जयपुर के व्यंजन

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जयपुर के व्यंजन

जयपुर भ्रमण पर आये लोग अक्सर यहाँ खाने पीने की मशहूर चीज़ों के बारे में भी जानना चाहते हैं। जैसे मथुरा की पहचान वहाँ के पेड़ों से, आगरा की पेठों से, दिल्ली की परांठों और छोलों-कुलचों से होती रही है वैसी ही जयपुर भी एक ज़ायकेदार महानगर है। [१]साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] यहाँ राजस्थान में अगर दाल-बाटी-चूरमा खास डिश है तो बीकानेर के रसगुल्ले-भुजिया-पापड, जोधपुर की मावा-कचोरी, मिर्ची बड़ा और माखनिया लस्सी और कोटा की कचोरी भी अपनी जगह बड़ी प्रसिद्ध है पर जयपुर का मिश्रीमावा इनसे टक्कर लेता मिष्टान्न है। आइये- शहर के स्वाद और जायके पर एक मनोरंजक नज़र डाली जाय!

सबसे पहले हम चलते हैं अजमेरी गेट से बापू बाज़ार के लिंक रोड पर जहाँ चाट का एक काफी पुराना ठिकाना है तेलीपाड़े रास्ता के कोने पर जिसे स्थानीय लोग “चटोकड़ी रांडों का चौराहा” के नाम से ही जानते हैं, नाम यकीनन ख़राब है पर चाट स्वादिष्ट. यहाँ आपको बस दो ही चीजें खिलायेंगें गोल-गप्पे और छोले-भटूरे ... यहाँ से आगे रुख करते हैं जौहरी बाज़ार का जहाँ जयपुर की शान कहा जाने वाला एल एम बी यानि लक्ष्मी मिष्ठान्न भंडार है। यूँ यहाँ खाने को तो बहुत सी चीजें हैं- दही बड़े, देसी घी की आलू की टिकिया और दूसरी चीज़ें पर इसके पनीर-घेवर का कोई जवाब नहीं। डिब्बों में बंद होकर दुनिया भर की सैर पर निकल पड़ते हैं यहाँ के बने पनीर/ मलाई घेवर. आगे का रुख करते हैं। मोतीसिंह भोमियों के रास्ते में एक छोटी-सी दुकान है “शर्मा चाट भण्डार”, जहाँ आप यदि एक बार दही-बड़े चख लेंगें तो इस बात की गारंटी है कि इसका जायका कई दिन तक याद रखेंगें. यहाँ आलू की टिकिया भी बेहद स्वादिष्ट मिलती है। थोडा आगे बढ़कर अब चलते हैं हल्दियों के रास्ते में- बुलीयन बिल्डिंग के पहले कोने पर, जहाँ गर्मागर्म मिर्च-बड़ों का आनंद लिया जा सकता है। जौहरी बाज़ार से बड़ी चौपड पर आते हैं और रुख करते हैं त्रिपोलिया का. त्रिपोलिया गेट के पास ठंडी प्याऊ पर जगन्नाथ पकोड़ी वाले के भुजिये व दाल के बड़े जरुर खाइयेगा. पहले बेसन के भुजियों या दाल के पकौड़ों का स्वाद चख कर रामचंद्र की मटका कुल्फी खा ली जाए नहीं तो फिर इसके लिए शाम को 'यादगार' के सामने रामनिवास बाग के बाहर जाना पड़ेगा . त्रिपोलिया से चाहें तो आगे बढ़ कर चौड़ा रास्ता में घुस सकते हैं क्योंकि ‘सम्राट’ का समोसा अपनी खास चटनी के साथ आपका जायका बढाने के लिए इंतज़ार में है। और फिर थोड़ी दूर ही ‘साहू की चाय’ भी चुस्कियां जा सकती है। यहीं सर्दियों में ‘नारायणजी’ की मशहूर खस्ता गजक का स्वाद भी लिया जा सकता है। एक बात और बता दें, चौड़ा रास्ता से कई छोटी-छोटी गलियाँ बीच शहर में गुजरती हैं जहाँ कई तरह का खास स्वाद छिपा पड़ा है। यहीं से आप ‘सौन्ध्या’ का मौनथाल, स्टेट बैंक वाली गली में ‘हींग की कचोरी’ और मिश्रराजाजी के रास्ते में ‘बूस्या’ हलवाई के मिर्च-के-तिपोरे का स्वाद भी चख सकते हैं। मिर्च-टपोरी के लिए जरुरी है कि साथ में मालपुए भी हों