चेक साहित्य
चेक साहित्य से अभिप्राय 'चेक लोगों' द्वारा चेक भाषा' में लिखे गये साहित्य से है।
परिचय
चेकोस्लोवाकिया के प्रथम लिखित साहित्यिक उदाहरण प्राचीन स्लाव भाषा में (9-11वीं शताब्दी में) लिखे गए थे, जिनमें से विशेषकर गीत, लोककथाएँ और पौराणिक गाथाएँ आज तक सुरक्षित हैं। सन् 1125 में सबसे पुरातन ऐतिहासिक कृति "कोस्मस घटनावली" की रचना हुई थी, उसके बाद शांति के अनेक गीत तथा भजन चेक साहित्य के आधर बन गए जिनमें से एक "प्रभु, हम पर दया करें" नामक भजन सबसे प्रसिद्ध है। एक अन्य धार्मिक गीत का नाम है, "संत वात्स्लव भजन"। प्राचीन स्लाव भाषा के अतिरिक्त अनेक लेख लैटिन में भी चेक लेखकों द्वारा लिखे गए थे।
13वीं-4वीं शताब्दियों में चेक भाषा, जो प्राहा नामक प्रदेश की उपभाषा थी, साहित्यिक भाषा के पद पर आसीन हुई और उस समय से वह अविच्छिन्न रूप से साहित्यिक कृतियों में प्रयुक्त होती रही। साथ ही साथ कुछ पुस्तकें लैटिन तथा जर्मन भाषाओं में भी लिखी गईं। उस काल के चके साहित्य में विभिन्न गाथाएँ, महाकाव्य, गद्य, निबंध और विशेषकर यन हुस (धार्मिक और सामाजिक सुधारक) के पवित्र संगीत और धार्मिक उपदेश प्राप्त होते हैं। यन हुस के अनुसार हुसित आंदोलन उत्पन्न हुआ और उसका 15-16वीं शताब्दी में चेक साहित्य पर यथेष्ट प्रभाव पड़ा। चेक पुस्तकों की छपाई का आरंभ सन् 1468 में पहली बार हुआ और इस आविष्कार से चेक और लैटिन पुस्तकों के प्रकाशन में अधिक प्रगति हुई।
17वीं शताब्दी में चेक राजा लोग पराजित हो गए थे (सन् 1620) और इसके फलस्वरूप बलपूर्वक जर्मनीकरण हुआ जो दो शताब्दियों (सन् 1918) तक चेक भाषा को सार्वजनिक जीवन तथा साहित्य से निकालने का प्रयत्न करता रहा। यह सब होते हुए भी चेक भाषा जीवित रही।
उस काल का एक प्रकांड विद्वान् यन अमोस कोमेन्स्की (1592-1670) था जो आधुनिक शिक्षाशास्त्र का संस्थापक है। उसकी अनेक कृतियों में विविध शब्दकोश ओर विश्वविद्यालय विषयक ग्रंथ अंतर्भूत हैं, जैसे "यनुन लिंग्वारुम" अर्थात् भाषाओं का फाटक ओर "ओबिस पिक्तुस" अर्थात् "चित्रों में संसार", "संसार की भूलभुलैया" और "हृदय का आनंदधाम"। इन पुस्तकों के अतिरिक्त कोमेन्स्की के दार्शनिक और सार्ववैज्ञानिक लेख तथा शिक्षाशास्त्र पर लिखे ग्रंथ (ओपेरा दिदवितका ओम्तीया, अम्स्तेदंम, 1657) अनेक भाषाओं में अनूदित होकर प्रकाशित हुए हैं। कोमेन्स्की "राष्ट्रों के शिक्षक" नामक पदवी से विभूषित थे और यूरोपीय शैक्षिक प्रणाली के मार्गदशैक कहलाते हैं।
उन्नीसवीं शती
राष्ट्रीय जीवन का पुनरुद्धार जागरण के फलस्वरूप 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में प्रारंभ हुआ। 19वीं शताब्दी के आरंभ में राष्ट्रीय जाग्रति का एक नया उभार हुआ जिसने चेक भाषा के प्रचार ओर उसके शुद्धीकरण में सहायता पहुँचाई। उस समय के प्रसिद्ध भाषा विज्ञान-वेत्ता योसेफ़ दोब्रोव्स्की (1753-1829) थे जिन्होंने चेक इतिहास, स्लाव भाषाषास्त्र तथा चेक भाषा के अनुसंधान कार्य की नींव डाली। प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में योसेफ यंगमन (1773-1847) का उल्लेख किया जा सकता है। प्रसिद्ध इतिहासकार फ्रांतिशेक पलत्स्की (1798-1873) ने विकसित चेक राष्ट्र का इतिहास लिखा।
19वीं शताब्दी के प्रमुख साहित्यकारों में निम्नलिखित प्रसिद्ध हैं :
