टी एस एलियट

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
टी एस एलियट
T. S. Eliot
Thomas Stearns Eliot by Lady Ottoline Morrell (1934).jpg
एलियट, 1934 में
जन्मसाँचा:br separated entries
मृत्युसाँचा:br separated entries
मृत्यु स्थान/समाधिसाँचा:br separated entries
व्यवसायकवि, नाटककार, साहित्यिक आलोचक, सम्पादक
नागरिकताजन्म से अमेरिकी ; 1927 से ब्रितानी
शिक्षादर्शनशास्त्र में एबी (हार्वर्ड विश्वविद्यालय, 1909)
PhD (cand) in philosophy (Harvard, 1915–16)[१]
अवधि/काल1905–1965
साहित्यिक आन्दोलनModernism
उल्लेखनीय कार्यs"The Love Song of J. Alfred Prufrock" (1915), The Waste Land (1922), Four Quartets (1943), "Murder in the Cathedral" (1935)
उल्लेखनीय सम्मानNobel Prize in Literature (1948), Order of Merit (1948)
जीवनसाथीसाँचा:marriage
साँचा:marriage

हस्ताक्षर

साँचा:template otherसाँचा:main other

टी० एस० एलियट (Thomas Stearns Eliot ; १८८८-१९६५) १९४८ के नोबेल-पुरस्कार-विजेता(साहित्य) तथा आधुनिक युग की महानतम अंग्रेजी साहित्यिक विभूतियों में से थे। आपने नाटक, कविता और आलोचना तीनों क्षेत्रों में महान् ख्याति प्राप्त की है तथा आधुनिक युग के प्रायः सभी प्रसद्धि लेखकों को प्रभावित किया है। वे स्वयं डन, एज़रा पाउंड तथा फ्रांसीसी प्रतीकवादी कवि लॉफोर्ज़ से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। १९११ से १९१४ तक हार्वर्ड में उन्होने संस्कृत और पालि भाषा का भी अध्ययन किया।

२६ वर्ष की आयु में आप अपनी मातृभूमि अमरीका छोड़कर इंग्लैंड में बस गए और १९२७ में ब्रिटिश नागरिक बन गए।

कृतियां

यद्यपि आपका पहला काव्यसंग्रह 'प्रफ्रूॉक ऐंड अदर आब्जॅरवेशंस' १९१७ में प्रकाशित हुआ, तथापि आपको वास्तविक ख्याति 'द वेस्टलैंड' (१९२२) द्वारा प्राप्त हुई। मुक्त छंद में लिखे तथा विभिन्न साहित्यिक संदर्भो एवं उद्धरणों से पूर्ण इस काव्य में समाज की तत्कालीन परिस्थिति का अत्यंत नैराश्यपूर्ण चित्र खींचा गया है। इसमें कवि ने जान बूझकर अनाकर्षक एवं कुरूप उपमानों का प्रयोग किया है जिससे वह पाठकों की भावना को ठेस पहुँचाकर उन्हें समाज की वास्तविक दशा का ज्ञान करा सके। उसके मत में संसार एक 'मरूभूमि' है-आध्यात्मिक दृष्टि से अनुर्वर तथा भौतिक दृष्टि से अस्त व्यस्त। इसके बाद की रचनाओं में हमें एक दूसरा ही दृष्टिकोण मिलता है जो धार्मिकता की भावना से पूर्ण है और जिसका चरम विकास 'ऐश वेन्सडे' (१९३०) और 'फ़ोर क्वार्टेट्स' (१९४४) में हुआ।

आलोचना के क्षेत्र में आपका सबसे महत्वपूर्ण कार्य १७वीं शताब्दी के लेखकों, विशेषकर डन तथा ड्राइडेन की खोई हुई प्रतिष्ठा का पुनः संस्थापन तथा मिल्टन एवं शेली की भर्त्सना करना रहा है। दांते की भी आपने नई व्याख्या की हैं। वैसे तो आपने कई सौ आलोचनाएँ लिखी हैं, परन्तु 'द सैक्रेड वुड'(१९२०), 'द यूस ऑव पोएट्री ऐंड द यूस ऑव क्रिटिसिज्म' (१९३३) तथा 'आन पोएट्री ऐंड पोएट्स' (१९५७) विशेष उल्लेखनीय हैं।

