त्रैराशिक नियम

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त्रैराशिक नियम (The Rule of Three) का ज्ञान भारतीय गणितज्ञों को ६ठी शताब्दी ईसापूर्व से है। इसे प्रायः 'त्रैराशिक व्यवहार' के नाम से जाना जाता रहा है। यूरोप में इस विधि की जानकारी बहुत बाद में पहुंची।

उदाहरण: ५१ रूपए में ३ किलो धान मिलता है तो ८५ रूपए में कितने किलो धान मिलेगा?

वेदांग ज्योतिष में त्रैराशिक व्यवहार का यह नियम देखिये-

इत्य् उपायसमुद्देशो भूयोऽप्य् अह्नः प्रकल्पयेत्।
ज्ञेयराशिगताभ्यस्तं विभजेत् ज्ञानराशिना ॥ २४
“known result is to be multiplied by the quantity for which the result is wanted, and divided by the quantity for which the known result is given”[१]

परिचय

इसमें तीन राशियों का समावेश रहता है। अत: इसे त्रैराशिक कहते हैं। जैसे यदि प्र (प्रमाण) में फ (फल) मिलता है तो इ (इच्छा) में क्या मिलेगा?

त्रैराशिक प्रश्नों में फल राशि को इच्छा राशि से गुणा करना चाहिए और प्राप्त गुणनफल को प्रमाण राशि से भाग देना चाहिए। इस प्रकार भाग करने से जो परिणाम मिलेगा वही इच्छा फल है। उदाहरण के लिए उपरोक्त प्रशन में ५१ प्रमाण है; ३ किलो फल है। इच्छा राशि ८५ रूपए है। अतः इसका उत्तर है : (८५ x ३) / ५१ = ५ किलो।

भारत से अरब देशों में यह नियम आठवीं शताब्दी में पहुंचा। अरबी गणितज्ञों ने त्रैराशिक को ‘फी राशिकात अल्‌-हिन्द‘ नाम दिया। बाद में यह यूरोप में फैला जहां इसे 'गोल्डन रूल' की उपाधि दी गई।

सन्दर्भ

  1. Sanskrit-Prakrit interaction in elementary mathematics as reflected in Arabic and Italian formulations of the rule of three and something more on the rule elsewhere स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (by Jens Høyrup)

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