जातियो स्मृतीशोऊधो
जातीयो स्मृतशोऊधो | |
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জাতীয় স্মৃতিসৌধ | |
सामान्य विवरण | |
अवस्था | पूर्ण |
प्रकार | जनसाधारण स्मारक(राष्ट्रीय स्मारक) |
स्थान | सवर, बांग्लादेश |
शहर | साँचा:ifempty |
निर्देशांक | स्क्रिप्ट त्रुटि: "geobox coor" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। |
निर्माणकार्य शुरू | १९७८ |
निर्माण सम्पन्न | १९८२ |
शुरुआत | साँचा:ifempty |
ध्वस्त किया गया | साँचा:ifempty |
ऊँचाई | |
छत | साँचा:convert |
योजना एवं निर्माण | |
वास्तुकार | सईयद मोइनुल हुसैन |
जातियो स्मृतीशोऊधो या जातियो सृतीशोऊधो(साँचा:lang-bn) या राष्ट्रीय स्मृती स्मारक(या स्धारणतः राष्ट्रीय स्मारक) ढाका के सवर उपज़िले(या शाभार उपज़िल) में स्थित बांग्लादेश का राष्ट्रीय स्मारक है। बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की याद में निर्मित किये गए इस स्मृतीका को १९७१ के बांग्लदेश लिबरेशन वाॅर(बांग्लादेश स्वतंत्रता युद्ध) के शहीदों के समर्पण एवं वीरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। राजकीय यात्रा पर बांगलादेश पधारने वाले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष एवं राजनेता, परंपरानुसार इसी स्मारक पर अपनी श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। १५० फ़ीट ऊंचे इस स्मारक की रूपाकृती एवं मानचित्र को सईयद मोईनुल हुसैन ने तईयार किया था। यह राजधानी ढाका से पश्चिमोत्तर दिशा में क़रीब ३५ कलोमीटर की दूरी पर स्थित है।[१]
नामकरण
जतियो स्मृती शोऊधो या जातियो सृतीशोऊधो (साँचा:lang-bn) एक बंगाली शब्द है, जिसका हिन्दी में अर्थ होता है, राष्ट्रीय स्मृतीस्मारक। इस शब्द( জাতিয স্মৃতীসৌধ ') का बंगाली लीपी से देवनागरी में सीधा लिप्यांतरण होगा- जातिय स्मृतीसौध जिसका बंगाली उच्चारण होता है जातियो स्मृतीशोऊधो। यह मूल रूप से तीन बंगाली शब्दों से बना है- जातियो(জাতিয), स्मृती(স্মৃতী) और शोऊधो(সৌধ), जिसमें जातियो का अर्थ होता है "राष्ट्रीय" और स्मृतीशोऊधो का अर्थ होता है "स्मृतीस्मारक" अर्थात "स्मृतिका"; यानी राष्ट्रीय स्मृतीस्मारक या राष्ट्रीय स्मृतिका या सीधे-सीधे राष्ट्रीय स्मारक
इतिहास
प्रस्तावित स्मारक को बनाने की योजनाओं को वर्ष १९७६ में शुरू कर दिया गया था। सन १९७२ के १६ दिसम्बर के विजय दिवस के अवसर पर बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबूर रहमान ने राजधानी ढाका से २५ किलोमीटर दूर ढाका-आरिचा राजमार्ग के पास "नवीनगर" में इस स्मृतिका के निर्माण का शिलान्यास किया था। स्थल-चयन एवं सड़क व भूमी विकास के पश्चात् एक राष्ट्रीय-स्तर की वास्तूप्रकल्प प्रतियोगिता रखी गई। १९७८ में राष्ट्रपति ज़ियाउर रहमान के अध्यक्षता के दौरान कुल ५७ प्रस्तुतियों के मूल्यांकन के पश्चात् सईयद मोईनुल हुसैन के प्रकल्प को वास्तवीकरण के लिये चुना गया। १९७९ में मूल स्मारक के निर्माणकार्य को शुरू किया गया एवं १९८२ के विजयदिवस से थोड़े समय पूर्व, पूर्ण हुआ। इसी परियोजना के अंतर्गत यहां अग्नीशिखा, व्यापक भित्तचित्र एवं एक पुस्तकालय(ग्रन्थागार) स्थापित किया गया। बांग्लादेश सरकार के आवास एवं लोकनिर्माण मंत्रालय के लोकनिर्माण विभाग ने निर्माण कार्य सम्पन्न किया। इस निर्माण को तीन चरणों में कुल बं₹१३ करोड़ की लागत से किया गया। परंपरास्वरूप बांग्लादेश में राजकिय दौरे पर आए विदेशी साष्ट्राध्यक्षगण यहां स्वयं अपने हाथों से स्मतिवृक्ष लगा कर जाते हैं।
विवरण
मुख्य स्मारक ७ समद्विबाहु त्रिकोणीय पिरामिड आकार की संरचनाओं से बना है, जिसमें से मध्यतम त्रिकोण सबसे ऊंचा है। स्मारक का उच्चतम बिंदु ज़मीन से १५० फीट की ऊंचाई पर है। मुख्य स्मारक के सामने में एक कृत्रिम(मानव-निर्मित) झील है, और कई सामूहिक कब्रएं हैं। परिसर के अंदर एक ग्रीन हाउस, पीडब्ल्यूडी स्थानिय कार्यालय एवं वीवीआईपी और वीआईपी प्रतीक्षालय भी हैं। शौचालय जैसे कुछ अन्य संरचनाएं- अतिथीगाह, विद्युत उप-स्टेशन, फूल और संस्मरणीं विक्रालय, पुलिस बैरक भी हैं एवं संग्रहालय और लेज़र-शो निर्माणाधीन हैं।