तो इसके लिए आपको चांदपोल की सैर करनी पड़ेगी.... पर पहले त्रिपोलिया तो पूरा घूम लिया जाय. यहीं से अब चलते हैं छोटी चौपड जहाँ पहले दिलबहार वाले सरदारजी की शरबत लस्सी का आनंद लिया जायेगा और फिर किशनपोल बाज़ार का रुख होगा। सबसे पहले ‘भगत’ मिष्ठान्न भंडार के लड्डू चख लेना शायद ठीक रहेगा क्योंकि देर करने पर जरुरी नहीं कि यह आपको मिल ही जाये. अग्रिम आदेश बुक रहते हैं यहाँ. खैर, कोई बात नहीं किशनपोल में और भी बहुत कुछ है आपके लिए जैसे आर्ट स्कूल के सामने -खूंटेटा के कई नमकीन आइटम. यहाँ आप कचोरी, समोसे, मिर्च बड़े से लेकर कुछ भी नमकीन चीज खा सकते हैं, स्वाद दिन भर आपके साथ ही सफर करेगा। यूँ मीठे के लिए यहाँ ‘मथुरा पवित्र मिष्ठान भंडार’ भी है जिसके रसगुल्ले बीकानेरी रसगुल्लों को भी मात देते हैं, रोज़ ताज़ा बनते हैं। सर्दियों में दूध –जलेबी का भी आप यहाँ आनंद ले सकते हैं। किशनपोल से अजमेरी गेट होते हुए अब निकल पड़ते हैं एम आई रोड पर. पहले आप “लस्सीवाला” की मलाईदार कुल्हड़ लस्सी पीना चाहेंगें या राजमंदिर वाली गली के नुक्कड़ पर प्याज की कचोरी खाना, यह तो आपको ही तय करना है क्योंकि यहाँ से हम आपको पांचबत्ती होते हुए एक बार फिर वाल सिटी एरिया में ले जाने वाले हैं- बाबा हरिश्चंद्र मार्ग जहाँ ‘संपत’ की छोटे साबुत आलू की कचोरी आपका इंतज़ार कर रही हैं। चांदपोल होते हुए एक बार फिर छोटी चौपड की तरफ बढ़ना शायद ठीक रहेगा क्योंकि महावीर की सौ साल से भी पुरानी रबड़ी तो अब शहर की इस पुरानी दूकान में ही मिलती है। हो सकता है अब आप जयपुर का जायका लेते-लेते या हमारे साथ सफर करते-करते थक गए होंगें तो क्यों ना ऐसे करें कि आपकी डायरी में कुछ ठिकानों के नाम दर्ज करा दिए जाएँ ताकि आप फुरसत में इनका स्वाद ले सकें. पहली बात तो यह कि ऐसा भी नहीं है कि सारी स्वादिष्ट चीजें खाने का ठेका चारदीवारी वालों ने ही ले रखा हो बल्कि ज्यों-ज्यों शहर ने अंगड़ाई भरकर अपनी बाहें पसारी है, जयपुर का स्वाद भी दीवारें फांदकर सब ओर फ़ैल गया है। यहाँ हम आपसे आमेर की बेसन की सेव व मावे की गुजिया अथवा सांगानेर की दालमोठ की बात नहीं कर रहे हैं क्योंकि यह तो जयपुर से भी पुरानी हैं। हाँ तो डायरी में लिख लीजिए मोती डूंगरी पर गणेश मंदिर के चौराहे पर ‘पंडित’ की पावभाजी. वैसे हम आपको पहले ही आगाह कर दें कि यहाँ सभी ठेलों खोमचों पर पंडित ही लिख मिलेगा- ठीक वैसे जैसे आजकल हर गजक वाला साहू गजक बेचता है। दरअसल पंडित की पावभाजी एक ब्रांड बन चुका है। जोधपुर में आविष्कृत मावे की कचोरी के लिए स्टेशन रोड पर ‘रावत’ का नाम लिख लीजिए. सांगानेरी गेट पर बी एम बी पर आप आलू की टिकिया खा सकते हैं। यह आम आदमी के लिए एल एम बी का विकल्प है। कुल मिलाकर अब हम यह कह सकते हैं कि प्रदेश के अन्य शहरों जोधपुर, बीकानेर व कोटा की ही राजधानी जयपुर भी कोई कम चटोकरा शहर नहीं है। तो तैयार हैं न पाचक गोलियों के साथ जयपुर की स्वादिष्ट यात्रा के लिए? (सौजन्य :ओमप्रकाश शर्मा)

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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