तटीय मैदान
भारत के प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम में स्थित दो संकरे मैदान हैं जिन्हें क्रमश: पूर्वी तटीय मैदान एवं पश्चिमी तटीय मैदान कहा जाता है। इनका निर्माण सागरीय तरंगों द्वारा अपरदन एवं निक्षेपण तथा प्रायद्वीपीय पठार की नदियों द्वारा लाये गए अवसादों के जमाव के कारण हुई है।
पश्चिमी तटीय मैदान गुजरात से कन्या कुमारी तक के क्षेत्रों में विस्तृत है । यह एक संकरी जलोढ़ पट्टी के रूप में विस्तृत है, गुजरात के क्षेत्र में नर्मदा तथा ताप्ती नदी के मुहानों पर इसकी सर्वाधिक चौड़ाई (80 किमी.) प्राप्त होती है । कच्छ काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्री निक्षेपों की प्रधानता है। काठियावाड़ क्षेत्रों में रेगुर मिट्टी का पर्याप्त विस्तार है।
दीव से दमन तक का क्षेत्र गुजरात तट , दमन से गोवा तक का क्षेत्र कोंकण तट , गोवा से कर्नाटक के मंगलूरू तक का क्षेत्र कन्नड़ तट तथा मंगलूरू से कन्याकुमारी तक का क्षेत्र मालाबार तट कहलाता है , यद्यपि कन्नड़ तक को यदा कदा मालाबार तट में शामिल किया जाता हैं। मालाबार तट में पश्च जल एवं लैगूनों की प्रधानता है जिन्हे कयाल भी कहा जाता है। ये वे जलीय भाग है जो स्थलों द्वारा चारों ओर से घेर लिए गए हैं ।
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चिल्का झील भारत की खारे पानी की सबसे बड़ी झील है,जो ओडिसा के महानदी डेल्टा के दक्षिण में स्थित हैं,
तथा यह नदी भी तटीय मैदान पर ही डेल्टा का निर्माण करती हैं।