तालाब

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नियाग्रा जल प्रपात के निकट एक पोखर
मध्य यूरोप का एक पोखर
उदयपुर में एक छोटा सा कृत्रिम तालाब, जो कि जल महल के निकट बना है।
एक औपचारिक रॉक गार्डन जिसमें सरोवर और झरना है।

तालाब या पोखर ऐसे जल-भरे गड्ढे को कहते हैं जो झील से छोटा हो, हालाँकि झील और तालाब के आकारों में अंतर बताने के लिये कोई औपचारिक मापदंड नहीं है। इनका मोटा-मोटा नाप लगभग २ हेक्टेयर से ८ हेक्टेयर तक का होता है। यूनाइटेड किंगडम में चैरिटी पॉण्ड कन्ज़र्वेशन नामक संस्था की परिभाषा के अनुसार 'तालाब एक कृत्रिम या प्राकृतिक जलाशय है जिसका सतही माप १ वर्ग मी. और २ हेक्टेयर के बीच हो और जिसमें वर्ष में कम से कम चार माह जल भरा रहे।[१]

दीर्घा

सन्दर्भ

साँचा:reflist

विस्तृत पठन

दिशिनी गांव की नींव जब पड़ी तो,gjkk घर बनाने के लिए उसी मिट्टी की जरूरत पड़ी,जिसमें एक किसान जन्म लेने के बाद बड़ा होता है। इसलिए गांव के एक जगह से मिट्टी निकालकर घर बनाया गया। और वह जगह ताली के नाम से जाना जाता है।

   ताली के उपयोग के बारे में सभी पूर्वज बुद्धिजीवी जानते थे,ताली में इकट्ठे हुए पानी से,गांव का जलस्तर ऊपर उठता था,और इस वजह से पेड़ पौधों और खेत में उपलब्ध जल की मात्रा ऊपर उठती थी।
  जल का स्तर ऊपर रहने से पेड़ों को पर्याप्त पानी की आपूर्ति होने के साथ साथ उनसे वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी परिपूर्ण रूप से होती थी,जो कि बर्षा के बादलों को आकर्षण में योगदान देता था।
  खेतों में पौधों को ऊपरी जलस्तर के कारण पर्याप्त मात्रा में घुलनशील पदार्थ खनिज आदि का समायोजन होता था,जिस कारण प्रोटीन की मात्रा भी अनाज में उपलब्ध होती थी।
 इसी प्रोटीन की उपलब्धता गाय भैंस के उस दूध में भी होती थी जो अनाज और घास के सोर्स से मिलती थी,और यह सोर्स भी ऊपरी जलस्तर के कारण प्रोटीन और खनिज का संचयन करती थी।
 और सबको विदित है कि प्रोटीन के कारण इंसान की सोचने और विचारने की क्षमता प्रभावित होती है,यही कारण है कि पुराने समय में लोग एक दूसरे के बारे में सोचते थे,और खयाल भी रखते थे। 
 आज स्थित यह है कि लोग अपने सिवा किसी के बारे में नहीं सोचते न ही किसी की बात सुनने की क्षमता रखते हैं।
  ताली के जलस्तर के कारण गांव में छः नंबर के नल और कुंए अपने अस्तित्व में थे,कुएं और ताली का पूजन भी विशेष आयोजन में किया जाता था,जिससे कुलदेवता व कुलदेवी का भी पूजन का फल भी जाने अंजाने में प्राप्त होता था।
  आज की स्थित में कुंए एवं छः नंबरी नल का अस्तित्व समाप्त हो गया है,जो भी इंडिया मार्का या सबमर्सिबल लोग पैसे के बल पर चला रहे हैं वह भी आने वाले समय में समाप्त हो जायेगा,आने वाले समय में पीने का पानी भी बाहर से पैसे देकर लोग लायेंगें,जो कि कुछ घरों में शुरू भी हो चुका है,और इस पानी में शुद्ध करने के नाम पर एक केमिकल की अल्प मात्रा मिलाई जाती है,जो कि मस्तिष्क पर असर करता है,इस कारण से भी इंसान चिड़चिड़ा एवं दूसरों की बातों पर ध्यान न दे पाने अर्थात एकाग्रता की कमी हो जाती है।
 अभी गांव में प्राकृतिक जल स्रोत संवाहक के नाम पर ताली बची है,और यह भी गांव वासी के देखरेख के बिना जीवित रहने में असमर्थ है।
  आने वाली पीढ़ियों में इसका असर पूर्ण रूप से दिखेगा,जो कि प्राकृतिक जल की कमी,प्रोटीन की कमी,कुलदेवी देवता से दूरी के कारण मानसिक रूप से एकदूसरे के प्रति नहीं जुड़ पायेंगें,और यहां तक कि गांव तो क्या अपने माता पिता से भी दूरी बना लेंगें।
  इसलिए गांव के ताली को बचायें जीवन ऊर्जा का संचार करें एवं सामाजिकता और इंसानियत का निर्माण करें।

बाहरी कड़ियाँ

  1. Biggs J., Williams P., Whitfield M., Nicolet P. and Weatherby, A. (2005). 15 years of pond assessment in Britain: results and lessons learned from the work of Pond Conservation. Aquatic Conservation: Marine and Freshwater Ecosystems 15: 693-714.