नीलमत पुराण

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

नीलमत पुराण एक प्राचीन ग्रन्थ (६ठी से ८वीं शताब्दी का) है जिसमें कश्मीर के इतिहास, भूगोल, धर्म एवं लोकगाथाओं के बारे में बहुत सारी जानकारी है।

नीलमत पुराण, कश्मीर के इतिहास से सम्बन्धित सबसे प्राचीन पुस्तक है। कल्हण के अनुसार ईसा पूर्व 1182 के आसपास अभिमन्यु प्रथमगोनन्द तृतीय के शासनकाल के दौरान चंद्र देव ने इसे संकलित किया। ऋषि कश्यप के पुत्र नील को इसका रचयिता माना जाता है। लेकिन इस पुराण को १८ पुराणों में स्थान नहीं प्राप्त है।

इसमें कश्मीरी कर्मकाण्डों व रीतियों का विवरण है। साथ ही, कश्मीर के उद्भव, वुलर झील आदि के उद्भव के बारे में कहानियां भी नीलमत पुराण में हैं। कश्मीर के उद्भव की सबसे पुरानी कथा इसी नीलमत पुराण से ली जाती है।

नीलमत पुराण के अरम्भ में वैश्यम्पायनजन्मेजय का संवाद है। जन्मेजय पूछते हैं कि कश्मीर के राजा को महाभारत युद्ध से दूर क्यों रखा गया? इसके उत्तर में वैश्यम्पायन एक कथा सुनाते हैं, ‘महाभारत से पहले, मथुरा में यादवों के विरुद्ध युद्ध में कश्मीर का राजा गोनन्द मारा जाता है। गोनन्द जरासंध की ओर से लड़ रहा था। गोनन्द का पुत्र दामोदर अपने पिता का बदला लेने की ठानता है। जब उसे पता चलता है कि श्रीकृष्ण स्वयंवर में हिस्सा लेने के लिए गांधार आए हुए हैं तो वह चौहरी सेना के साथ हमला करता है लेकिन श्रीकृष्ण के हाथों मारा जाता है। कश्मीर की पवित्रता की महत्ता को समझते हुए अंतर्यामी श्रीकृष्ण स्वयं कश्मीर आकर दामोदर की गर्भवती पत्नी यशोवती के राज्याभिषेक का आयोजन करते हैं। कुछ दिनों पश्चात यशोवती पुत्रवती हो जाती है, पुत्र का नाम बालगोनन्द रखा जाता है। जब महाभारत शुरू हुआ तब बालगोनन्द की उम्र बहुत कम थी और इसलिए महाभारत के युद्ध में कश्मीर के राजा को आमंत्रित नहीं किया गया।

नीलमत पुराण में वैश्यम्पायन कहते हैं कि कश्मीर पार्वती का भौतिक प्रकटीकरण है और इसीलिए श्रीकृष्ण स्वयं यशोवती के राज्याभिषेक के लिए गए थे। पूर्व मनवन्तरों में यहां सतीसरस नाम की एक विशाल झील हुआ करती थी। इस पर जन्मेजय ने प्रश्न किया कि यह झील मनोहारी घाटी के रूप में परिवर्तित कैसे हुई? वैशम्पायन ने कहा कि यही प्रश्न गोनन्द ने तीर्थाटन के क्रम में कश्मीर पहुंचे ऋषि वृहदस्व से पूछा था।

इस पुराण में गोनन्द और वृहदस्व के बीच संवाद में यह बताया गया है कि कश्मीर अस्तित्व में कैसे आया। कश्मीर का चित्रण करते हुए वृहदस्व बताते हैं कि दक्ष प्रजापति की पुत्री और महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू के पुत्र नगाओं ने कद्रू की बहन विनता व उसके पुत्र को दास बना रखा था। विनता भी महर्षि कश्यप ऋषि की पत्नी थी। विनता के पुत्र गरुड ने इन्द्र से वरदान प्राप्त किया कि वह नगाओं का भक्षण कर सकेगा। इससे नगाओं का नाश होने लगा। अपने वंश को नाश होता देख नगाओं ने भगवान विष्णु को प्रसन्न कर उनकी मदद से सतीसरस झील में शरण ली और नीला को अपना राजा नियुक्त किया।

एक कथा जलोद्भव की है। एक बार देवताओं के राजा इन्द्र अपनी पत्नी सची के साथ रमण के लिए कश्मीर आए। यहां सची की सुन्दरता देखकर संग्रह नाम के एक दैत्य ने सची का बलात्कार करने का प्रयत्न किया किन्तु सची के सौन्दर्य में बिंधकर पहले ही स्खलित हो गया और उसका वीर्य सतीसरस के पानी में गिरा। इस वीर्य से जन्मा जलोद्भव। जलोद्भव का लालन-पालन नगाओं ने ही किया। उसने तप करके ब्रह्मा से जल में अभय का वरदान प्राप्त कर लिया। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, उसमें दैत्यों के सभी गुण आ गये। नाग उससे बहुत त्रस्त हुए। एक बार महर्षि कश्यप तीर्थाटन के लिए हिमालय आए तो नीला उनसे जाकर मिला और जलोद्भव के बारे में बताया। तीर्थाटन खत्म कर महर्षि कश्यप जब देवलोक पहुंचे तो उन्होंने सभी देवताओं को राजी किया। ब्रह्मा, विष्णु व महेश समेत सभी देवता सतीसरस पहुंचे लेकिन जलोद्भव को जल में अभय प्राप्त था। अन्त में सतीसरस का पानी बारामुला की तरफ निकाला गया और इस तरह सतीसरस सूख जाने से जलोद्भव मारा गया। इस तरह सतीसरस की भूमि कश्मीर कहलाई और ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने अपना निवास यहां बनाया।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