डीडवाना
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डीडवाना का दृश्य | |
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निर्देशांक: साँचा:coord | |
देश | साँचा:flag/core |
प्रान्त | राजस्थान |
जिला | नागौर |
ऊँचाई | साँचा:infobox settlement/lengthdisp |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | ५३,७४९ |
• घनत्व | साँचा:infobox settlement/densdisp |
भाषा | |
• प्रचलित | राजस्थानी, मारवाड़ी, हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 341303 |
दूरभाष कूट | 01580 |
वाहन पंजीकरण | RJ-37 |
लिंगानुपात | 980/1000 स्त्री/पुरुष |
वेबसाइट | www |
डीडवाना भारत के राजस्थान राज्य के नागौर जिले में स्थित एक नगर है।[१][२]
राजस्थान के मारवाड़ का 'सिंहद्वार' एवं शेखावाटी का 'तोरण द्वार', आभानगरी व उपकाशी के नाम से प्रसिद्ध डीडवाना खारे पानी की डीडवाना झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है। वर्तमान में यह नागौर जिले का अतिरिक्त जिला मुख्यालय है, जिसके अंतर्गत पूर्वी नागौर की 6 तहसीले डीडवाना, लाडनूं, कुचामन, नावां, मकराना एवं परबतसर आती हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार शहर की जनसंख्या 53328 जो कि जिले में पांचवें स्थान पर है।
विवरण
डीडवाना नगर 27°25' उत्तरी अक्षांश एवं 74°35' पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है तथा उत्तर पश्चिम रेल्वे जोधपुर मंडल के जोधपुर-दिल्ली ब्रॉडगेज रेल मार्ग का महत्वपूर्ण स्टेशन है। डीडवाना समुद्रतल से 336 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है। निरंजनी सम्प्रदाय व माहेश्वरी समाज की उद्गम स्थली एवं देश के प्रसिद्ध उद्योगपति बांगड़ परिवार का गृह नगर यह डीडवाना अत्यन्त प्राचीन है जो कि लगभग दो हजार वर्षो से अस्तित्व में बताया जाता है परन्तु यहां मानव गतिविधियां लाखो वर्षो से जारी है, जिसके प्रमाण यहां खुदाई में प्राप्त औजार है। एक ऐतिहासिक शिलालेख के आधार पर इस नगर की स्थापना आभानगरी के नाम से वर्तमान शहर से पूर्व दिशा में 43 ईस्वी संवत में हुई जो की कुषाण साम्राज्य के अधीन थी। स्थानीय ख्यातों के अनुसार क्षत्रप साम्राज्य के शासको के आक्रमणो के कारण उजड़ गई और इस नगरी के प्रधानमंत्री शेषराम माहेश्वरी के पुत्र डीडूशाह ने डीडवाना नगर की स्थापना वर्तमान स्थान पर की। डीडूशाह के नाम पर डीडूवाणक नाम से भी जाना जाता था और उनके नाम पर डीडवाणा नामकरण हुआ जो कालांतर में अपभ्रंशित होकर डीडवाना कहलाया।
डीडवाना मध्यकालीन मुगल साम्राज्य में एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र रहा है जिसका कारण यहां प्रसिद्ध नमक की झील है जिससे नमक तैयार कर पूरे भारत में भेजा जाता रहा है। इस झील पर अधिकार को लेकर गुजरात के बादशाहोंं व जोधपुर,बीकानेर,जयपुर के शासको मध्य कई लड़ाईयां लड़ी गई। चित्तौड़ के महाराणा कुंभा ने यहां अधिकार कर नमक पर कर लगाया जिसका उल्लेख कीर्ति स्तंभ के शिलालेख में है।यह राजस्थान की सांभर झील के बाद दूसरी महत्वपूर्ण व बड़ी झील है जो तीन वर्ग किलोमीटर में क्षेत्र में फैली है।
