तिलवल्लि

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Tilavalli

तिलवल्लि गाँव हावेरि जिला के हानगल ताल्लुक में मौजूद एक बहुत ही ऐतिहसिक ग्राम है।[१][२] इस ग्राम का कोड नं*-845100 है। यह तिलवल्लि शब्द को कन्नड भाषा के दो शब्द तिळि +हल्लि से लिया गया है। यह तिळि का अर्थ पाक और शुद्ध, हल्लि का अर्थ ग्राम है। तिलवल्लि गाँव में 2001 कें जनगणति के हिसाब से 6629 कि जनसंकख्या 3378 आदमियां और 3251 औरतौं से बसा है। यहा के लोगों में बहुत ही इमानदार और दूसरों कि सहायता करने कि आदत है, इस कारण इस गाँव में कभी कोइ मोस नहि जाता है। और इस गाँव मे किसान भि बहुत श्रम जीवि कि तरह दिन रात काम करते है, इसलिये इस गाँव में चावल ज्यादा पिका जाता है। यह तिलवल्लि गाँव मे लकवा (paralysis) रोग से उपचार होने के लिये आयुर्वेदिक दवा दिया जाता है। इस दवा के कारण कर्नाटक में हजारों लकवा मारे हुवे लोग उप्चार हुवे है। इसलिये रोगियाँ दवे के लिये बहुत दूर दूर से आते है। तिलवल्लि गाँव मे 'हट्टी हब्बा' नामक खेल बहुत हि आकर्शक रूप से मनाया जाता है। यहा इस 'हट्टी हब्बा' खेल को गाँव कि पारंप्रिकता के हिसाब से हर वर्ष के नवेंबर में एक प्रत्योगिता रखा जाता है। यह 'हट्टी हब्बा' प्रत्योगिता में लोग अपने पशुओं (गाय, बैल) को बहुत हि आकर्शक रूप मे सवारते है। उस के बाद उस प्शुओं के गले में सूखा हुवा कोको (coconut) बान्द के गाँव कि प्रत्योगिता के अनुसार पशु को भगाते है। इस खेल में भाग लेने के लिये आस पास गाँव से बहुत लोग आते है।

तिलवल्लि का इतिहास

तिलवल्लि गाँव महाभारत के समय में मौजूद "विराट नगर" साम्राज्य में था। यहा कौरवौं के द्वारा पगडे खेल में हार के उनकि शर्त के अनुसार पान्डवौ ने १२ साल का वन वास पूरी करके एक साल कि आग्न्यात वास के लिये विराटनगर में मौजूद तिलवल्लि गाँव के पास तुरविगुड्ड नामक गाँव मे बसे थे माना जाता हैं। और विराटनगर साम्राज्य के पूरे घोडौ को तिलवल्लि गाँव में सुरक्षित रखा जाता था। इसलिये वहा के राजा ने तिलवल्लि गाँव कि देखबाल के लिये एक चौकिदार (पाळेगार) को रखा था। चौकिदार ने घोडौ कि चोरि होने कि संभावना को रोकने के लिये और गाँव को सुरक्षित रखने कि वजह से तिलवल्लि गाँव के चारो तरफ (ओर) से तालाब खुदवाया और उस तालाब को तिलवल्लि से 20 किलोमिटर दूरि पे मौजूद हिरेकेरूर गाँव के बडे तालाब से पानि बेहके आने कि तरह किया गया। इसलिये तिलवल्लि गाँव द्वीप कि तरह पानि के बीच बन गया। जब पेहलि बार तिलवल्लि गाँव को पानि आगया तो- वे पानि बहुत ही शुद्ध और साफ दिखा तो वह के लोग उस पानि के कारण गाँव् का नाम तिलवल्लि रखा गया था। इस पानि को लोग अपने खाने-पीने के लिये इस्तेमाल करने लगे और साथ हि इससे वह के खेतौ को पानि कि जरूरत पूरि होने लगि। और लोग गाँव में प्रवेश करने के लिये एक पत्थर के पुल का निर्माण किया गया, इससे लोगौ के संचार के लिये अनुकूल हो गया था।

तिलवल्लि कि प्रसिद्ध्ता

श्री शांतेश्वर देवालय

Shanteshwara Temple, tilavalli

तिलवल्लि गाँव कला और संस्क्रुति का प्रिय बादामि चालुख्या साम्राज्य (543–753) से भि जुडा हुवा था, इसलिये उस साम्राज्य के प्रसिद्ध शिल्पि श्री अचार्य जकणाचार्य के द्वारा श्री शांतेश्वर देवालय को काले पत्थरौ के द्वारा निर्माण किया था। इस देवालय में चालुख्या साम्राज्य कि कला और संस्क्रुति को बहुत ही भव्य तरीखे से दर्शाया गया है। इस श्री शांतेश्वर देवालय कि खास बात और विस्मय कर देने वालि बात ए है कि इस देवालय का निर्माण सिफ एक हि दिन में पूरा हो गया था। यह देवालय में अनेक शासन और लिपीयौं को लिखे देख सकते है। यह देवालय का रूप देखने में हावेरि, कोटिपूर और बनवासि के देवालय को मिलता है। हर वर्ष के फरवरी में इस देवालय क मेला बहुत हि अच्छी तरह से मनाया जाता है। यहा इस मेले में शामिल होने के लिये आस पास से बहुत लोग आते है।


