जिराफ़ तारामंडल

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जिराफ़ तारामंडल
रात में बिना दूरबीन के जिराफ़ तारामंडल के तारे (काल्पनिक रेखाओं से जुड़े हुए)

जिराफ़ या कमॅलपार्डलिस (अंग्रेज़ी: Camelopardalis) खगोलीय गोले के उत्तरी भाग में स्थित एक अकार में बड़ा लेकिन धुंधला-सा तारामंडल है। इसकी परिभाषा सन् १६१२ या १६१३ में पॅट्रस प्लैंकियस (Petrus Plancius) नामक डच खगोलशास्त्री ने की थी। इसका अंग्रेज़ी नाम दो हिस्सों का बना है: कैमल (यानि ऊँट) और लेपर्ड (यानि धब्बों वाला तेंदुआ)। लातिनी में कैमलेपर्ड का मतलब था "वह ऊँट जिसपर तेंदुएँ जैसे धब्बे हों", यानि की जिराफ़

तारे व अन्य खगोलीय वस्तुएँ

जिराफ़ तारामंडल में ३६ तारें हैं जिन्हें बायर नाम दिए जा चुके हैं, जिनमें से अगस्त २०११ तक ४ के इर्द-गिर्द ग़ैर-सौरीय ग्रह परिक्रमा करते हुए पाए गए थे। इस तारामंडल में कोई भी तारा ४ खगोलीय मैग्नीट्यूड से अधिक चमक नहीं रखता। याद रहे कि मैग्नीट्यूड की संख्या जितनी ज़्यादा होती है तारे की रौशनी उतनी ही कम होती है। इसका सब से रोशन तारा बेटा कमॅलपार्डलिस (β Camelopardalis) है, जो ४.०३ की चमक (सापेक्ष कान्तिमान) रखता है और वास्तव में एक दोहरा तारा है। सन् २०११ में इसी तारामंडल के क्षेत्र में एक महानोवा (सुपरनोवा) मिला था।[१] इसमें पृथ्वी से १.१ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर स्थित ऍनजीसी २४०३ (NGC 2403) नामक एक सर्पिल (स्पाइरल) आकाशगंगा भी स्थित है।

वॉयेजर प्रथम यान

१९७७ में अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था नासा द्वारा छोड़ा गया वॉयेजर प्रथम यान इसी तारामंडल की दिशा में बढ़ रहा है। वर्तमान से लगभग ४०,००० सालों बाद यह जिराफ़ तारामंडल के ग्लीज़ ४४५ तारे से लगभग १.६ प्रकाश वर्ष की दूरी से गुज़रेगा।[२] इस काल में यह तारा स्वयं भी हमारी ओर तेज़ गति से आ रहा है और जब वॉयेजर प्रथम इस के पास से निकलेगा उस समय यह तारा हमारे सूरज से लगभग ३.४५ प्रकाश वर्षों की दूरी पर होगा। इतने पास होने के बावजूद भी इस तारे की चमक पृथ्वी की सतह से बिना दूरबीन के देखे जाने के लिए पार्याप्त नहीं होगी।[३] तब तक यान की बैट्रियाँ भी मृत हो चुकी होंगी और इस से कोई भी संकेत या चित्र पृथ्वी पर नहीं पहुँचेगा।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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  3. Page 168, Planets Beyond: Discovering the Outer Solar System, Mark Littmann, Mineola, New York: Courier Dover Publications, 2004, ISBN 0-486-43602-0.