डीडवाना आजादी से पूर्व मारवाड़ (जोधपुर) रियासत का एक परगना (जिला) था, जिसे आजादी बाद में नागौर जिले में सम्मलित कर लिया था। जोधपुर राज्य की पूर्वी सीमा पर स्थित यह नगर मारवाड़,शेखावाटी एवं बीकानेर रियासतो की संगम स्थली भी रहा है। यही कारण है कि यहां के निवासियों की भाषा, रीति रिवाजों आदि पर तीनो देशी रियासतों का मिश्रित प्रभाव देखने को मिलता हैं।
भौतिक एवं जलवायु
डीडवाना नगर राजस्थान के नागौर जिले की उत्तर-पूर्वी सीमा के समीप एक अतिरिक्त जिला मुख्यालय है। यह नगर जयपुर से 160 किमी, जोधपुर से 237, बीकानेर से 180, अजमेर से 150, नागौर से 95, दिल्ली से 360 किमी की दूरी पर स्थित है। यह अरावली पर्वतमाला के पश्चिम एवं अर्ध शुष्क एवं उष्ण जलवायु वाले थार रेगिस्तान पूर्वी भाग में है। नगर के दक्षिण-पश्चिम में अरावली के अवशिष्ट की प्रतीक पहाड़िया फैली हुई है जिनको तीखली डूंगरी एवं पीर पहाड़ी कहा जाता है। नगर की जलवायु अत्यंत उष्ण एवं ग्रीष्म है। यहां का औसत तापमान गर्मियोंं 28 से 42 डिग्री एवं सर्दियों में 6 से 23 डिग्री रहता है। अल्प अवधि के दक्षिण-पश्चिम मानसून के अलावा यहां आद्रता काफी कम रहती है। यहां वर्षाकाल में औसतन 33 सें.मी वर्षा होती है।
यातायात
डीडवाना यातायात की दृष्टि से सड़क और रेलमार्ग से प्रमुख शहरो से जुड़ा हुआ है।
- रेलमार्ग :- शहर उत्तर पश्चिम रेल्वे के जोधपुर मंडल के जोधपुर-दिल्ली रेलमार्ग का महत्वपूर्ण स्टेशन है। 16 सितंबर 1909 को तत्कालीन जोधपुर राज्य द्वारा डेगाना-सुजानगढ़ रेलमार्ग का शुभांरभ कर डीडवाना को रेल सेवा से जोड़ा। जिसके तहत नगर के पश्चिमी छोर पर स्टेशन बनाया गया। नमक लदान के लिए शहर से 5 किमी दूर मारवाड़ बालिया में भी स्टेशन बनाया गया। इस रेलमार्ग को 100 वर्ष बाद आमान परिवर्तन कर इसे ब्रॉडगेज किया गया। वर्तमान में डीडवाना ई ग्रेड श्रेणी का स्टेशन है।
- सड़क मार्ग- डीडवाना हनुमानगढ़-किशनगढ़ मेगाहाईवे पर स्थित है साथ ही पुष्कर-सालासर, नागौर-मुकुंदगढ़, राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 65-A भी यहां से गुजरते है। शहर के चारों ओर रिंग रोड़ बनी हुई है तथा नगर सभी प्रमुख मार्ग चौड़े और डिवाईडर से युक्त है। शहर में दो उच्चपुल भी है जो जोधपुर-दिल्ली रेलमार्ग पर बने हुए है, तीसरा उच्चपुल कुचामन-नागौर बाईपास पर निर्माणाधीन है। राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम का डीडवाना डिपो है जिससे सभी प्रमुख शहरो के लिए बसेंं संचालित की जाती है।
इतिहास
डीडवाना का कोई संकलित इतिहास नही है, किन्तु यहां किए गए उत्खलन से पता चला है कि मानव जाति के पूर्वजो की गतिविधियां यहां रही है। शहर के पास बांगड़ नहर के बहाव क्षेत्र में 700 मीटर चौड़े एवं 300 मीटर चौड़े दो रेतीले टीले मानव विकास के साक्षी रहे है। डेक्कन कॉलेज, पुणे के भूगर्भ शास्त्री प्रो.वी.एन. मिश्रा एवं एस.एन राजगुरू ने यहां 80 के दशक में खुदाई की थी । उन्हे छोटे औजार, काटने के बड़े औजार जैसे चैपर, पोलीहैंड्रोस, स्पेरोईड्स सहित करीब 1300 आर्टिफैक्ट्स मिले। इनकी रेडियो डेटिंग उम्र 7 लाख 97 हजार वर्ष आंकी गई है । आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इन टीलोंं को "16 आर" नाम दिया है। आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया अपने इतिहास में पहली बार इन मिट्टी के टीलों का संरक्षण करेगा। पेरिस के राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के प्रागैतिहासिक विभाग की क्लेरी गेलार्ड व उनके सहयोगियो ने 16 आर पर शोध किया।
