दिनचर्या (आयुर्वेद)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

अष्टाङ्गहृदयम् के सूत्रस्थान में दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, का वर्णन है। दिनचर्या से तात्पर्य आहार, विहार और आचरण के नियमों से है।

१) प्रातःउत्थान २) मलोत्सर्ग ३) दन्तधावन ४) नस्य ५) गण्डूष (मुँहधावन क्रिया/कुल्ले करना) ६) अभ्यंग (तैल मालिस) ७) व्यायाम ८) स्नान ९) भोजन १०) सद्वृत्त ११) निद्रा (शयन)

ब्रह्म मुुहुुर्त मेेंं उठना

सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए क्योंकि उस समय वातावरण प्रदूषण रहित रहता है। प्राणवायु (आक्सीजन) की मात्रा सर्वाधिक रहती है। सुबह वातावरण के प्रभाव से अपने शरीर में उपयोगी रसायन स्रवित होते है जिनसे ऊर्जा एवं उत्साह का संचार होता है।

उषःपान

सुबह उठकर पानी पीने से शरीर से विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं। पाचन तन्त्र नियमित रहता है। समय से पूर्व बालों का सफेद होना एवं झुर्रियों का आना रुकता है।

ईश स्मरण /ध्यान

मन एकाग्रचित्त होता है जिससे मानसिक एवं शारीरिक तनाव दूर होता है। तनाव से होने वाली शारीरिक एवं मानसिक व्याधियां नहीं होती। ध्यान के लिए ईश स्मरण/ इष्ट का ध्याय करना चाहिए।

मल-मूत्र उत्सर्जन

शरीर में उपापचय के फलस्वरूप बने अवशिष्ट एवं विषैले तत्वों को उत्सर्जन क्रिया द्वारा बाहर निकाला जाता है। प्रातः काल इस क्रिया को करने से पूरे दिन शरीर में लघुता (हल्कापन) रहता है। इस क्रिया के पश्चात् हाथ-पैर भली प्रकार साफ करने चाहिए जिससे संक्रमण का भय नहीं रहता।

दन्तधावन/जिह्वा निर्लेखन

दांत स्वच्छ एवं मजबूत होते है। मुंह की दुर्गन्ध एवं विरसता का नाश होता है। जिह्वा स्वच्छ एवं मलरहित रहती है जिससे स्वाद का ज्ञान भलीं प्रकार होता है।

मुखादिधावन

लोध्र-आमलक आदि को उबाल कर उस पानी से मुख-आंखें धोनी चाहिए। इससे मुख की स्निग्धता दूर होती है। मुहांसे, झाइयां नहीं होते, चेहरा कांतिमय बनता है। नेत्र- ज्योति बढ़ती है।

अंजन

आंखें साफ-स्वच्छ होता हैं नेत्र-ज्योति बढ़ती है। आंखों के रोग नहीं होते। नेत्र सुन्दर एवं आकर्षक होते हैं।

नस्य

रोज सुबह 2-3 बूंद गरम करके ठण्डा किया हुआ सरसों या तिल का तेल नाकों में डालना चाहिए। नाक में तेल डालने से सिर, आंख, नाक के रोग नहीं होते। नेत्र-ज्योति बढ़ती है। बाल काले-लम्बे होते हैं। समय से पूर्व न झड़ते एवं न सफेद होते है।

अभ्यंग

स्नान के पहले शरीर पर तेल मालिश करनी चाहिए। उससे त्वचा कोमल, कांतियुक्त, रागरहित रहती है। त्वचा में रक्त संचार बढ़ता है। विषैले तत्व शरीर से बाहर निकलते है तथा त्वचा में झुर्रियां नहीं पड़ती।

व्यायाम

सूर्य नमस्कार, एरोबिक्स, योग या दैनिक व्यायाम से शारीरिक सामर्थ्य और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। शरीर के समस्त स्रोतस की शुद्धि होती है, रक्त संचार बढ़ता है, अवशिष्ठ पदार्थों को शरीर से बाहर निकालता है। अतिरिक्त चर्बी घटती है।

क्षौरकर्म

समय पर दाढ़ी-मूंछ बनवाने, बाल कटवाने, नाखून कटवाने से त्वचा स्वच्छ रहती है, प्रसन्नता आती है। शरीर में लघुता आती है तथा ऊर्जा का संचार होता है। नाखून के द्वारा होने वाले संक्रमण का भय कम होता है।

उद्द्वर्तन (उबटन)

सुगन्धित पदार्थों के लेप या उबटन करने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है। मन में प्रसन्नता और स्फूर्ति आती है। उबटल से शरीर की अतिरिक्त वसा नष्ट होती है। शरीर के अंग स्थिर एवं दृढ़ होते है। त्वचा मुलायम एवं चमकदार होती है। त्वचा के रोग मुहांसे, झांईयां आदि नहीं होते।

स्नान

स्नान दैनिक स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक है। स्नान से शरीर की सभी प्रकार की अशुद्धियां दूर होती है। इससे गहरी नींद आती है। शरीर से अतिरिक्त ऊष्मा, दुर्गन्ध, पसीना, खुजली , प्यास को दूर करता है। शरीर की समस्त ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय करता है। रक्त का शोधन होता हैं, भूख बढ़ती है।

निर्मल वस्त्र धारण

स्वच्छ एवं आरामदायक कपड़े पहनने से सुन्दरता, प्रसन्नता, आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।

धूप, धूल आदि से बचाव

सीधी सूर्य की किरणों से जितना हो सके बचना चाहिए। त्वचा के सीधे सूर्य की किरणों के अधिक सम्पर्क में आने से त्वचा में विभिन्न विकार हो जाते हैं। छाता, स्कार्फ या सनस्क्रीन लोशन का उपयोग हितकर है।

निद्रा

ग्रीष्म ऋतु के अतिरिक्त सभी ऋतुओं में रात्रि में 6-8 घन्टे की नींद आवश्यक है। उचित निद्रा के सेवन से शारीररिक एवं मानसिक थकान दूर होती है। सम्यक पाचन होता है। शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है। निद्रा शरीर की सम्यक वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक है।

इन्हें भी देखें