तीन द्वार, अहमदाबाद

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तीन दरवाजा
त्रण दरवाजा
Teen Darwaza 1880s.jpg
१८८० में तीन दरवाजा
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अन्य नाम तीन द्वार, थ्री गेट्स
सामान्य विवरण
प्रकार प्रवेशद्वार
वास्तुकला शैली भारतीय-इस्लामिक स्थापत्य
पता भद्र के किल्ले से नजदीक
शहर साँचा:ifempty
राष्ट्र भारत
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निर्माणकार्य शुरू ईस्वीसन १४११
निर्माण सम्पन्न ईस्वीसन १४१५[१]
शुरुआत साँचा:ifempty
ध्वस्त किया गया साँचा:ifempty
स्वामित्व आर्कोलिजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया
पदनाम राष्ट्रीय स्मारक
ASI स्मारक क्रमांक N-GJ-5

तीन दरवाजा, तीन द्वार या त्रण दरवाजा (साँचा:lang-gu) भारत देश में गुजरात राज्य मेंअहमदाबाद महानगर में स्थित भद्र किल्ले का ऐतिहासीक प्रवेशद्वार है। ईस्वीसन १४१५ में इस प्रवेशद्वर का निर्माण हुआ था। इस द्वार से ऐतिहासीक घटनाएँ भी जुड़ी हैं। अहमदाबाद महानगर निगम के चिह्न में भी इस प्रवेश्द्वार का समावेश किया गया है।

इतिहास और वास्तुकला

तीन दरवाजे, 1866

तीन दरवाजा अहमदाबाद में भद्र के किल्ले की पूर्व दिशा में स्थित है। ये प्रवेशद्वार अहमद शाह के महल के विशाल मैदान की और ले जाता है। ये पथ भूतकाल में भव्य था और बादशाह की सवारी यहाँ से पसार होती थी। इस प्रवेशद्वार से जुड़ा रास्ता 17 फीट लम्बा और 13 फीट चौड़ा है। ये जगह कलात्मक शिल्प स्थापत्य से सज्ज है। पूर्व में राजमार्ग रहा होगा किन्तु फिलहाल अहमदाबाद की भव्यता में देखेने में ये जगह बहुत ही छोटी प्रतीत होती है।.[२][३]

अमहदाबाद शहर की स्थापना के बाद तुरंत ही अहमद शाह ने इस तीन दरवाजा प्रवेशद्वार का निर्माण किया था। इसका निर्माण ईस्वीसन की 1414 से 1415 वीं सदी के दौरान हुआ था।[१] ईस्वीसन 1459 में मुहम्मद बेगड़ा 300 घोड़े और 30 हजार सनिकों के दल के साथ युद्ध लड़ने के लिए निकाला था और ये सैन्य इसी प्रवेशद्वार से बाहर निकाला था। उक्त समय रास्ते की दोनों और हाथी और शाही संगीत के साथ उनका स्वागत किया गया था। ये युद्ध मराठा सरदारों के साथ हुआ था।[२][३]

मराठा पाठ

तीन द्वार के स्तंभ पर पुत्री को पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया जाएगा वाला पाठ दिख रहा है।

मराठा सूबा चिमान जी रघुनाथ ने सन 1812 में यह फरमान जारी किया था कि अब से स्त्रियॉं को उनकी पैतृक संपत्ति में पुरुष के समान ही अधिकार मिलेगा। हिन्दू और मुस्लिम दोनों के लिए ये फरमान जारी किया गया था। ये फरमान जिस शिलालेख पर अंकित किया गया था उनका अस्तित्व आज भी है। शिलालेख में 10 अक्तूबर 1812 की दिनांक लिखी है। पाठ में देवनागरी लिपि में लिखा हुआ है कि 'पुत्री को पिता की संपत्ति में किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना समान अधिकार दीजिये। भगवान विश्वनाथ का ये आदेश है। इस आदेश का पालन करने में कोई कसूर करेगा तो हिंदुओं को भगवान महादेव (शिव) और मुसलमानो को अल्लाह या रसूल को उत्तर देना पड़ेगा।'[४][५]

अखंड दीपक

कथा

सड़क दृश्य, 1890

इस किल्ले और तीन प्रवेशद्वार के विषय में लोगों मै कुछ किवदंतियाँ या लोककथाएँ भी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार 'एक बार धन की देवी लक्ष्मी शहर को छोडने के लिए भद्र के किले के पास आई और तीन दरवाजे से बाहर निकल रही थी। द्वारपाल ख्वाजा सीदिक कोटवाल ने उनको रोक लिया और जब तक बादशाह अहमद शाह अनुमति न दें तब तक शहर से बाहर न जाने के लिए कहाँ। कोटवाल बादशाह के पास गया और लक्ष्मी को शहर में रखने के लिए खुद का आत्मसमर्पण करना होगा ये बात बताई। परिणाम स्वरूप शहर की संपत्ति सलामत रही।[६][७]

भद्र किल्ले के प्रवेशद्वार के पास कोटवाल का मकबरा आज भी वहाँ स्थित है। महालक्ष्मी जी के प्रतिनिधि स्वरूप माँ काली का मंदिर विद्यमान है। जो भद्रकाली के नाम से सुप्रसिद्ध है।[७] इस कथा को समर्पित तीन दरवाजे के एक गोख में एक दीपक 600 साल से भी ज्यादा समय से प्रज्वलित रखा गया है। एक मुस्लिम परिवार के द्वार इस दीपक की निगरानी होती है और अखंड प्रज्वलित रखा जाता है। इस मुस्लिम परिवार के द्वारा कई पीढ़ियो से ये कार्य हो रहा है।[६]

चित्र

सन्दर्भ

  • इस लेख में निम्नलिखित प्रकाशनाधिकार मुक्त पुस्तक का पाठ लिया गया है:-:
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