डीडवाना का इतिहास शिलालेखों के आधार पर लगभग 2000 वर्ष प्राचीन बताया जाता है। एक शिलालेख के अनुसार 43 ईस्वी से 255 ई. के मध्य वर्तमान शहर से 3 किमी दूर पूर्व दिशा में "आभानगरी" के नाम से नगर बसाया गया जो कुषाण साम्राज्य के अधीन रहा। कालान्तर में क्षत्रप शासको के आक्रमणों के यह नगर उजड़ गया। एक अन्य शिलालेख के अनुसार नवीं शताब्दी में 843 ई. में नागभट्ट द्वितीय ने डीडवाना क्षेत्र का 1/6 भाग किसी ब्राह्मण को दान किया था। इसी क्षेत्र के प्रधानमंत्री शेषराम के पुत्र डीडूशाह ने वर्तमान स्थान पर डीडुवाणक नाम से पुन: नगर बसाया जो कालान्तर में डीडवाना कहलाया। इस के बाद इसका शासन मंडोर के प्रतिहारो के पास चला गया। डीडवाना से प्रतिहार कालीन योग नारायण की प्रतिमा प्राप्त हुई जो वर्तमान में जोधपुर संग्रहालय में रखी है। इस दौरान डीडवाना जैन एवं हिन्दू धर्म का केन्द्र भी बना किन्तु मुस्लिम आक्रमणों के कारण यहां के प्राचीन मंदिर नष्ट कर दिए गये । आज भी पुराने शहर में खुदाई में मंदिरो के टुकड़े व मुर्तियां मिलती रहती है। दसवीं सदी में जैन मुनि जिनेश्वर सूरि ने डीडवाना में कथाकोष की रचना की । विख्यात जैन विद्वान श्रीदत्त सूरि ने डीडवाना की यात्रा की तथा यहां के शासक यशोभद्र को उपदेश दिया। यशोभद्र ने डीडवाना में "चौबीसा हिमालय" नामक एक विशाल जैन मंदिर का निर्माण कराया जो 1184 ई.तक अस्तित्व में था, सोमप्रभाचार्य ने 1184 ई. में इस जिनालय का उल्लेख किया है। खुदाई में प्राप्त जैन प्रतिमाएं इस का प्रमाण है। बारहवीं शताब्दी में सिद्धसेन सूरि द्वारा रचित सकलतीर्थ माला में भी डीडवाना का उल्लेख है।
तराईन के युद्ध के बाद यह क्षेत्र मुहम्मद गौरी के हाथो में चला गया। इस के बाद कुतूबुद्दीन ऐकब के पास 1206 ई. से 1210 ई.तक रहा। इसके बाद 1226 ई. से 1236 ई. तक इल्तुतमिश तथा 1242 ई. में रजिया सुल्तान के कब्जे में रहा। डीडवाना पर गुजरात के बादशाहों ने भी नमक के लिए कब्जा किया। चितौड़ के महाराणा कुंभा ने यहां कब्जा कर नमक पर कर लगाया जिसका उल्लेख कीर्तिस्तंभ के शिलालेख में किया है। मुगलों नें यहां अपने थाने स्थापित किए।.इस दौरान मुगलों ने यहां मस्जिदों का निर्माण कराया। जोधपुर के राव मालदेव के ने अपने सेनापति राव कूंपा को डीडवाना की जागीरी प्रदान की। कूंपा ने यहां शेरशाह सूरी से युद्ध लड़ा। मुगलो के हाथों से यह पुनः जोधपुर राज्य के अन्तर्गत चला गया । 1708 ई. में डीडवाना पर जोधपुर व जयपुर राज्य का संयुक्त शासन भी रहा। इसके बाद झुंझूनू के नवाब ने भी डीडवाना को अपनी रियासत के अधीन किया। मराठों ने भी डीडवाना व दौलतपुरा पर आक्रमण कर इन पर अधिकार किया। 18वीं शताब्दी के मध्य में जोधपुर नरेश महाराजा बख्तसिंह ने इसे मारवाड़ रियासत में मिला लिया। इस के बाद डीडवाना जोधपुर राज्य का परगना बना रहा जिस के अंतर्गत लाडनूं, बड़ी बेरी, नहवा, लेड़ी और तोसीणा जागीरी ठिकाने आते थे । स्वतंत्रता के पश्चात 1950 में जोधपुर राज्य का राजस्थान में विलय हो गया और नागौर जिले का वर्तमान स्वरूप बना जिस में डीडवाना सम्मलित हो गया।
राजनीति
डीडवाना राजस्थान व भारत की राजनीति का प्रभावशाली केंद्र रहा है। इस नगर ने राजस्थान की राजनीति को उपमुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, पार्टी अध्यक्ष, सांसद, केबिनेट एवं राज्यमंत्री दिए है।
