डॉ. जनार्दन राय

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जीवन परिचय

उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद में गड़हांचल क्षेत्र के नाम से मशहुर नरही गांव में 10 मार्च 1940 को जन्में डॉ. जनार्दन राय की कार्यशैली का हर कोई कायल है। हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, अर्थशास्त्र, दर्शन शास्त्र, समाज शास्त्र व शिक्षा शास्त्र में स्नातक, दो विषय से एमए के अलावा बीएड, पीएचडी तथा डीलिट् उपाधियों से अलंकृत डॉ. जर्नादन राय की अब तक लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।

लेखन कार्य को ही ओढ़ना और बिछौना बना चुके डॉ. राय के अतीत को देखें तो मध्यवर्गीय किसान शिवनाथ राय के रूप में जन्में डॉ. जर्नादन राय का जीवन कण्टकाकीर्ण रहा है, जो आज भी यथावत है। शिक्षा प्राप्ति व पठन-पाठन में आने वाले अवरोध तथा असफलताओं के बीच कैसे खड़े रहे? यह किसी कबीर के लिए ही संभव है। जन्म होते मां का देहावसान व्यक्ति परिवार के लिए कितना अशुभ माना जाता है, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। आपने इसे जिया, भोगा और बखूबी चला है। क्लेश भले न रहा हो पर जैसा यह स्वयं स्वीकार करते हैं लिखने, पढ़ने, कायिक, वाचिक, मानसिक और आर्थिक उपेक्षाओं का दंश बराबर ही झेलना पड़ा है।

एक ओर अभाव और दूसरी ओर अध्ययन के प्रति अभिरुचि ने कवि को किस प्रकार खड़ा रखा, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है। जो भी हो प्राथमिक शिक्षा गंवई परिवेश में हुई और इसका श्रेय अदृश्य शक्ति को देते हैं। अवरोध करने वालों का भी आप अह्लादित हो उल्लेख करते हैं पर यह अनुचित है सो न लिखना ही उचित है। माध्यमिक शिक्षा की पीठिका के रूप में आए चतुरी चाचा की स्मृति और आचार्य परशुराम उपाध्याय को सदैव नमन करते हैं। जातीय समीकरण के भय से दूरी बनाए रखने वाले श्री चंद्र मणि कुंवर और स्वनामधन्य आचार्य ब्रह्मेश्वर का नाम आने पर आप मुस्कुराने लगते हैं। शैशव के सहपाठी बालेश्वर राम (बभनौली) का उल्लेख सहृदयता से करते हैं। बाद के सहपाठियों की लंबी फेहरिस्त हैं। स्नातक स्तर पर सविधिक शिक्षा अव्यवस्था व अनगढ़ता के बीच हुई, किंतु इसी अवधि में आपने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, भारतीय संस्कृति, शिक्षा शास्त्र, समाज शास्त्र, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र और मनोविज्ञान का गहन अध्ययन किया। बोलियों में भोजपुरी तो मातृभाषा रही, पर इसके अतिरिक्त उर्दू और बंगला भाषा को भी सीखने की पुरजोर कोशिश की।

शिक्षा

सन 1947 से भूल भुलैया में शुरू प्राथमिक शिक्षा, 1957 में जूनियर हाई स्कूल, 1959 में हाई स्कूल, 1961 में इंटरमीडिएट और 1963-64 में स्नातक एवं शिक्षा स्नातक की परीक्षाएं गोरखपुर विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण कर अपने गांव के शिक्षण संस्थान आदर्श इंटर कॉलेज में अध्ययन अध्यापन शुरू किया। इसके लिए आप उमाशंकर राय, परमात्मा नंद राय, बालेश्वर राय और आचार्य सर्वदेव राय का आख्यान करते हुए अघाते नहीं। दुर्भाग्य ने पीछा किया और भीख में मिली गंठरी भी छिन गई। पिपराकलां में प्रधानाचार्य पद पर प्रतिष्ठित होते हुए प्रतिकूल परिस्थितियों ने इस कदर पटका कि चकनाचूर होने से बच तो गये, पर टूट कर बिखर गए। शिव कृपा से ब्रम्हपुर विधानसभा (बिहार) के विधायक रहे सूर्यनारायण शर्मा के आग्रह पर फिर एक बार आचार्य पद पर नियुक्त हुए, किंतु पटी नहीं और वहां से भी हटना पड़ा। स्वाध्याय के साथ उपाधि प्राप्ति की ओर मुड़े। संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से व्यक्तिगत स्नातक और काशी विद्यापीठ वाराणसी से हिंदी साहित्य में प्रथम श्रेणी की स्नातकोत्तर उपाधि के साथ

The critical and progressive study of the historical book of Hindi literature में Ph.d. की उपाधि प्राप्त की।

