धनुषकोडी

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Dhanushkodi
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प्रान्ततमिल नाडु
ज़िलारामनाथपुरम ज़िला
भाषा
 • प्रचलिततमिल
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

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धनुषकोडी (Dhanushkodi), जिसे धनुषकोटी या दनुशकोडी भी कहा जाता है, भारत के तमिल नाडु राज्य के रामनाथपुरम ज़िले में रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणपूर्वी कोने में स्थित एक भूतपूर्व नगर है। यह पाम्बन से दक्षिणपूर्व में और श्रीलंका में तलैमन्नार से साँचा:convert पश्चिम में स्थित है। धनुषकोडी नगर 1964 रामेश्वरम चक्रवात में ध्वस्त हो गया था और इसे फिर नहीं बसाया गया। धनुषकोडी और भारत की मुख्यभूमि के बीच पाक जलसंधि है।[१][२][३]

1964 का चक्रवात

धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच केवल स्‍थलीय सीमा है जो पाक जलसन्धि में बालू के टीले पर सिर्फ 50 गज की लंबाई में विश्‍व के लघुतम स्‍थानों में से एक है। 1964 के चक्रवात से पहले, धनुषकोडी एक उभरता हुआ पर्यटन और तीर्थ स्‍थल था। चूंकि सीलोन (अब श्रीलंका) केवल 18 मील दूर है, धनुषकोडी और सिलोन के थलइमन्‍नार के बीच यात्रियों और सामान को समुद्र के पार ढ़ोने के लिए कई साप्‍ताहिक फेरी सेवाएं थीं। इन तीर्थयात्रियों और यात्रियों की आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए वहां होटल, कपड़ों की दुकानें और धर्मशालाएं थी। धनुषकोडी के लिए रेल लाइन- जो तब रामेश्‍वरम नहीं जाती थी और जो 1964 के चक्रवात में नष्‍ट हो गई- सीधे मंडपम से धनुषकोडी जाती थी। उन दिनों धनुषकोडी में रेलवे स्‍टेशन, एक लघु रेलवे अस्‍पताल, एक पोस्‍ट ऑफिस और कुछ सरकारी विभाग जैसे मत्‍स्‍य पालन आदि थे। यह इस द्वीप पर जनवरी 1897में तब तक था, जब स्‍वामी विवेकानंद सितंबर 1893 में यूएसए में आयोजित धर्म संसद में भाग लने के लेकर पश्‍चिम की विजय यात्रा के बाद अपने चरण कोलंबो से आकर इस भारतीय भूमि पर रखे.

चक्रवात से पहले, मद्रास एग्‍मोर (अब चेन्‍नई एग्‍मोर) से बोट मेल कही जाने वाली रेल सेवा थी और यह सिलोन के लिए फेरी के द्वारा यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए लिंक रेल थी। 1964 के चक्रवात के दौरान, 20 फीट की व्‍यापक लहर शहर के पूर्व से पाक खाड़ी/जलसंधि से शहर पर आक्रमण करते हुए आई और पूरे शहर को नष्‍ट कर दिया, एक यात्री रेलगाड़ी और पंबन रेल सेतु-दुखद रूप से यह सब रात में घटित हुआ।

