जगदीश महतो
जगदीश महतो एक साम्यवादी गुरिल्ला सेनानी थे जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी लिबरल) से जुड़े थे। उनका जन्म बिहार के भोजपुर जिले के एकवारी गाँव में हुआ था, जो राजपूत वंशों के वर्चस्व वाली रियासत थी। महतो कुशवाहा जाति के एक किसान परिवार में पैदा हुए थे।[१]
साम्यवादी आंदोलन में भूमिका
अपने जीवन की शुरुआत से, वे जमींदारों द्वारा किसानों के अधीनता के बहुत मुखर विरोधी थे , और वह "बेगारी प्रणाली" के एक कट्टरपंथी आलोचक थे। यह एक ऐसी प्रणाली थी जिसमें कृषक बिना पैसे के जमींदारों के खेतों पर काम( अवैतनिक श्रमदान ) करते थे । महतो को उनके सहकर्मियों रामेश्वर अहीर और रामनरेश राम की मदद से 'एकवारी' में कम्युनिस्ट आंदोलन को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है। उन्हें लोकप्रिय रूप से मास्टर साहेब कहा जाता था। साँचा:quote उनकी कहानी को विभिन्न हिंदी उपन्यासों में भी चित्रित किया गया है। वे रामेश्वर अहीर के साथ एक पुलिस कार्रवाई में मारे गए थे। लोकप्रिय भोजपुर विद्रोह में उनकी उल्लेखनीय भूमिका के कारण ,कम्युनिस्टों द्वारा उन्हें और रामेश्वर अहीर मार्क्स और एंगेल्स की उपाधि दी गई थी।[२][३]
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ ISSN-2688-9374(online)Journal,साँचा:cite web
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। भोजपुर में छठे दशक में समाजवादी आन्दोलन का जबरदस्त प्रचार प्रसार हुआ. इनका समर्थन वर्ग माध्यम वर्ग की तीन जातियों- अहीर उर्फ़ यादव, कोइरी और कुर्मी के बीच था. ये वही वर्ग था ( भूमिहारों का भी एक बड़ा तबका था, पर वो समाजवादी आन्दोलन के समर्थन में नहीं था) जिसे जमींदारी उन्मूलन से मुख्य तौर पर फायदा पहुंचा था. संख्या बल में भी अधिक थे नतीजा ये हुआ कि 1967 के विधान सभा चुनावों में शाहाबाद जिले में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी 7 सीटें जीतने में कामयाब रही. यादव, कुर्मी और कोइरी जाति के पढ़े लिखे युवक अब ऊँची जातियों के अपमानजनक व्यवहार सहने के लिए तैयार नहीं थे.