के बराबर है; क्योंकि इसमें कोशिका के घटकों के निर्माण की सूचना लिखी रहती है। डी.एन.ए के वे भाग, जो यह सूचना भंडारण करते हैं; उन्हें जीन कहते हैं। डी.एन.ए शृंखलाओं का संरचनागत उद्देश्य होता है, जो अनुवांशिक सूचना को नियंत्रित करता है।

नाभिकीय अम्ल के घटक

न्यूक्लियो क्षारक

साँचा:main न्यूक्लियो क्षारक हैटरोसाइक्लिक ऐरोमैटिक कार्बनिक मिश्रण होते हैं, जिनमें नाइट्रोजन परमाणु होते हैं। ये आ एन ए एवं डी एन ए के वे भाग होते हैं, जो बेस-पेयरिंग में संलग्न होते हैं। साइटोसिन, गुवानाइन, ऐडिनाइन और थाइमिन डी एन ए में मिलते हैं, जबकि आ.एन.ए. में थाइमिन के स्थान पर यूरेसिल होता है। इन्हें लघु रूप में क्रमशः सी = C, जी = G, ए= A, टी = T, एवं यू = U, कहते हैं।

न्यूक्लियोसाइड

न्यूक्लियोटाइड एवं डीऑक्सीन्यूक्लियोटाइड

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इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  • कीथ रॉबर्ट्स, मार्टिन रैफ, ब्रूस एल्बर्ट्स, पीटर वॉल्टर, जूलियन लेविस एवं एलेक्ज़ेंडर जॉनसन, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ऑफ द सेल चतुर्थ संस्करण, राउट्लेज, मार्च, 2002, हार्डकवर, 1616 पृष्ठ, 7.6 पाउण्ड, ISBN 0-8153-3218-1

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