डेरिंग बाज़

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डेरिंग बाज़
चित्र:Attarintiki Daredi.jpg
प्रचार छवि
निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास
लेखक त्रिविक्रम श्रीनिवास
अभिनेता पवन कल्याण
समानथा रूथ प्रभु
प्रनिथा सुभाष
नधिया
बोमन ईरानी
संगीतकार देवी श्री प्रसाद
छायाकार प्रसाद मुरेल्ला
संपादक प्रवीण पूड़ी
प्रदर्शन साँचा:nowrap [[Category:एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"। फ़िल्में]]
  • 27 September 2013 (2013-09-27)
देश भारत
भाषा तेलुगू
लागत 550 million[१]
कुल कारोबार 748.8 million (share)[२]

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डेरिंग बाज़ एक भारतीय पारिवारिक फ़िल्म है, तेलुगू भाषा में अत्तारीनीतिकी दरेदी (हिन्दी:कोनसा मार्ग घर तक जाता है।) नाम से बना और इसका हिन्दी में अनुवाद करने के बाद इसे डेरिंग बाज़ नाम से प्रदर्शित किया गया।

कहानी

रघुनंदन (बोमन ईरानी) एक अमीर और दुखी व्यापारी है। वह उसकी बेटी सुनंदा को घर से निष्कासित कर देता है क्योंकि वह उसकी मर्ज़ी के खिलाफ राजशेखर से शादी कर लेती है। सुनंदा की तीन बेटियाँ होती है, इनमें से दो के नाम प्रमीला और शशि हैं। गौतम (पवन कल्याण) दिल के स्ट्रोक से राजशेखर को बचाता है और उसे अपना नाम सिद्धू बताता है और राजशेखर उसे ड्राईवर के काम के लिए रख लेता है। गौतम प्रमीला को लुभाने की कोशिश करता है। लेकिन वह किसी ओर से प्यार करती रहती है। सुनंदा बताती है कि वह गौतम के बारे में जानती है और वह उसे रघुनंदन के घर ले जाने का कोई भी कोशिश न करे।

प्रमीला के प्यार को बचाने के लिए गौतम और पद्दू एक गाँव जाते रहते है और तभी जीप से पद्दू गिर जाती है और उसे सिर में चोट आती है। इस कारण वह अपनी यादाश्त खो देती है। गौतम इस बात का फायदा उठाता है और उसे अपनी प्रेमिका के रूप में मिलवाता है। सुनंदा अपनी बेटी शशि की शादी सिधप्पा के बड़े बेटे से कराने का सोचती है। उसके बाद गौतम को पता चलता है कि शशि उससे बहुत पहले से प्रेम करती है और यह बता नहीं पाई। पर इस शादी में कोई परेशानी न हो इस कारण राजशेखर गौतम को नौकरी से निकाल देता है।

शादी के दिन गौतम शशि (सामन्था रूथ प्रभु) को लेकर भाग जाता है और चेन्नई के लिए रेल की प्रतीक्षा करता रहता है और तभी वहाँ पर राजशेखर, सुनंदा आदि आ जाते हैं। इसके बाद गौतम अपना सच बताता है कि वह गौतम है और यह भी बताता है कि कुछ वर्षो पहले जब सुनंदा घर छोड़ कर चली गई थी। उस समय रघुनंदन (सुनंदा के पिता) आत्महत्या करने की कोशिश करते है लेकिन गलती से वह गोली गौतम की माँ को लग जाती है। इसके बाद कुछ लोग भास्कर के कहने पर शशि का अपहरण कर लेते हैं और गौतम उसे बचाता है। इसके बाद राजशेखर और सुनंदा को अपनी गलती का अहसास होता है और वे रघुनंदन से मिलने जाते हैं।

कलाकार

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