पण्डित बच्छराज व्यास
"तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहे ना रहे" जैसी कविता के रचियता जनसंघ के नेता डीडवाना निवासी बच्छराज व्यास का जन्म 24 सितंबर 1916 को हुआ। पं.व्यास नागपुर के संघ मुख्यालय से अपना कार्य करते रहे। बालासाहब व हेडगेवार के कहने पर बच्छराज जी 1944 से 1947 तक राजस्थान में संघ का प्रचार करते रहे इस दौरान श्री व्यास ने अपने गृहनगर डीडवाना में राजस्थान की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रथम शाखा की स्थापना कर नगर को गौरव प्रदान किया। 1965 में पं.व्यास जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गये। व्यास के पं.दीनदयाल उपाद्याय, डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी के साथ सीधा संम्पर्क था। व्यास 1958 से 1962 तक महाराष्ट्र विधानपरिषद् के सदस्य रहे। आप का निधन 1972 को हुआ। व्यास की स्मृति में नागपुर के एक चौराहे का नामकरण उनके नाम पर किया गया व डीडवाना एवं नागपुर में आदर्श विद्या मंदिर का निर्माण किया गया। पं. व्यास के पुत्र गिरीश व्यास वर्तमान में महाराष्ट्र विधानपरिषद् के अध्यक्ष है।
मथुरादास माथुर
स्वंत्रतता सेनानी एवं जोधपुुुर निवासी मथुरादास माथुर डीडवाना के पहले विधायक चुने गये। इन्होने राजस्थान विधानसभा में 1952, 1967 एवं 1977 में तीन बार डीडवाना का प्रतिनिधित्व किया, जो कि डीडवाना सीट का रिकॉड है। 1967 में मोहनलाल सुखाड़िया सरकार में मंत्री भी रहे। माथुर दूसरे लोकसभा चुनाव में नागौर सीट से जीत कर सांसद बने। इनकी स्मृति में जोधपुर में मथुरादास माथुर अस्पताल बना हुआ है।
गुमानमल लोढा
15 मार्च 1926 को डीडवाना में जन्मे गुमानमल लोढा़ ने जोधपुर में वकालत की । जोधपुर में जन्मे मथुरादास माथुर ने डीडवाना को एवं डीडवाना निवासी लोढा़ ने जोधपुर को अपनी कर्म भूमि बनाया। लोढा़ ने वर्ष 1962 व 1967 में जनसंघ के प्रत्याशी रूप में जोधपुर शहर सीट से चुनाव लड़ा किन्तु दोनो बार पराजित रहे। वर्ष 1969 से 1971 तक जनसंघ की राजस्थान इकाई के अध्यक्ष रहे 1972 में जोधपुर शहर सीट से विधायक बने और विधानसभा में जनसंघ के नेता बने। 1978 में लोढ़ा राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधिपति नियुक्त किये गये। वर्ष 1988 में असम उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश बने। 1989, 1991 व 1996 में लोढा़ भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर पाली संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गये। वर्ष 2009 में लोढ़ा का स्वर्गवास हो गया।
हरिशंकर भाभड़ा
राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे हरिशंकर भाभड़ा का जन्म 6 अगस्त 1928 को डीडवाना में हुआ। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए। स्वतंत्रता के बाद भाभड़ा भारतीय जनसंघ की प्रदेश इकाई के कोषाध्यक्ष व उपाध्यक्ष भी रहे। 1963 में डीडवाना पूरे राजस्थान में एक ही नगरपालिका थी जिसमें गैर कांग्रेसी सदस्यों का बहुमत था, भाभड़ा इस के अध्यक्ष बने। आपातकाल में 18 माह जेल में बिताए। 1978 से 1984 तक भाभड़ा राज्यसभा के सदस्य रहे। 1985 से 1993 तक चूरु जिले की रतनगढ़ सीट से विधायक रहे। भाभड़ा 9वीं व 10वीं विधानसभा के अध्यक्ष चुने गये। 1994 में भैरौसिंह शेखावत सरकार में उपमुख्यमंत्री बने। 2003 के चुनावों में भाभड़ा पराजित हुए परन्तु वसुंधरा सरकार में उन्हे केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त हुआ।
