नई दिल्ली का पुरनिवेश

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दिसंबर १९११ में इंग्लैंड के राजा, पंचम जार्ज के स्वागत में शाहजहाँनाबाद (अर्थात् पुरानी दिल्ली) के उत्तर की ओर एक विशाल राज्यारोहण दरबार लगा। अनेक राजनीतिक कारणों से यह निश्चय किया जा चुका था कि भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लाई जाए। दरबार में ही इसकी घोषणा भी कर दी गई और तभी नई राजधानी का शिलान्यास भी हो गया।

इंपीरियल दिल्ली कमेटी

भारत सरकार के अनुरोध पर नई राजधानी की स्थिति और विन्यास के संबंध में सलाह देने के लिए विशेषज्ञों की एक 'दिल्ली नगर विन्यास समिति' बनाई गई, जिसके अध्यक्ष स्वयं लंदन काउंटी कौंसिल के मनोनीत अध्यक्ष कप्तान जॉर्ज एस.सी. स्विंटन थे। समिति ने दो रिपोर्टें प्रस्तुत की। एक स्थल के चुनाव के संबंध में और दूसरी, नए नगर के विन्यास पर। उन्होंने पुरानी दिल्ली के दक्षिण का स्थान उपयुक्त समझा, यद्यपि नई राजधानी की आधारशिला सम्राट् और सम्राज्ञी के हाथों उत्तर की ओर ही रखी जा चुकी थी।

रिपोर्ट स्वीकृत होने के अनंतर विशेषज्ञों की योजना के क्रियान्वयन के लिए 'इंपीरियल दिल्ली कमेटी' बनी, जिसने तात्कालिक आवश्यकताएँ दृष्टि में रखते हुए, उस पूर्ण विकसित बृहत्तर दिल्ली के विन्यास में कुछ परिवर्तन किए गए। इन परिवर्तनों के अतिरिक्त बृहत्तर दिल्ली की लगभग सारी योजनाएँ क्रियान्वित की गई।

नई राजधानी योजना

योजना का पहला अनुमान, जो दिसंबर, १९१३ में तैयार हुआ, १०.५० करोड़ रुपए का था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद निर्माण-सामग्री, मजदूरी, मशीनों और ढुलाई आदि में काफी महँगाई आ गई थी। सन् १९१९ के राजनीतिक सुधारों के फलस्वरूप निर्माण कार्यक्रम में काफी विस्तार की आवश्यकता भी अनुभव हुई, क्योंकि नवनिर्मित विधानसभा के लिए भवन एवं उसके सदस्यों के लिए निवास बनाना अनिवार्य था। इसलिए भारत सरकार ने नई दिल्ली के लिए १३०७ करोड़ रुपए का एक परिशोधित अनुमान मंजूर किया।

नई दिल्ली के मुख्य वास्तुविद् और निर्माता सर एडविन ल्यूटेंस थे जो आद्योपांत योजना को क्रियान्वित करने में लगे रहे, किंतु प्रमुख निर्णयों में हर्बर्ट बेकर का ही प्रभाव अधिक रहा। राजभवन और सचिवालय भवनों के तल के संबंध में ल्यूटेंस का विचार था कि शासक का भवन उसके कर्मचारियों के स्थान से बहुत ऊँचा रहना चाहिए, किंतु बेकर के लोकतंत्रीय विचारों को मान्यता दी गई और इनका तल एक ही रखा गया। नई दिल्ली के विन्यास की विशेषता है इसकी सड़कों में त्रिकोणीय सर्वेक्षण का संस्मरणात्मक अनुसरण। सारा विन्यास सुव्यवस्थित त्रिभुजों में बँटा है और महत्वपूर्ण भवन इस प्रकार रखे गए हैं कि वे चारों ओर मीलों दूरी पर सड़क पर चलनेवालों की दृष्टि आकर्षित कर लेते हैं। महत्वपूर्ण स्थानों की स्थिति बताने के लिए 'ए' बिंदु, 'क्यू' बिंदु, 'डी आई ज़ेड' क्षेत्र आदि का संदर्भ अब भी दिया जाता है।