करेल हव्लीचेक (1821-1856) पत्रकार, राजनीतिज्ञ और व्यंग्य कवि थे। चेक नाटक साहित्य और अभिनय कला का आरंभ योसेफ कयेतम तिल (1808-1856) से होता है। महान चेक कवि करेल हिनेक माखा (1820-1836) भी इस काल के तरुण रचयिता थे। उनकी विख्यात कृति रोमांटिक कविता "मई" है। माखा अंग्रेजी तथा रूसी पुश्किन आदि कवियों से कला तथा भाषा में पूर्णतया प्रभावित हैं। अन्य कवि करेल यरोमीर एर्बोन (1811-1870) फुटकर लोकगीतों तथा गाथाओं के संग्रहकर्ता थे। इस पीढ़ी के प्रमुख कवि यन नेरुद (1834-1891) थे, जिनकी कविताएँ तथा आलोचनात्मक निबंध आज तक पढ़े जाते हैं और मान्य हैं। विख्यात लेखिका श्रीमती बाजेना नेम्त्सोवा (1820-1862) की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक "दादी" है, जो चेक साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है। इस उपन्यास की केंद्रीय पात्री दादी सभी सद्गुणों की मूर्त रूप है जो बुद्धिमत्ता और देशभक्ति से ओतप्रोत है।
19वीं शती के उत्तरार्ध के प्रतिनिधि लेखक निम्नलिखित हैं : यरोस्लाव व्ररिव्ललत्स्की (1853-1912) के विशाल कृतित्व ने आधुनिक चेक कविता के लिये नवीन मार्ग खोले। उनकी अनेक कविताएँ सार्वभौम मनुष्यता के प्रति सहानुभूति अभिव्यक्त करती हैं। अत्यंत सफल कवि के रूप में व्ररिव्ललत्स्की छंदों में सुधार तथा पूर्णता के लिये प्रयत्नशील रहे। अन्य कवि स्वतोप्लुक चेख (1846-1908) की रचनाएँ प्रबल देशभक्तिपूर्ण भावनाओं और सामाजिक तत्वों से ओतप्रोत हैं। कवि योसेफ वात्स्लाव स्लादेक (1845-1912) की काव्यभाषा को अद्भुत स्वच्छता प्राप्त हुई है। उसकी बाल कविताएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। लेखक और कवि युलिउस जेयेर (1841-1901) ने अपने महाकाव्यों में पुरातन चेक इतिहास और विख्यात घटनाओं का बहुधा उल्लेख किया। उसने अपनी रचनाओं के प्रसगं विशेषतया प्राच्य देशों की सभ्यता से ग्रहण किए हैं। अन्य चेक कवि जो पूर्वी चेतना और भावों से अधिक से अधिक प्रभावित था, ओतकार ब्रेजिना (1867-1929) था। काव्यमय अभिव्यक्ति का धनी यह चेक कवि रहस्यात्मक काव्यों का प्रधान तथा प्राय: एकमात्र कवि है।
उन मुख्य लेखकों में, जिन्होंने राष्ट्रीय इतिहास के प्रसंगों पर अपनी रचनाओं का निर्माण किया, अलोइस पियरासेक (1851-1930) सर्वोपरि हैं। उनके ऐतिहासिक उपन्यास हुसित युग और आंदोलन विषयक हैं (जैसे "संसार हमारे विरुद्ध", "काले युग के दौरान में", आदि)।
बीसवीं शती
20वीं शताब्दी के प्रधान साहित्यकार निम्नलिखित हैं: पेत्र बेज्रुच (1867-1930) जो यथार्थवादी हैं। वे खनिकों और श्रमिकों के कवि थे। अन्य समाजवादी प्रमुख कवि स. कोस्त्का नोइमन (1875-1947) थे जिनके प्रौढ़ काव्यों में कांतिकारी चेतना और शुद्ध भोथ्तकवादी दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से झलकता है। सर्वाधिक प्रतिभावान् समाजवादी कवि, जो अयंत तरुण अवस्था में दिवंगत हो गए, यिरी वोल्केर (1900-1924) थे। योसेफ होरा (1891-1945) चेक छंदों के स्वामी थे। उनका मातृभूमि के प्रति गहरा स्नेह उनकी अनेक सफल कविताओं में मूर्त हुआ है। कवि करेल तोमन (1891-1946) ने अद्भुत स्वच्छता तथा कोमल अभिव्यक्ति में वास्तविक नैपुण्य प्राप्त किया था। सन् 1958 में स्वर्गवास होनेवाले विख्यात कवि वीतेस्लोनज्वल आधुनिक चेक कवियों में प्रमुख थे। उनकी उत्तर युद्धकालीन कविता की पराकाष्ठा "शांतिगान" है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय शांति की शक्ति में उन्होंने अपना अटूट विश्वास अभिव्यक्त किया है।