युनूस खान
सीकर के गनेड़ी में जन्मे युनूस खान ने अपनी शिक्षा डीडवाना के राजकीय बांगड़ महाविद्यालय से प्राप्त की। इस के बाद खान भारतीय जीवन बीमा निगम में विकास अधिकारी के पद पर कार्य किया। भैरौसिंह शेखावत के सम्पर्क में आने के बाद 1998 में डीडवाना से भाजपा के उम्मीद्वार के रूप में चुनाव लड़ा परन्तु पराजित हुए। 2003 में डीडवाना से चुनाव जीत कर वसुंधरा राजे सरकार में खेल एवं यातायात मंत्री बने। युनूस खान इस दौरान पूरे उत्तर भारत के एकमात्र भाजपा के मुस्लिम विधायक थे। 2008 के चुनाव मेंं हारे । 2013 में दूसरी बार डीडवाना से जीते और सरकार में यातायात व सानवि मंत्री बने। 2018 का चुनाव टोंक से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलेट के खिलाफ लड़ा परन्तु पराजित हुये।
उम्म्मेदसिंंह
1990 मेें जनता दल से डीडवाना से जीते, नवम्बर 1990 मेें शेखावत सरकार से समर्थन लेने के कारण उम्मेदसिंह सरकार में राज्यमंत्री बने।
डीडवाना के विधायक
1.मथुरादास माथुर :- वर्ष 1952 (कांग्रेस)
2.मोतीलाल :- वर्ष 1957 (कांग्रेस)
3.मोतीलाल :- वर्ष 1962 (कांग्रेस)
4.मथुरादास माथुर :- वर्ष 1967 (कांग्रेस)
5.भोमाराम :- वर्ष 1972 (स्वतंत्र पार्टी)
6.मथुरादास माथुर :- वर्ष 1977 (कांग्रेस)
7.उम्मेदसिंह :- वर्ष 1980 (जनता पार्टी)
8.भंवराराम सुपका :- वर्ष 1985 (कांग्रेस)
9.उम्मेदसिंह :- वर्ष 1990 (जनता दल)
10.चेनाराम चौधरी :- वर्ष 1993 (निर्दलीय)
11.रूपाराम डुडी :- वर्ष 1998 (कांग्रेस)
12.युनूस खान :- वर्ष 2003 (भाजपा)
13.रूपाराम डुडी :- वर्ष 2008 (कांग्रेस)
14.युनूस खान :- वर्ष 2013 (भाजपा)
15.चेतन डुडी :- वर्ष 2018 (कांग्रेस)
रक्तदान का नगर
डीडवाना रक्तदान के मामले में राजस्थान में प्रथम स्थान पर है। यहां रक्तदान को लेकर इतना उत्साह है कि लोग अपने परिजनों के जन्मदिन या पुण्यतिथि को रक्तदान कर मनाते है। डीडवाना में 2001 से नियमित हर वर्ष औसतन 10 रक्तदान शिविरोंं का आयोजन हो रहा है जिनमें औसतन 3000 यूनिट रक्तदान होता है। 2001 से अब तक 15000 यूनिट रक्तदान किया जा चुका है।
सितंबर 2017 में 15 दिन के अंतराल में हुए 2 रक्तदान शिविरोंं में क्रमशः 1353 एवं 1567 यूनिट रक्त संग्रह किया गया जो कि एक रिकॉर्ड है। इससे पहले भी अप्रेल 2017 में 1051, सितंबर 2016 में 1262, अगस्त 2016 में 922 व जनवरी 2013 में 511 यूनिट रक्तदान किया गया। रक्तदान के उत्साह को देखते हुये काफी प्रयासों के बाद फरवरी 2019 में राजकीय बांगड़ चिकित्सालय में 300 यूनिट क्षमता वाले ब्लड बैंक की स्थापना की गयी। जिसकी क्षमता यहां होने वाले रक्तदान के कारण बढा़ दी गयी। फरवरी 2019 के बाद अब तक इस ब्लड बैंक में 1825 यूनिट रक्त का दान किया जा चुका है जो कि एक रिकॉड है।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "Lonely Planet Rajasthan, Delhi & Agra," Michael Benanav, Abigail Blasi, Lindsay Brown, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012332
- ↑ "Berlitz Pocket Guide Rajasthan," Insight Guides, Apa Publications (UK) Limited, 2019, ISBN 9781785731990