धार्मिक अध्ययन

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काठगढ़ महाशिवरात्रि पर विशेष विश्वभर में काठगढ़ शिवशक्ति महादेव का शिवलिंग अद्भुत,अलौकिक व विश्व की दिव्य शक्तियों का केन्द्रीय स्थल है शिवशक्ति शिवलिंग दर्शन करते मन नहीं भरता

     (स्वतन्त्रत लेखक/पत्रकार राम प्रकाश ज्योतिषी )
शिवरात्रि के पावन पर्व पर काठगढ़ में शिवशक्ति स्वयं यहां प्रत्यक्ष अपनी अनुभूतियों का आभास करवाते हैं । असंख्य श्रद्धालु शिव लिंग के उपर जल अभिषेक करके वह अपनी श्रद्धा अनुसार पूजा अर्चना करके शिव पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ।
                  विश्व स्तर पर भगवान शिव शंकर के असंख्य शिव लिंग व शिव मन्दिर है । जो स्वयं ही अलौकिक शक्तियों से सुसज्जित व साक्षात भोलेनाथ महादेव का ज्योति स्वरूप है । विश्वभर में काठगढ़ महादेव का शिवलिंग अद्भुत, अलौकिक व विश्व की दिव्य शक्तियों का केन्द्रीय स्थल है । इस शिवलिंग के दो भाग हैं जो एक साथ है । एक शिव व दूसरा शाक्ति माता पार्वती का प्रतीक है ।  इस दिव्य स्थल पर पहुंचते  ही दिव्य शक्तियों का अनुभूति होने लगती है।  काठगढ़ शिवशक्ति शिवलिंग लिंग के दर्शन करते ही  बरवस मन शिव भक्ति में रमने लगता है ।  शिव भगतजनो के लिए यह स्थल साक्षात् शिवशक्ति का प्रत्यक्ष दर्शन व अनुभूति का ध्यान स्थल है । चाहे राजा हो या रंक जो भी  इनके साक्षात दर्शन करने आते हैं  शिवशक्ति उन्हें अपने शरण में ले लेती है । काठगढ़ शिवशक्ति शिव लिंग के दर्शन मात्र से तीनों जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। भोलेभंडारी सभी सांसारिक दैविक भौतिक दैहिक संतापो का नाश कर देते हैं ।

संतो, महात्माओं व ऋषियों के कथन अनुसार इस शिवलिंग का संबन्ध सृष्टि की उत्पत्ति से है । वैसे इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है ।हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित काठगढ़ महादेव का मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां दो भागों में बंटा ‌शिवलिंग हैं।माना जाता है कि मां पार्वती और भगवान शिव के दोनों भागों के बीच का अंतर घटता बढ़ता रहता है। यह अंतर ग्रहों व नक्षत्रों के परिवर्तित होने के अनुसार ही बदलता रहता । विशेषता :- सर्दियों में यह दो पाषाण वाला शिवलिंग धीरे धीरे एक हो जाता है और गर्मियों में धीरे धीरे अलग हो जाता है अनुमानित तीन इंच का अन्तर रहता है । यह प्रकृति का नियम सृष्टि के सर्जन से चल रहा है ।