आपने निम्नलिखित पाँच नाटकों की रचना की है: 'मर्डर इन द कैथीड्रल' (१९३५), 'फैमिली रियूनियन' (१९३९), 'द काकटेल पार्टी' (१९५०), 'द कान्फ़िडेंशल क्लाक' (१९५५), 'द एल्डर स्टेट्समैन' (१९५८)। ये सभी पद्य में लिखे गए हैं एवं रंगमचं पर लोकप्रिय हुए हैं। 'मर्डर इन द कैथीड्रल' पर फ़िल्म भी बन चुकी है।

एलियट का निर्वैयक्तिकता का सिद्धान्त

एलियट के निर्वैयक्तिकता (objectivity) के सिद्धान्त का प्रतिपादन रोमैंटिक कवियों की व्यक्तिवादिता (subjectivity) के विरोध में हुआ। इलियट, एजरा पाउण्ड के विचारों से काफी प्रभावित थे। एजरा पाउण्ड की मान्यता थी कि कवि वैज्ञानिक के समान ही निर्वैयक्तिक और वस्तुनिष्ठ होता है। कवि का कार्य आत्मनिरपेक्ष होता है। इस मत से प्रभावित इलियट अनेकता में एकता बाँधने के लिए परम्परा को आवश्यक मानते थे, जोे वैयक्तिकता का विरोधी है। वह साहित्य के जीवन्त विकास के लिए परम्परा का योग स्वीकार करते थे, जिसके कारण साहित्य में आत्मनिष्ठ तत्त्व नियंत्रित हो जाता है और वस्तुनिष्ठ प्रमुख हो जाता है।

इलियट ने 'निर्वैयक्तिकता' का अर्थ कवि के व्यक्तिगत भावों की विशिष्टता का सामान्यीकरण बताया है। अनके अनुसार कवि अपनी तीव्र संवेदना और ग्रहण क्षमता से अन्य लोगों की अनुभूतियों को आयत्त कर लेता है, पर वे आयत्त अनुभूतियां उसकी निजी अनुभूतियाँ हो जाती हैं। जब वह अपने स्वयुक्त अथवा चिन्तन द्वारा आयत्त अनुभवों को काव्य में व्यक्त करता है तो वे उसके निजी अनुभव होते हुए भी सबके अनुभव बन जाते हैं। कविता के घटक-तत्त्व, विचार, अनुभूति, अनुभव, बिम्ब, प्रतीक आदि सब व्यक्ति के निजी या वैयक्तिक होते हैं। कलाकार जब अपनी तीव्र संवेदना और ग्रहण शक्ति के माध्यम से अपने अनुभवों को काव्य रूप में प्रकट करता है, तो वे व्यक्तिगत होते हुए भी सबके लिए अर्थात् सामान्य (सार्वजन्य) बन जाते हैं। कवि उनके भार से मुक्त हो जाता है या कहिए कि ये तत्त्व कवि की वैयक्तिकता से बहुत दूर चले जाते हैं या कहिए कि निर्वैयक्तिक हो जाते हैं। भाव ही नहीं कविता के माध्यम से कवि अपनी वैयक्तिक सीमाओं से भी मुक्त हो जाता है, उसका स्वर एक व्यक्ति का स्वर न रहकर विश्वमानव का सर्वजनीन स्वर बन जाता है। उदाहरण के लिए कई तत्त्वों से चटनी बनती है पर चटनी तैयार होने पर सभी तत्त्व अपने स्वाद से मुक्त हो जाते हैं।

पाश्चात्य जगत उक्त धारणाओं से अचंभित होकर इन्हें हास्यापद एवं स्वतो व्याघात दोष से युक्त भी घोषित किया। पश्चिमी साहित्य चिंतन स्तर के अनुसार ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि इस सिद्धान्त को वही व्यक्ति गहराई से समझ सकता है जिसने भारतीय आचार्य भट्टनायक के साधारणीकरण एवं अभिनवगुप्त के अभिव्यक्तिवाद का अनुशीलन किया है। रस सिद्धान्त के अंतर्गत जो बात साधारणीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत कही गई है वही बात निर्वैक्तिकता के सिद्धांत के अंतर्गत कही गई है।

सन्दर्भ

  1. Jewel Spears Brooker, Mastery and Escape: T.S. Eliot and the Dialectic of Modernism, University of Massachusetts Press, 1996, p. 172.

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:navbox साँचा:authority control