प्रारंभिक अनुमान से बहुत अधिक व्यय होने पर भी, योजना पूरी होने में आशातीत विलंब हो रहा था। इसलिए भारत सरकार ने १८२२ ई. में एक नई राजधानी जाँच समिति बनाई, जिसने भली-भाँति छानबीन की। अधिकांश काम समाप्ति के अंतिम चरण पर था, अत: कुछ विशेष परिवर्तन संभव न था। फिर भी उन्होंने कटौती के मामूली सुझाव दिए और योजना के विभिन्न अंगों के लिए समापन की अक्टूबर, १९२४ से अक्टूबर, १९२९ तक की विभिन्न तिथियाँ नियत कर दी।

आधुनिक नई दिल्ली

नई राजधानी योजनापूर्ण होने के बाद भी नगरी का विकास होता रहा। जिन लोगों ने प्लॉट खरीद रखे थे, उन्होंने तो अपनी अपनी जायदादें खड़ी की ही, सरकार के लिए भी तत्कालीन पूर्ण विकसित नई दिल्ली छोटी पड़ गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ही दक्षिण की ओर द्रुत गति से प्रसार आरंभ हो गया। अभी तक नई दिल्ली का प्रसार प्राय: क्षैतिज ही था। स्मारकीय, इमारती और निजी संपत्ति को छोड़कर, शेष नई दिल्ली एकमंजिली थी। बँगलों में बड़े-बड़े होते रखे जाते थे। उनमें सरकारी खर्च से बड़े-बड़े उद्यान रखे जाते थे। किंतु विस्तार को देखते हुए जब जमीन कम पड़ने लगी, तब सरकारी मकान भी दुमंजिले बनने आरंभ हुए। दक्षिण में लगभग ढाई हजार दुमंजिले फ्लैटों की लोदी बस्ती सन् ४४-४५ में लगभग ९ मास में ही तैयार हुई, जिसमें औसतन् १० फ्लैट प्रति दिन बने।

स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद राजधानी और भी फैली। बस्तियों पर बस्तियाँ बनती गई। सन् १९५२-५३ में विदेशी दूतावासों के लिए एक विशाल बस्ती चाणक्यपुरी नाम से तैयार हुई। सरकारी दफ्तरों का भी विस्तार हुआ। नई दिल्ली के रूप में स्वीकृत बृहत्तर दिल्ली की आरंभिक योजना से कई गुना अधिक विस्तार हो चुका था और इससे भी कई गुना अधिक विस्तारवाली एक नई 'बृहत्तर दिल्ली' योजना बनी। अब नई दिल्ली एक नगरी नहीं, बल्कि कोड़ियों नगरों को अपनी गोद में स्थान देनेवाली महानगरी हो गई है।

नई दिल्ली एक उपमहाद्वीप की राजधानी है। इसके गगनचुंबी भवन, मुख्य स्थानों से आरों जैसी विकीर्ण सड़कों का ज्यामितीय विन्यास, जगह-जगह पार्कों और चौराहों को साल भर लहलहाती दूव, फूलों से मुस्कराते उद्यानों को बारहमासी बहार, धूल रहित मार्गों के दोनों ओर सुनियोजित वीथियाँ एवं विद्युत् प्रकाश से सजे चित्र विचित्र फुहारे दर्शनीय हैं। रमणीकता की दृष्टि से विदेशी दूतावासों का अपना ही स्थान है। फिर राजघाट, जहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का दाह संस्कार हुआ था, शांतिवन, जहाँ शांतिदूत नेहरू का पार्थिव शरीर भस्म हुआ तथा विजयघाट, जहाँ लालबहादुर शास्त्री का दाह संस्कार हुआ, केवल देशवासियों के लिए ही श्रद्धास्थल नहीं, बल्कि सारे संसार के लिए ही तीर्थस्थल बन गए हैं।

नई दिल्ली का चिड़ियाघर, जिसमें देश के ही नहीं विदेशों के भी अनेक पशुपक्षी पाले गए हैं, लगभग २४० एकड़ का रमणीक उद्यान है। बुद्ध जयंती पार्क भी अंतरराष्ट्रीय ख्याति का विशाल उद्यान है।

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