सूखा

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2012साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] में कर्नाटक, भारतमें सूखा प्रभावित क्षेत्र।

सूखा पानी की आपूर्ति में लंबे समय तक की कमी की एक घटना, चाहे वायुमंडलीय (औसत से नीचे है वर्षा) पानी हो, सतह का पानी हो या भूजल। सूखा महीनों या वर्षों तक रह सकता है, और इसे 15 दिनों के बाद घोषित किया जा सकता है। [१] यह प्रभावित क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र और कृषि पर काफी प्रभाव डाल सकता है [२]और स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है[३] उष्ण कटिबंध में वार्षिक शुष्क मौसमों में सूखे के विकास और बाद में होने वाली आग की संभावना में काफी वृद्धि होती है। गर्मी की अवधि जल वाष्प के वाष्पीकरण को तेज करके सूखे की स्थिति को काफी खराब कर सकती है।

सूखा दुनिया के अधिकांश हिस्सों में जलवायु की आवर्ती विशेषता है।

सूखे के प्रकार[४]

जल विज्ञान के हिसाब से सूखा तीन प्रकार का होता है। आजकल के प्रौद्योगिकविदों ने इसमें एक प्रकार और जोड़ा है। ये चार प्रकार हैं - क्लाइमैटेलॉजिकल ड्रॉट यानी जलवायुक सूखा, हाइड्रोलॉजिकल ड्रॉट यानी जल विज्ञानी सूखा, एग्रीकल्चरल ड्रॉट अर्थात कृषि संबंधित सूखा और चौथा रूप जिसे सोशिओ-इकोनॉमिक ड्रॉट यानी सामाजिक-आर्थिक सूखा कहते हैं।

अभी हम पानी के कम बरसने यानी सामान्य से 25 फीसदी कम बारिश को ही सूखे के श्रेणी में रखते हैं। इसे ही क्लाइमैटेलॉजिकल ड्रॉट यानी जलवायुक सूखा यानी जलवायुक सूखा कहते हैं। फर्ज कीजिए 12 फीसदी ही कम बारिश हुई, जैसा कि पिछली बार हुआ। अगर हम इसे सिंचाई की जरूरत के लिए रोककर रखने का इंतजाम नहीं कर पाए तो भी सूखा पड़ता है, जिसे हाइड्रोलॉजिकल ड्रॉट यानी जल विज्ञानी सूखा कहते हैं। जो पिछली बार पड़ा। दोनों सूखे न भी पड़े, लेकिन अगर हम खेतों तक पानी न पहुंचा पाएं, तब भी सूखा ही पड़ता है, जिसे एग्रीकल्चरल ड्रॉट या कृषि सूखा कहा जाता है। जो बीते साल कसकर पड़ा। चौथा प्रकार सोशिओ-इकोनॉमिक ड्रॅाट यानी सामाजिक-आर्थिक सूखा है, जिसमें बाकी तीनों सूखे के प्रकारों में सामाजिक आर्थिक कारक जुड़े होते हैं और इस स्थिति में किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति आने लगती है।

संदर्भ

  1. It's a scorcher - and Ireland is officially 'in drought' स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। Irish Independent, 2013-07-18.
  2. Living With Drought स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. Australian Drought and Climate Change स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, retrieved on June 7th 2007.
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

आगे पढ़ें

क्रिस्टोफर डी बेलाचेन, "द रिवर" ( गंगा); सुनील अम्रिथ की समीक्षा; अनियंत्रित वाटर्स: हाउ रेन्स, रिवर्स, कोस्ट्स, एंड सीस है शेप्ड द एशिया हिस्ट्री; सुदीप्त सेन, गंगा: एक भारतीय नदी के कई विस्फोट; विक्टर मैलेट, रिवर ऑफ लाइफ, रिवर ऑफ डेथ: द गंगा एंड इंडियाज फ्यूचर), द न्यूयॉर्क रिव्यू ऑफ बुक्स, वॉल्यूम। एलएक्सवीआई, नहीं। 15 (10 अक्टूबर 2019), पीपी।  34-36। "1951 में औसत भारतीय व्यक्ति को सालाना 5,200 क्यूबिक मीटर पानी मिल पाता था। यह आंकड़ा आज 1,400 है ... और संभवत: अगले कुछ दशकों में 1,000 घन मीटर से नीचे गिर जाएगा - जो कि संयुक्त राष्ट्र की 'पानी की कमी' की परिभाषा है। गर्मियों की कम वर्षा समस्या को और गम्भीर बना देती है। । । भारत की वाटर टेबल, नलकूपोंकी संख्या में वृद्धि के कारण तेज़ी से गिर रही है । भारत में पानी की मौसमी कमी के अन्य योगदान नहरों से रिसाव [और] लगातार प्यासी फसलों की बुवाई है ... ”(पृ।  35। )