प्रधान जीवन कवियों में निस्संदेह योसेफ सैफेर्त और फ्रंतिशेके ह्रूबीन सामयिक चेक साहित्य के प्रतिनिधि कवि हैं।
प्रथम चेक लेखक, जिन्होंने पहला समाजवादी उपन्यास लिखा है, आइवन ओल्ब्रख्त (1882-1952) थे। उपन्यास का नाम "श्रमजीवी स्त्री अन्ना" है। समाजवादी यथार्थवाद की लेखिकाएँ मारिए पुयेमनोवा (1893-1958) और मारिए मयेरोवा (जन्म 1882) हैं।
चेक साहित्य के यशस्वी व्यंग्यलेखक यरोस्लाव इशक (1883-1923) हास्यपूर्ण चेक कहानियों ओर विशेषकर संसार भर में विख्यात हास्य उपन्यास "भला सैनिक श्वैक" के प्रणीता हैं।
20वीं शताब्दी के दो प्रमुख और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यासकार एवं कहानीकार हैं : व्लदिस्लाव बंचुरा (1891-1942), जिसके उपन्यास "रोठीवाला यह महोल", "मकैता लजारोवा" काव्य-गुण-संपन्न भाषा में लिखे गए हैं। वंचुरा अद्भुत कहानी सुनाने की कला के लिये प्रख्यात हैं। उनकी असमाप्त कृति "चेक राष्ट्र के इतिहास के चित्र" में भाषा उच्चस्तरीय काव्यगुणों से संपन्न है।
चेक लेखकों में सबसे अधिक गौरवपूर्ण स्थान करेल चपेक (1890-1938) को प्राप्त है। उनकी यात्रा विषयक और विभिन्न प्रकार के निबंध हमें सहज में परम कलात्मक रूप से इस बात का प्रमाण देते हैं, कि उनके प्रणीता की प्रतिभा और जनजीवन के प्रति कुशल निरीक्षणशक्ति अद्भुत, अनोखी और अत्यंत आकर्षक है। चपेक का मनुष्यतापूर्ण दृष्टिकोण, विशेषकर रूर (ङद्वद्ध) और "क्रकतित" नामक पुस्तकों में विद्यमान है। उनका "माँ" नामक नाटक प्राय: समस्त भाषाओं में (बँगला और मराठी में भी) अनूदित हो चुका है। चपेक की रचनाओं के अनेक भाषाओं में अनुवाद इस बात के प्रमाण हैं कि लेखक का मानवता में विश्वास वास्तविक, गंभीर और प्रबल है तथा वह संसार के सभी राष्ट्रों एंव जातियों को अधिक वांछनीय तथा जीवनदायक मालूम हुआ है।
बाहरी कड़ियाँ
- [१] -An overview, in English, of the history of Czech literature since its inception to the present day. (January 2009)
- [२] Resources in English on Czech Literature, Cinema and Politics
- Czech and Slovak Literature Resources at Oxford – many of the links are to Czech pages, most descriptions in English. Contains also a historic overview
- Czech Literature since the 1980s – lecture
- Brief history with a few capsule portraits
- Overview from Encyclopædia Britannica
- Potápěč – Czech and Slovak Literature Resources – Czech Literature Resources. In Czech.
- Lecture about changes after the fall of communism
- Article about current state of Czech culture and Western mis-perceptions of it, with readers' polemic
- Columbia Encyclopedia - very brief history
- Catholic Encyclopedia - brief early history till 1800
- The history of Czech literature
- Czech Literature Now – English translations of contemporary (c. 1995) Czech writers.
- The Cafe Irreal: Czech authors – translations of contemporary, non-realist Czech literature