शहबुद्दिन शाह वलि कि दरगाह

Shahabuddin shah wali dargaah, tilavalli

तिलवल्लि गाँव में सय्यद शहबुद्दिन शाह वलि कि दर्गाह भि है। यहा के लोगौ का केहना है कि शहबुद्दिन शाह वलि दर्गाह कि दुवा से तिलवल्लि गाँव को कोइ मुसिबत नही आती और इस गौंव कि रक्शा होति है। यहा माना जाता है कि इनके दर्बार में जानेवाले हर व्यक्ति कि दुवा खुबूल होति है। इसलिये वहां के हिन्दु और मुसल्मान लोग दोनो मिल के बहुत हि आराधन पूर्वक इस दरगाह को आते है। और यहा के लोग इन्हे तिलवल्लि के शहिन्शाह मानते है। इस दर्गाह का उर्स तिलवल्लि गाँव का तालाब पूरा भरने के बाद हि होता है। इस से पता चलता है कि यहा का उर्स किसानौं का पेट भरने के बाद हि होता है।

जामिया मसजिद

Jamiya masjid, tilavalli

तिलवल्लि गाँव चालुख्या साम्राज्य के पथन के बाद बिजापुर सल्तनत (1490–1686) के आडलित में आ गया था। इसलिये उस सल्तनत के राजा आदिल शाह ने तिलवल्लि गाँव के मुसल्मानौं के लिये एक जामिया मसजिद का निर्माण किया था। यह मस्जिद पत्थरौ के द्वारा बनायि गयि है। यहा मुसल्मान लोग नमाज पडते है। और इसके पास में हि मुसल्मान बच्चौं के लिये शहाबिया अरबि मदरसे को 1989 में बनाया गया था। इस मदरसे में 150 बच्चे अभी भि पड रहे है। और यह ४ मौल्वि बच्चौ को पडाते है।

तावरे होन्ड

Tavare hond, tilavalli

तिलवल्लि गाँव में जामिया मस्जिद के किनारे ही तावरे होन्ड नामक झील है। यहा कहा जाता है कि पेहले लोग नमाज के लिये इस 'तावरे होन्ड' झील के पानि का इस्तेमाल करते थे। इस झील में अब लोग जल क्रीडा या 'स्नान' किया करते है और लोग अपने घरों मे पानी को खाने के लिये एवं कपडे धोने के लिये इस्तेमाल करते है। इस झील में कमल के फूल खिलते है, इसलिये झील बहुत हि आकर्षक दिखते है। इस कारण ही लोग कन्नडा शब्द के द्वारा इस झील को 'तावरे होन्ड' नाम रखा है। तावरे का अर्थ कमल और होन्ड का अर्थ झील माना जाता है इस झील भर गया तो पानि खेतौं के ओर बड जाता है। इस झील के किनारे ही 150 साल पुराना एक आम का पेड है, इसलिये यहा चंद लोग पेड से पानि में कूद के अपना साहस प्रदर्शित करते है।

अन्य भाग

यहा तिलवल्लि गाँव कला और प्रसिद्धि के साथ महान व्यक्ति ना सु हर्डीकर जन्म लिया हुवा गाँव है।

ना सु हर्डीकर

ना सु हर्डीकर का जन्म हावेरि जिला के हानगल ताल्लूक के 'तिलवल्लि' नामक गाँव में 7 मई 1889 में हुवा था। और उनका मरण 26 अगस्त 1975 को हुवा था। नासु हर्डीकर का पूरा नाम 'नारायण सुब्बराव हर्डीकर'। यहा ना सु हर्डीकर एक स्वतन्त्र स्ंग्राम में जुडे हुवे बहुत बडे व्यक्ति थे। वे अंग्रेजौं को देश से भगाने के लिये 'सेवा दल' नामक एक संघ को 1923 में निर्माण किया है। यहा ना सु हर्डीकर ने तिलवल्लि गाँव के युवकौं को लेके अपना 'सेवा दल' कि स्थापना की थी। यहा सेवा दल में मौजुद सदस्य लोग गरीबौं कि सेवा की और अंग्रेजौं के विरुद्ध आवाज उठाई थि।

सन्दर्भ

  1. Village code= 845100 साँचा:cite web
  2. साँचा:cite web Tilavalli, Haveri, Karnataka