                काठगढ़ शिव मन्दिर का शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार ब्रह्मा व विष्णु भगवान के मध्य बड़प्पन को लेकर युद्ध हुआ था। भगवान शिव इस युद्ध को देख रहे थे।  युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव महाग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। इसी महाग्नि तुल्य स्तंभ को काठगढ़ में  विराजमान महादेव का शिवलिंग स्वरूप माना जाता है। इसे अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है। आदिकाल से स्वयंभू प्रकट सात फुट से अधिक ऊंचा, छह फुट तीन इंच की परिधि में भूरे रंग के रेतीले पाषाण रूप में यह शिवलिंग ब्यास व छौंछ खड्ड के संगम के नजदीक टीले पर विराजमान है। यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित है। छोटे भाग को मां पार्वती तथा ऊंचे भाग को भगवान शिव के रूप में माना जाता है। मान्यता अनुसार मां पार्वती और भगवान शिव के इस अर्द्धनारीश्वर के मध्य का हिस्सा नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है
                इतिहास में वर्णन है कि सिख राजा रणजीत सिंह ने इस जगह की महानता को देखकर यहां मंदिर भी बनवाया था।   काठगढ़ मंदिर के सौंदर्यीकरण के बारे में कथा मिलती है कि महाराजा रणजीत सिंह को यह धाम अत्‍यंत प्रिय था। उन्‍होंने अपने शासनकाल के दौरान मंदिर का विस्‍तार किया। उनकी काठगढ़ मंदिर के प्रति इतनी अगाध आस्‍था थी कि वह प्रत्‍येक शुभ कार्य में मंदिर के समीप ही स्थित कुएं का जल प्रयोग करते थे।  इतिहास का मुख्य अध्याय यूनानी राजा सिकंदर से भी जुड़ा है। कहा जाता है- 326 ई. पूर्व जब सिकंदर भारत में तबाही मचाते हुए आगे बढ़ रहा था तो एक यही मंदिर था जहां से उसकी सेनाएं आगे नहीं बढ़ पाई थी। लाख के बावजूद जब सिकंदर आगे नहीं बढ़ पाया तो इस जगह की महानता को समझा। बाद में यहां उसने यूनानी कला से लबरेज चबूतरे भी बनवाए। आज भी मंदिर परिसर में यूनानी कला की कृतियां देखने को मिल जाएंगी।मंदिर परिसर में आज भी यूनानी कलाकृतियां देखने को मिल जाएंगी। सेना आगे बढ़ती देख सिकंदर हताश हो गया था। उसी को दर्शाता एक बुत यहां लगाया गया है। किंवदंती है कि पहले यहां गुज्जर रहते थे। उन्होंने इस पत्थर को तोड़ना चाहा। नहीं टूटा। उस समय के राजे को पता चला तो उसने सैनिक भेज पत्थर लेकर आने को कहा। मान्यता है- खुदाई करते मकौड़े यहां प्रकट हुए। जिन्होंने शिवलिंग की रक्षा की। आज भी यहां मकौड़ों की भारी संख्या देखने को मिलती है।
                        मंदिर में स्‍थापित शिवलिंग अष्‍टकोणीय है जो अष्ट दिशाओं के वोध का प्रतीक है। शिव के रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई तो 8 फुट है वहीं माता पार्वती के रूप में पूजे जाने वाले हिस्‍से की ऊंचाई 6 फुट है।

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार काठगढ़ मंदिर मर्यादा पुरुषोत्‍तम श्री राम के अनुज भ्राता भरत को अत्‍यंत प्रिय था। यही नहीं इसे उनकी आराध्‍य स्‍थली भी कहा जाता है। कथानकों के अनुसार भरत जी जब भी अपने ननिहाल कैकेय देश जाते तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करते। इसके अलावा जब कभी उन्‍हें मौका मिलता तो भी इस स्‍थान पर भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करने आते थे।

 पठानकोट से 20   किलोमीटर दूर है काठगढ़ मन्दिर ।दिल्ली, चंडीगढ़, हरिद्वार, जम्मू कश्मीर, शिमला,चंवा, जालन्धर, अमृतसर  से वाया तलवाड़ा पंजाब, वाया जसूर हिमाचल,वाया पठानकोट  हवाई मार्ग, परिवहन, रेल मार्ग इस स्थल तक पहुंच सकते हैं ।
                महाशिवरात्रि

आमतौर पर शिव रात्रि का व्रत हर माह आता है जिसे हम मासिक शिवरात्रि कहते है, लेकिन माघ के महीने में कृष्णा पक्ष की चतुर्दर्शी तिथि को महाशिवरात्री मनाई जाती है।

     1 मार्च 2022 महाशिवरात्रि का मुहूर्त ।

निशीथ काल पूजा मुहूर्त – सुबह 12 बजकर 8 मिनट से लेकर 12 बजकर 58 मिनट तक। जिसकी समय सीमा करीब 50 मिनट की रहेगी। महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त – सुबह 6 बजकर 45 मिनट, दिन 2 मार्च। चतुर्दर्शी तिथि प्रारम्भ- 1 मार्च 2022 को सुबह 3 बजकर 16 मिनट पर। चतुर्दर्शी तिथि समाप्त- 2 मार्च 2022 को सुबह 1 बजे।



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