ट्रांजिस्टर का इतिहास
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
ट्रांजिस्टर एक अर्धचालक युक्ति है जिसमें कम से कम से कम तीन सिरे होते हैं ('फोटोट्रांजिस्टर' में दो ही सिरे होते हैं)। ट्रांजिस्टर के विकास के पहले संकेतों के प्रवर्धन आदि के लिए निर्वात-नलिका ट्रायोड का उपयोग किया जाता था। अर्धचालक ट्रांजिस्टर का विकास एक क्रान्तिकारी घटना थी जिसने आज की एकीकृत परिपथ, संचार क्रान्ति, कम्प्यूटर क्रान्ति और सूचना क्रान्ति को सम्भव बनाया।
कालक्रम
- १८३३ -- पहली बार अर्धचालक प्रभाव पाया गया।
- १८७४ -- पहली बार अर्धचालक बिन्दु-सम्पर्क ऋजुकारी प्रभाव (semiconductor point contact rectifier effect) देखा गया।
- १९२६ -- 'फिल्ड इफेक्ट सेमीकण्डक्टर प्रभाव' पर काम करने वाली युक्ति का पेटेन्ट
- १९४० -- पी-एन जंक्शन का आविष्कार
- १९४१ -- द्वितीय विश्वयुद्ध में पहली बार अर्धचालक ऋजुकारी (रेक्टिफायर) का उपयोग
- १९४७ -- बिन्दु-सम्पर्क ट्रांजिस्टर का आविष्कार
- १९४८ -- विलियम शॉक्ले ने पी-एन जंक्शन पर आधारित उन्नत ट्रांजिस्टर का कान्सेप्ट दिया।
- १९५२ -- ट्रांजिस्टर पर आधारित कुछ उपभोक्ता वस्तुए बाजार में उपलब्ध
- १९५३ -- ट्रांजिस्टर से बने कम्प्यूटर निर्मित
- १९५५ -- ट्रांजिस्टरों के निर्माण के लिए फोटोलिथोग्राफी तकनीक का प्रयोग
- १९५९ -- व्यावहारिक मोनोलिथिक एकीकृत परिपथ के कान्सेप्ट का पेटेन्ट
- १९६० -- मेटल ऑक्साइड सेमीकण्डक्टर ट्रांजिस्टर (MOS transistor) का प्रदर्शन
- १९६३ -- मानक लॉजिक आई सी परिवार (standard logic IC family) का कान्सेप्ट आया।