इसी क्रम में बावजूद अवरोधों के आंचलिकता की अवधारणा और विवेकी राय पर पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर से डी.लिट् की प्रथम उपाधि प्राप्त की। ध्यातव्य है कि पठन-पाठन के साथ साहित्य सेवा की गतिविधियां बनी रही। इस अवधि में आपने 'परिवा' (खड़ी बोली हिंदी), लहरे आंचर- बिहॅसे गीत (भोजपुरी काव्य संग्रह) के अतिरिक्त Marxian Asthetics आलोचनात्मक कृतियों सर्जना की।

सेवा और पसंद

आदर्श इंटर कालेज गोड़उर गाजीपुर से बतौर प्रवक्ता (समाज शास्त्र) के कार्यकाल में आपने प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु और डॉ. विवेकी राय की कृतियों का गहन अध्ययन किया। 'साहित्येतिहास' विषय के चिंतन के क्रम में आप प्रो. वासुदेव सिंह, डॉक्टर सर्वजीत राय, डॉक्टर मांधाता राय और डॉक्टर सरला शुक्ला के प्रदेय को अधिकाधिक स्वीकार करते हैं। दिनकर, धूमिल, ज्ञानेंद्रपति, सूर्य प्रसाद दिक्षित, डॉ ललित शुक्ल, रामस्वरूप चतुर्वेदी और डॉक्टर राजेंद्र कुमार की प्रशंसा करते हुए अघाते नहीं। कबीर का दर्शन और तुलसी का कवि रूप भी आपको प्रिय है। बंगला के रविंद्र नाथ टैगोर तो प्रिया है ही, भोजपुरी के भिखारी, इकबाल(उर्दू) भी अधिकाधिक पसंदीदा कवि है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र और कुबेर नाथ राय के ललित निबंधों को आप अधिक पसंद करते हैं। आपने एक सफल शिक्षक के रूप में जिंदगी के 42 वर्ष गुजारे और कभी 'स्व' को शिक्षक के रूप में प्रस्तुत नहीं किया। आपका प्राचार्य रूप कभी भी भारी नहीं पड़ा। हां, एक शिक्षार्थी सा जीवन बीताने वाले कवि का शिक्षार्थी सदैव गुरुतर बना रहा।

कृतियों के झरोखे से डॉ. जर्नादन राय’

हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रंथों का विकासात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त डॉ. जनार्दन राय के साथ पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर से डीलिट् की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले छात्र का तमगा जुड़ा है। डॉ. राय के कृतित्व व व्यक्तित्व को लेकर ‘कृतियों के झरोखे से डॉ. जर्नादन राय’ नामक पुस्तक भी सम्मादित हो चुकी है। 80 बसंत देख चुके डॉ. राय विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सम्पादन कार्य करने के साथ ही अपनी रचनाओं को मूर्त रूप देने में आज भी जुटे हुए है।


प्रकाशित पुस्तकें

-परिवा (काव्य संग्रह, खड़ी बोली) है।

-गीत मेरे मीत मन के (काव्य संग्रह, खड़ी बोली)

-लहरे आंचर बिहंसे गीत (काव्य संग्रह, भोजपुरी)

-आंचर के गीत (काव्य संग्रह, भोजपुरी)

-अपना परिवार-अपने लोग (खड़ी बोली की लम्बी कविता)

-कुहरे में डूब गया गांव (रेखाचित्र व निबंधों का संग्रह)

-गांव कS माटी (भोजपुरी वैचारिकी रेखाचित्र एवं निबंध)

-साहित्येतिहास: परम्परा और प्रवाह (हिन्दी साहित्य इतिहास की आलोचना)

-आंचलिकता की अवधारणा और डॉ. विवेकी राय (समीक्षा ग्रंथ)

-राजनारायण (स्वतंत्र वैचारिक निबंध एवं साक्षात्कार)

-गांव की ओर (लम्बी कहानी)

-व्यक्ति और समाज (निबंध संग्रह, हिन्दी)

-बिखर गये सपने हजार (काव्य संग्रह, हिन्दी)

-लौटती है जिन्दगी (काव्य संग्रह, हिन्दी)

-चिद्दी-चिद्दी पन्ने (काव्य संग्रह)

-Marxian Aesthetics (समीक्षा)

-व्यक्ति और साहित्य-2 (निबंध संग्रह, हिन्दी)

सम्पादन :

-ऋतम्भरा (सह सम्पादक) वार्षिकी

-ददरी मेला (स्मारिका-2013) प्रधान सम्पादक

-लोक गीतकार वीरेन्द्र सिंह 'धुरान' स्मृति विशेषांक 'धुरान' पत्रिका 2017

सम्प्रति :

-'मानवीय विचार' सप्ताहिक के प्रधान सम्पादक (हिन्दी), 'अनंतवार्ता' समाचार सम्पादक एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से सम्बद्घ।

-हिन्दी प्रचारिणी सभा एवं संत यतिनाथ लोक संस्कृति संस्थान के अलावा दो दर्जन से अधिक संस्थानों द्वारा सम्मानित और कतिपय व्यक्ति तथा संस्थानों द्वारा अपमानित भी।