छत्तीसगढ़ की मिट्टी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
छत्तीसगड़ के विविद तरह के मिट्टियाँ

चट्टानों के टूटने-फूटने तथा उनमें भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरुप जो तत्व एक अलग रूप ग्रहण करता है, वह अवशेष ही मिट्टी है। छत्तीसगढ़ में मिट्टियों में विविधता पायी जाती है। इसे निम्न भागों में बाटा जा सकता हैः-

लाल और पीली मिट्टी

यह संपूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य में वस्तृत है। इस वर्ग की मट्टियां प्राचीन युग की ग्रेनाइट शिष्ट चट्टानों पर ही विकसीत हुई हैं तथा यह भी माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति गोंडवाना चट्टान से हुई है, जिसमें बाल, पत्थर, शैल इत्यादि पाये जाते हैं। आवश्यक ह्यूमस व नाइट्रोजन की कमी के कारण इसकी उर्वरता कम होती है। प्रदेश में यह मिट्टी महानदी बेसिन के पूर्वी जिलों सरगुजा, बिलासपुर, जांजगीर, रायगढ़, जशपुर, रायपुर, धमतरी, कोरिया, महासमुंद, कांकेर, दंतेवाड़ा व बस्तर में विस्तृत है।

लैटेराइट मिट्टी (भाठा)

यह मिट्टी लाल शैलों से निर्मित होने के कारण इसका रंग लाल ईंट(कत्था रंग) के समान होता है। इस प्रकार की मिट्टी सरगुजा जिले के मैनपाट पठार के दक्षिणी भाग तथा उससे जुड़े बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, दुर्ग में बेमेतरा तथा बस्तर संभाग में जगदलपुर के आस-पास पायी जाती है। इस प्रकार की मिट्टी में ऐलुमिना, सिलिका तथा लोहे के आँक्साइड की अधिकता तथा चूना, पोटाश तथा फॉस्फोरिक एसिड का अभाव होता है।

इसे बंजर भूमि भी कहा जाता है। इस मिट्टी का निर्माण निछालन (litching) विधि से होता है। इस मिट्टी में अम्लीयता की अधिकता होती है अतः यह मिट्टी कृषि के लिए अधिक उपयोगी नहीं है। इसका उपयोग अधिकतर भवन निर्माण कार्य में किया जाता है क्योंकि यह कठोर प्रकृति की होती है , इसका कारण है इसमें उपस्थित एल्यूमीनियम और लौह । इसमें ज्यादातर बागानी फसलों का उत्पादन किया जाता है। इसका pH मान लगभग 5.2 होता है।

काली मिट्टी

काली मिट्टी रायपुर जिले के मध्य क्षेत्र, बिलासपुर व राजनांदगॉव जिले के पश्चिमी भाग, कवर्धा जिले में पायी जाती है। लोहा तथा जीवांश की उपस्थिति के कारण मिट्टी का रंग काला होता है। पानी पड़ने पर यह मिट्टी चिपकती है तथा सूखने पर बड़ी मात्रा में दरारें पड़ती हैं। यह मिट्टी ज्वालामुखी द्वारा निःसृत लावा शैलों के तोड़-फोड़ से बनने के कारण अनेक खनिज तत्व मिलते हैं। इसमें मुख्यतः लोहा, मैग्नीशियम, चूना तथा एल्युमिना खनिजों तथा जीवांशों की पर्याप्तता तथा फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, पोटाश का अभाव होता है।

इस मिट्टी को कन्हार/भर्री/रेगुर मिट्टी भी कहा जाता है। इसका रंग काला या गहरा भूरा होता है,जो इसमें मौजूद फेरिक टाइटेनियम के कारण होता है। इसकी जलधारण क्षमता सर्वाधिक होती है, क्योंकि इसमें चिका की मात्रा 50-55% तक मौजूद होती है। यह क्षारीय प्रकृति की होती है , जिसमें इसका pH मान 7.6 के लगभग होता है। यह सबसे उपजाऊ मिट्टी है । इसमें पानी की कमी होने पर दरारें पड़ जाती हैं। यह आरंग-II श्रृंखला से संबंधित है।

लाल - बलुई मिट्टी

दुर्ग, राजनांदगांव, पश्चिमी रायपुर तथा बस्तर संभाग में इसका विस्तार है। इसके रवे महीन तथा रेतीले होते हैं। इसमें लाल हेमेटाइट और पीले लिमोनाइट या DEVलोहे के आक्साइड के मिश्रण के रूप में होने से लाल, पीला या लालपन लिये हुये रंग होता है। इसमें लोहा, एल्युमिना तथा कार्ट्ज के अंश मिलते हैं।

लाल-दोमट मिट्टी

दक्षिणी-पूर्वी बस्तर जिले में यह मिट्टी पायी जाती है। इसका निर्माण नीस, डायोराइट आदि चीकाप्रधान व अम्लरहित चट्टानों द्वारा होता है। स्थानीय आधार पर यहाँ पायी जाने वाली मिट्टी कन्हार, मटासी, डोरसा, भठा एवं कछार हैं। छत्तीसगढ़ में पायी जाने वाली मिट्टियों में सर्वत्र धान पैदा किया जाता है, क्योंकि यह धान की फसल के लिये आदर्श होती हैं। अतः छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है।