टाइटन (चंद्रमा)

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टाइटन
Titan in natural color
खोज
खोज कर्ता क्रिस्टियान हायगन्स
खोज की तिथि २५ मार्च १६५५
उपनाम
प्रावधानिक नामसैटर्न षष्टम
विशेषण टाइटैनियन
अर्ध मुख्य अक्ष साँचा:val
विकेन्द्रता साँचा:val
परिक्रमण काल साँचा:val
झुकाव साँचा:val (शनि की भूमध्य रेखा को)
स्वामी ग्रह शनि
भौतिक विशेषताएँ
माध्य त्रिज्या साँचा:val (साँचा:val)[२]
तल-क्षेत्रफल साँचा:val
द्रव्यमान साँचा:val (साँचा:val)[२]
माध्य घनत्व साँचा:val[२]
विषुवतीय सतह गुरुत्वाकर्षणसाँचा:val (साँचा:val)
पलायन वेगसाँचा:val
घूर्णन सिंक्रोनस
अक्षीय नमन शून्य
अल्बेडो0.22[३]
तापमान साँचा:val (साँचा:val)[४]
सापेक्ष कांतिमान 7.9
वायु-मंडल
सतह पर दाब साँचा:val
संघटन 98.4% nitrogen (N2)
1.6% methane (CH4)[५]

टाइटन (Titan), या शनि षष्टम, सौर मंडल के शनि ग्रह का सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह सौर मंडल के सभी चंद्रमाओं में वातावरण वाला एकमात्र ज्ञात चंद्रमा है, और पृथ्वी के अलावा एकमात्र ऐसा खगोलीय पिंड है जिसके सतही तरल स्थानों, जैसे नहरों, सागरों आदि के ठोस प्रमाण उपलब्ध हों।[६][७] यूरोपीय-अमेरिकी कासीनी अंतरिक्ष यान के साथ गया उसका अवतरण यान, हायगन्स, १६ जनवरी २००४ को टाइटन के धरातल पर उतरा जहाँ उसने भूरे-नारंगी रंग में रंगे टाईटन के नदियों-पहाडों और झीलों-तालाबों वाले चित्र भेजे। टाइटन के बहुत ही घने वायुमंडल के कारण इससे पहले उसकी ऊपरी सतह को देखना या उसके चित्र ले पाना संभव ही नहीं था।[८]

२००८ अगस्त के मध्य में ब्राज़ील की राजधानी रियो दी जनेरो में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के सम्मेलन में ऐसे चित्र दिखाये गये और दो ऐसे शोधपत्र प्रस्तुत किये गये, जिनसे पृथ्वी के साथ टाइटन की समानता स्पष्ट होती है। ये चित्र और अध्ययन भी मुख्यतः कासीनी और होयगन्स से मिले आंकड़ों पर ही आधारित थे।

वातावरण

टाइटन का धुंधमय वातावरण sobgood
उतरी ध्रुव
मौसमी बदलाव

यान के यहां उतरते समय चारो तरफ काफ़ी धुंध थी पर वह इतनी पारदर्शी थी कि होयगन्स के कैमरे ४० किलोमीटर की ऊंचाई से ही नीचे के दृश्य के फ़ोटो लेने में सक्षम हो पाये। वह कई परतों वाले वायुमंडल से गुज़रता हुआ एक ऊबड़- खाबड़ जगह पर उतरा। वायुमंडल में उसे बिजली कौंधने के संकेत भी मिले। होयगन्स अभियान प्रबंधक जौं पियेर लेब्रेतां के अनुसार इस का मतलब है कि टाइटन का वायुमंडल चंचल है। वहां उस समय तेज़ हवाएं चल रही थीं। पैराशूट के सहारे उतरना काफी झूलेदार रहा होगा। होयगन्स में रखे विश्लेषण उपकरणों ने टाइटन की हवा में तैरने वाले तत्वों का जो विश्लेषण किया, उससे पता चला कि उसके बादल मुख्यतः ईथेन और मीथेन गैसों के बने होते हैं। इन बादलों से मुख्यतः तरल मीथेन की वर्षा होती है। होयगन्स को अपनी यात्रा के दौरान ऐसी कोई बरसात नहीं मिली। इस तरल मीथेन गैस वर्षा से उसके गैस बनने और बरसने का चक्र पृथ्वी पर पानी की बरसात के समान ही होता है। यान के नीचे की जमीन भीगी हुई रेत जैसी दृढ़ थी, फिर भी यान इस जमीन में लगभग १० सेंटीमीटर धंस गया था और एक तरफ को हल्का सा झुक गया था।

शनि के इस उपग्रह और पृथ्वी के बीच और भी कई समानताएं हैं। टाइटन पर ज्वालामुखी जैसी क्रियाएं भी देखने में आती हैं और यहां खाइयां, नदियों के पाट और मुहाने भी दिखते हैं, किन्तु बड़े पहाड़ नहीं दिखे। बहुत कम क्रेटर-जैसे गोलाकार गड्ढे हैं और किसी प्रकार का जीवन नहीं है। वातावरण अत्यंत ठंडा है। तरल मीथेन यहां पानी का काम करती है। हवा में प्रतिध्वनि भी होती है, पृथ्वी की तरह तरंगें भी पैदा होती हैं।

सतह

पृथ्वी की तुलना में टाइटन के रेत के टीले

वैज्ञानिक जॉनथन लूनिन के अनुसार होयगन्स जहां उतरा, वहां नीची पहाड़ियों और उनके बीच समतल मैदानों वाली दृश्यावली थी। उतरने से पहले वह एक पहाड़ के ऊपर से होता हुआ गुज़रा। उसने नदियों की कटान से ज़मीन पर बनी टाइटन की ऊपरी सतह पर आकृतियां देखीं, जो एक समतल मैदान की तरफ जा रही थीं। इस इलाके को पार करता हुआ वह एक ऐसी जगह उतरा, जहां पहाड़ियों के बीच आस-पास बड़ी-बड़ी चट्टानें बिखरी हुई थीं। वह कंकड़-पत्थर और बर्फ के टुकड़ों वाली एक समतल जगह पर उतरा। ये चीज़ें शायद पास के पहाड़ों पर से बह कर वहां आयी थीं।

ज्वालामुखी

यह चंद्रमा पृथ्वी की अपेक्षा बेहद ठंडा है और औसत तापमान शून्य से भी १८० डिग्री सेल्सियस नीचे है, जो साइबेरिया से भी तीन गुना ठंडा है। नदियों और झीलों में पानी के बदले तरल मीथेन गैस बहती है। ज्वालामुखी से बर्फीली अमोनिया निकलती है। वायुमंडल में ९८.४ प्रतिशत नाइट्रोजन गैस है और शेष १.६ प्रतिशत अन्य गैसें हैं जिसमें मीथेन का अनुपात सर्वाधिक है। वायुमंडल बहुत सघन और गुरुत्वाकर्षण बल कम है। टाइटन शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है। ५.१५० किलोमीटर व्यास वाला ये चंद्रमा पृथ्वी के चंद्रमा से १.६२४ किलोमीटर बड़ा है। उसका घना वायुमंडल पृथ्वी के वायुमंडल के विपरीत एक ऐसा विलोम ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा करता है कि सूर्य की किरणें अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। इस कारण उसे जितना ठंडा होना चाहिये, उससे कहीं अधिक ठंडा है।

चित्रदीर्घा

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