तूफान कई मायनों में अनोखा था। यह 17 दिसम्बर 1964 को दक्षिणी अंडमान समुद्र में 5 डिग्री उत्तर 93 डिग्री पूर्व में अपने केंद्र के साथ दबाव के निर्माण के साथ प्रारंभ हुआ। 19 दिसम्बर को यह एक तीव्र चक्रवातीय तूफान के रूप में परिणत हो गया। इतनी कम अक्षांश पर अवसाद के गठन 5 डिग्री उत्तर के कम अक्षांश पर दबाव का निर्माण भारतीय सागर में दुर्लभ है हालांकि केंद्र के 5 डिग्री के भीतर टायफून के विकसित होने के ऐसे मामले उत्तरी पश्‍चिमी प्रशांत में आए हैं। रामेश्वरम का तूफान केवल इतनी कम अक्षांश पर नहीं निर्मित हुआ था लेकिन यह लगभग उसी अक्षांश एक भयंकर चक्रवातीय लहर के रूप में तीव्र हो गया जो वास्‍तव में एक दुलर्भ घटना है। 21 दिसम्बर 1964 के बाद, 250 से 350 मील प्रति घंटे की दर से इसकी गति, लगभग एक सीधी रेखा में, पश्‍िचम की ओर हो गई। 22 दिसम्बर को यह सीलोन के वावुनिया (अब श्रीलंका कहा जाता है) को 150 केटीएस (लगभग 270 कि.मी/घंटा) की वायु की तीव्रता के साथ पार कर गया, रात में पाक स्‍ट्रीट में पवेश कर गया और 22-23 दिसम्बर 1964 की रात में रामेश्‍वरम द्वीप के धनुषकोडी से टकरा गया। यह अनुमान लगाया गया था कि जब इसने रामेश्‍वरम को पार किया तो समुद्री लहरें 8 गज उंची थी। शशि एम कुलश्रेष्‍ठ और मदन जी गुप्ता द्वारा 'रामेश्‍वरम के तूफान का उपग्रह अध्‍ययन' शीर्षक तूफान का वैज्ञानिक अध्‍ययन इन लिंक पर दिया गया है।

उस दुर्भाग्‍यपूर्ण रात (22 दिसंबर) को 23.55 बजे धनुषकोडी रेलवे स्‍टेशन में प्रवेश करने के दौरान, ट्रेन संख्‍या 653, पंबन-धनुषकोडी पैसेजंर, एक दैनिक नियमित सेवा जो पंबंन से 110 यात्रियों और 5 रेलवे कर्मचारियों के साथ रवाना हुई, यह एक व्‍यापक समुद्री लहर के चपेट में तब आई जब यह धनुषकोडी रेलवे स्‍टेशन से कुछ ही गज दूर थी। पूरी ट्रेन सभी 115 लोगों को मौत के साथ बहा ले जाई गई। कुल मिलाकर 1800 से अधिक लोग चक्रवाती तूफान में मारे गए। धनुषकोडी के सभी रिहायशी घर और अन्‍य संरचनाएं तूफान में बर्बाद हो गए। इस द्वीप पर करीब 10 किलोमीटर से चलती हुई लहरीय हवाएं चलीं और पूरे शहर को बर्बाद कर दिया। इस विध्‍वंस में पंबन सेतु उच्‍च लहरीय हवाओं द्वारा बहा दिया गया। प्रत्यक्षदर्शी स्‍मरण करते हैं कि हलोरे लेता पानी कैसे केवल रामेश्‍वरम के मुख्‍य मंदिर के ठीक करीब ठहर गया था जहां सैकड़ों लोग तूफान के कहर से शरण लिए थे। इस आपदा के बाद, मद्रास सरकार ने इस शहर को भूतहा शहर के रूप में और रहने के लिए अयोग्‍य घोषित कर दिया। केवल कुछ मछुआरे अब वहाँ रहते हैं।

धनुषकोडी पीड़ितों के लिए स्मारक

धनुषकोडी बस स्टैंड के पास एक स्‍मारक में निम्‍नलिखित कहा गया है: "उच्च गति और उच्च ज्‍वारीय हवाओं के लहरों के साथ एक तूफानी चक्रवात ने धनुषकोडी को 22 दिसम्बर 1964 की आधी रात से 25 दिसम्बर 1964 की शाम तक तहस नहस कर दिया जिससे भारी नुकसान हुआ और धनुषकोडी का पूरा शहर बर्बाद हो गया।

यात्रा

हालांकि रामेश्‍वरम और धनुषकोडी के बीच एक रेलवे लाइन थी और एक यात्री रेलगाड़ी नियमित रूप से चलती थी, तूफान के बाद रेल की पटरियां क्षतिग्रस्‍त हो गईं और कालांतर में, बालू के टीलों से ढ़क गईं और इस प्रकार विलुप्‍त हो गई। कोई व्‍यक्ति धनुषकोडी या तो बालू के टीलों पर समुद तट के किनारे से पैदल पहुंच सकता है या मछुआरों की जीप,बस या टेम्‍पो से.

