जैविक घड़ी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

जीवधारियों के शरीर में समय निर्धारण की एक समुन्नत व्यवस्था होती है जिसे हम जैविक घड़ी या (बायोलॉजिकल क्लाक) कहते हैं।

मनुष्य में जैविक घड़ी का मूल स्थान हमारा मस्तिष्क है। हमारे मस्तिष्क में करोड़ो कोशिकाएं होती है जिन्हे हम न्यूरॉन कहते हैं। ये कोशिकाएं पूरे शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित एवं निर्धारित करती है। एक कोशिका से दूसरे कोशिका को सूचना का आदान-प्रदान विधुत स्पंद द्वारा दिया जाता है। हम रात को समय विशेष पर सोने जाते हैं तथा सुबह स्वतः जाग जाते हैं। आखिर हम कैसे जान जाते हैं कि सुबह हो चुकी है। कौन हमें जगा देता है। हम निद्रा में रहते हैं किंतु हमारा मस्तिष्क तब भी सक्रिय रहता है। औसतन हम एक मिनट में 15-18 बार सांस लेते हैं तथा हमारा हृदय 72 बार धड़कता है। आखिर यह कहां से संचालित होता है।

पेड़-पौधों में निश्चित समय पर फूल लगना एवं फल बनना बसंत के समय पतझड़ में पुरानी पतियों का गिरना एवं पौधों का नई कोपलों धारण करना समय पर ही बीज विशेष का अंकुरण होना सब जैविक घड़ी की सक्रियता का परिणाम है।

जैविक घड़ी से व्यक्ति के सोचने, समझने की दशा एवं दिशा, तर्क-वितर्क , निर्णय क्षमता एव व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। कई दिनों से न सो पाए या अनयमित दिनचर्या वाले व्यक्ति, चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। किसी बात को तत्काल याद नहीं कर पाते तथा किसी बात पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। शिफ्ट में ड्यूटी करने वालो की ये आम शिकायते हैं। ऐसा उनकी जैविक घड़ी में आए व्यवधान के कारण होता है। हमारी जैविक घड़ी दिन-रात होने के साथ ही बहारी स्थितियों से समंजित होती है। रात्रि होने पर वह हमें सोने के लिए प्रेरित करती है तथा हमारे संवेदन एंव ज्ञानेद्रियों को धीरे-धीरे सुस्त कर आराम की स्थिति में लाती है जिससे हम सो सकें। सुबह पुनः हमे जगा भी देती है। जैविक घड़ी में आया व्यवधान धीरे-धीरे दूर हो जाता है तथा बाह्य स्थितियों से वह सेट हो जाती है। दिन एवं रात के अनुसार हमारे शरीर का तापमान भी निश्चित प्रारूप के अनुसार बदलता रहता है।