तक्षक

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(तक्षक नाग से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
महर्षि कश्यप और कद्रू के पुत्र नागराज तक्षक की प्रतिमा

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, तक्षक नागों में से एक नाग जो कश्यप का पुत्र था और कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था श्रृंगी ऋषि का शाप पूरा करने के लिये राजा परीक्षित को इसी ने काटा था। इसी कारण राजा जनमेजय इससे बहुत बिगड़े और उन्होंने संसार भर के नागों का नाश करने के लिये नागयज्ञ आरंभ किया। तक्षक इससे डरकर इंद्र की शरण में चला गया। इसपर जनमेजय ने अपने ऋषियों को आज्ञा दी कि इंद्र यदि तक्षक को न छोड़े, तो उसे भी तक्षक के साथ खींच मँगाओ और भस्म कर दो। ऋत्विकों के मंत्र पढ़ने पर तक्षक साथ इंद्र भी खिंचने लगे। तब इंद्र ने डरकर तक्षक को छोड़ दिया। जब तक्षक खिंचकर अग्निकुंड के समीप पहुँचा, तब आस्तीक ने आकर जनमेजय से प्रार्थना की और तक्षक के प्राण बच गए।

कुछ विद्धानों का विश्वास है कि प्राचीन काल में भारत में तक्षक नाम की एक जाति ही निवास करती थी। नाग जाति के लोग अपने आपको तक्षक की संतान ही बतलाते हैं। प्राचीन काल में ये लोग नाग का पूजन करते थे। कुछ पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि प्राचीन काल में कुछ विशिष्ट अनार्यों को हिंदू लोग तक्षक या नाग कहा करते थे। और ये लोग संभवतः शक थे। तिब्बत, मंगोलिया और चीन के निवासी अबतक अपने आपको तक्षक या नाग के वंशधर बतलाते हैं। महाभारत के युद्ध के उपरान्त धीरे धीरे तक्षकों का अधिकार बढ़ने लगा और उत्तर-पश्चिम भारत में तक्षक लोगों का बहुत दिनों तक, यहाँ तक कि सिकन्दर के भारत आने के समय तक राज्य रहा। इनका जातीय चिह्न नाग था। ऊपर परीक्षित और जनमेजय की जो कथा दी गई है, उसके संबंध में कुछ पाश्चात्य विद्वानों का गत है कि तक्षकों के साथ एक बार पांडवों का बड़ा भारी युद्ध हुआ था जिसमें तक्षकों की जीत हुई थी ओर राजा परीक्षित मारे गए थे, और अंत से जनमेजय ने फिर तक्षशिला में युद्ध करके तक्षकों का नाश किया था और यही घटना जनमेजय के नागयज्ञ के नाम से प्रसिद्ध हुई है। नागोंं में शेषनाग सबसे बड़े और तक्षक दूसरे स्थान के भाई हैं जब शेषनाग भगवान विष्णु की शरण में गए तब नागलोक से जाते जाते छोटे भाई तक्षक का राजतिलक किया तथा उन्हें नागराज के पद पर अभिषिक्त किया।

गरुड पुराण के अनुसार

गरुड पुराण में महर्षि कश्यप और तक्षक नाग को लेकर एक सुन्दर उपाख्यान दिया गया है। ऋषि शाप से जब राजा परीक्षित को तक्षक नाग डसने जा रहा था, तब मार्ग में उसकी भेंट कश्यप ऋषि से हुई। तक्षक ने ब्राह्मण का वेश धरकर उनसे पूछा कि वे इस तरह उतावली में कहां जा रहे हैं? इस पर कश्यप ने कहा कि तक्षक नाग महाराज परीक्षित को डसने वाला है। मैं उनका विष प्रभाव दूर करके उन्हें पुन: जीवन दे दूंगा। यह सुनकर तक्षक ने अपना परिचय दिया और उनसे लौट जाने के लिए कहा। क्योंकि उसके विष-प्रभाव से आज तक कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा था। तब कश्यप ऋषि ने कहा कि वे अपनी मन्त्र शक्ति से राज परीक्षित का विष-प्रभाव दूर कर देंगे। इस पर तक्षक ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो आप इस वृक्ष को फिर से हरा-भरा करके दिखाइए। मैं इसे डसकर अभी भस्म किए देता हूं। तक्षक ने वृक्ष को अपने विष प्रभाव से तत्काल भस्म कर दिया।

इस पर कश्यप ऋषि ने उस वृक्ष की भस्म एकत्र की और अपना मन्त्र फूंका। तभी तक्षक ने आश्चर्य से देखा कि उस भस्म में से कोंपल फूट आई और देखते ही देखते वह हरा-भरा वृक्ष हो गया। हैरान तक्षक ने ऋषि से पूछा कि वे राजा का भला करने किस कारण से जा रहे हैं? ऋषि ने उत्तर दिया कि उन्हें वहां से प्रचुर धन की प्राप्ति होगी। इस पर तक्षक ने उन्हें उनकी अपेक्षा से भी अधिक धन देकर वापस भेज दिया। इस पुराण में कहा गया है कि कश्यप ऋषि का यह प्रभाव 'गरुड़ पुराण' सुनने से ही पड़ा था।