भगवान राम से संबंधित यहां कई मंदिर हैं। यह सलाह दी जाती है कि गांव में समूहों में दिन के दौरान जाएं और सूर्यास्‍त से पहले रामेश्‍वरम लौट आएं क्‍योंकि पूरा 15 किमी का रास्‍ता सुनसान, डरावना और रहस्‍यमय है! पर्यटन इस क्षेत्र में उभर रहा है और हैं और यात्रियों की सुरक्षा के लिए पुलिस की उपस्‍थिति महत्‍वपूर्ण है। भारतीय नौसेना ने भी अग्रगामी पर्यवेक्षण चौकी की स्‍थापना समुद्र की रक्षा के लिए की है। धनुषकोडी में एक व्‍यक्ति भारतीय महासागर के गहरे और उथले पानी को बंगाल की खाड़ी के छिछले और शांत पानी से मिलते हुए देख सकता है। चूंकि समुद यहां छिछला है, तो आप बंगाल की खाड़ी में जा सकते हैं और रंगीन मूंगों, मछलियों, समुद्री शैवाल, स्टार मछलियों और समुद्र ककड़ी आदि को देख सकते हैं।

वर्तमान में, औसनत, करीब 500 तीर्थयात्री प्रतिदिन धनुषकोडी आते हैं और त्‍योहार और पूर्णिमा के दिनों में यह संख्‍या हजारों में हो जाती है, जैसे नए . निश्‍चित दूरी तक नियमित रूप से बस की सुविधा रामेश्वरम से कोढ़ान्‍डा राम कोविल (मंदिर) होते हुए उपलब्ध है और कई तीर्थयात्री को, जो धनुषकोडी में पूर्जा अर्चना करना चाहते हैं, निजी वैनों पर निर्भर होना पड़ता है जो यात्रियों की संख्‍या के आधार पर 50 से 100 रूपयों तक का शुल्‍क लेते हैं। संपूर्ण देश से रामेश्‍वरम जाने वाले तीर्थयात्रियों की मांग के अनुसार, 2003 में, दक्षिण रेलवे ने रेल मंत्रालय को रामेश्‍वरम से धनुषकोडी के लिए 16 किमी के रेलवे लाइन को बिछाने का प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट भेजा, इसके भाग्य के बारे में जानकारी अज्ञात है।

सूर्यग्रहण

15 जनवरी, 2010 को सूर्य ग्रहण इस जगह हुआ था।

चित्रदीर्घा

पौराणिक कथा

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार रावण के भाई विभीषण के अनुरोध पर राम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु को तोड़ दिया और इस प्रकार इसका नाम धनुषकोडी पड़ा। एक रेखा में पाई जाने वाली चट्टानों और टापुओं की श्रृंखला प्राचीन सेतु के अवशेष के रूप में दिखाई देती हैं और जिसे राम सेतु के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि काशी की तीर्थयात्रा महोदधि (बंगाल की खाड़ी) और रत्‍नाकर (हिंद महासागर) के संगम पर धनुषकोडी में पवित्र स्‍थान के साथ रामेश्‍वरम में पूजा के साथ ही पूर्ण होगी।

कैसे पहुंचे

धनुषकोडी: दिल्ली से रामेश्वरम लगभग 2800 किमी दूर है, दिल्ली से रामेश्वरम जाने के लिए दो रास्ते है या तो आप मदुरै होकर जा सकते हैं या चेन्नई होकर या आप सीधे रामेश्वरम पहुंच सकते हैं। इसके अलावा आप फ्लाइट से भी चेन्नई या मदुरै तक जा सकते है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012394
  2. "Tamil Nadu, Human Development Report," Tamil Nadu Government, Berghahn Books, 2003, ISBN 9788187358145
  3. साँचा:cite web