नागरी एवं भारतीय भाषाएँ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

विनोबा जी की मान्यता थी कि-

- सभी भारतीय भाषाओं के लिए देवनागरी का प्रयोग हो, इससे राष्ट्रीय एकता और अन्तरराष्ट्रीय सद्भाव लाने में सहायता मिलेगी।

विनोबा जी राष्ट्र संत थे। वे सभी के अभ्युदय की कामना करते थे। सर्वोदय आंदोलन का उद्देश्य भी यही था। वे न किसी पार्टी के थे न किसी प्रदेश के, वे तो भारत के थे मानवता के थे। आजीवन उन्होंने स्वयं को सर्वाभ्युदय में लगाए रखा। उनके कार्य सब के हित के लिए होते थे लिपि के बारे में भी उनके विचार सर्वहित से प्रेरित हैं।

बिनोबा - अनेक भाषा और लिपियों के ज्ञाता

विनोबा जी देश विदेश की अनेक भाषाएं और लिपियां जानते थे। चीनी जापानी जैसी लिपियों का भी उन्होंने अध्ययन किया था। इसी भाषा और लिपियों के व्यामोह में उनकी आंखें कमजोर हो गईं। अन्त में वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सभी भाषाओं को एक सामान्य लिपि में लिखा जाए इससे विविध भाषाओं के ज्ञान विज्ञान का भंडार मानव को अल्प प्रयास में ही प्राप्त हो जायेगा 1972 में उन्होंने लिखा था कि-

‘इन दिनों मेरा एक फैड है। मैं नागरी लिपि पर जोर दे रहा हूं। मेरा अधिक ध्यान नागरी लिपि को लेकर चल रहा है। नागरी लिपि हिन्दुस्तान की सब भाषाओं के लिए चले तो हम सब लोग बिल्कुल नजदीक आ जायेंगे। खासतौर से दक्षिण की भाषाओं को नागरी लिपि का लाभ होगा। वहां की चार भाषाएं अत्यन्त नजदीक हैं। उनमें संस्कृत शब्दों के अलावा उनके अपने जो प्रान्तीय शब्द हैं, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम के उनमें बहुत से शब्द समान हैं। वे शब्द नागरी लिपि में अगर आ जाते हैं तो दक्षिण की चारों भाषाओं के लोग चारों भाषाएं 15 दिन में सीख सकते हैं। इतना आसान हो जायेगा इसके बाद।‘

‘भिन्न-भिन्न लिपि सीखने में हर एक की अपनी-अपनी परिस्थिति आड़े आती हैं। मैंने हिम्मत की, हिन्दुस्तान की हर एक लिपि का अध्ययन किया। परिणाम में विचार आया कि दूसरी लिपियां चलें उसका मैं विरोध नहीं करता। मैं तो चाहता हूं वे भी चलें और नागरी भी चले। मैं बैंगलोर की जेल में था वहां डेढ़ दो साल रहा। वहां मैंने दक्षिण भारत की चार भाषाएं सीखना एकदम शुरू किया। जेल में विभिन्न भाषाओं के लोग थे। तो किसी ने मुझसे पूछा विनोबा जी, आप चार भाषाएं एकदम से क्यों सीख रहे हैं। मैंने कहा- पांच नहीं हैं इसलिए अगर पांच होतीं तो पांच ही सीखता। चार ही हैं इसलिए चार ही सीख रहा हूं। मैंने देखा कि उन भाषाओं में अत्यंत समानता है। केवल लिपि के कारण ही वे परस्पर टूटी हैं एक नहीं बन पा रही हैं।‘