जीव गोस्वामी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
जीव गोस्वामी की प्रतिमा

श्री जीव गोस्वामी (१५१३-१५९८), वृंदावन में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भेजे गए छः षण्गोस्वामी में से एक थे। उनकी गणना गौड़ीय सम्प्रदाय के सबसे महान दार्शनिकों एवं सन्तों में होती है। उन्होने भक्ति योग, वैष्णव वेदान्त आदि पर अनेकों ग्रंथों की रचना की। वे दो महान सन्तों रूप गोस्वामी एवं सनातन गोस्वामी के भतीजे थे।

इनका जन्म श्री वल्लभ अनुपम के यहां १५३३ ई० (तद.१४५५ शक. भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को हुआ था। श्री सनातन गोस्वामी, श्री रूप गोस्वामी तथा श्री वल्लभ, ये तीनों भाई नवाब हुसैन शाह के दरबार में उच्च पदासीन थे। इन तीनों में से एक के ही संतान थी, श्री जीव गोस्वामी। बादशाह की सेवाओं के बदले इन लोगों को अच्छा भुगतान होता था, जिसके कारण इनका जीवन अत्यंत सुखमय था। और इनके एकमात्र पुत्र के लिए किसी वस्तु की कमी न थी। श्री जीव के चेहरे पर सुवर्ण आभा थी, इनकी आंखें कमल के समान थीं, व इनके अंग-प्रत्यंग में चमक निकलती थी।

श्री गौर सुदर्शन के रामकेली आने पर श्री जीव को उनके दर्शन हुए, जबकि तब जीव एक छोटे बालक ही थे। तब महाप्रभु ने इनके बारे में भविष्यवाणी की कि यह बालक भविष्य में गौड़ीय संप्रदाय का प्रचारक व गुरु बनेगा। बाद में इनके पिता व चाचाओं ने महाप्रभु के सेवार्थ इनको परिवार में छोड़कर प्रस्थान किया।

इन्हें जब भी उनकी या गौरांग के चरणों की स्मृति होती थी, ये मूर्छित हो जाते थे। बाद में लोगों के सुझाव पर ये नवद्वीप में मायापुर पहुंचे व श्रीनिवास पंडित के यहां, नित्यानंद प्रभु से भेंट की। फिर वे दोनों शची माता से भी मिले। फिर नित्य जी के आदेशानुसार इन्होंने काशी को प्रस्थान किया। वहां श्री रूप गोस्वामी ने इन्हें श्रीमद्भाग्वत का पाठ कराया। और अन्ततः ये वृंदावन पहुंचे। वहां इन्होंने एक मंदिर भी बनवाया।

१५४० शक शुक्ल तृतीया को ८५ वर्ष की आयु में इन्होंने देह त्यागी।

सन्दर्भ

  • श्री चैतन्य चरितामृतम, आदि-लीला, १०.८५

बाहरी कडियाँ