चार्टर आन्दोलन

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(चार्टिस्ट आंदोलन से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
चार्टवादी दंगे

ब्रिटेन में सन् 1838 और 1848 के बीच राजनीतिक सुधारों के लिये श्रमिक वर्ग द्वारा किये गये आन्दोलन चार्टर आन्दोलन (Chartism) कहलाते हैं। यह नाम सन् १८३८ में निर्मित 'पीपल्स चार्टर' से आया है। यह आन्दोलन विश्व के श्रमिक वर्ग का पहला विशाल आन्दोलन था। 'चार्टिज्म' नाम बहुत से स्थानीय समूहों का सामूहिक नाम था जिन्होने १८३७ से विभिन्न शहरों में अपने विरोध की आवाज बुलन्द की।

परिचय

सन् 1814 में फ्रांस में नेपोलियन की पराजय के बाद इंग्लैंड की कठोर और उग्र नीति के कारण देश के निर्धन और उपेक्षित कारीगरों, मजदूरों और किसानों को अनेक वर्षों तक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। रोजगार की कमी, अल्प वेतन और आज के उँचे भावों ने दिन दिन उनके कष्टों में वृद्धि की। निर्धन सहायता कोश से भी उन्हें पर्याप्त सहायता नहीं मिलती थी। 1830 में लंकाशायर और यार्कशायर की मिलों में 12 घंटों तक निरंतर काम करने के बाद एक मजदूर को केवल चार शिलिंग प्रति दिन मिलता था। कहीं कहीं निर्धनता-सहयता-कोश से प्राप्त धन सहित उसकी साप्ताहिक आय 3 शिलिंग 1 पेंस थी। 4 पौंड की एक रोटी 1 शिलिंग में मिलती थी। लगभग ऐसी ही स्थिति अन्य स्थानों में भी थी भोजन की समस्या ही कठिन थी, अन्य सुविधाओं की बात यह वर्ग सोच ही नहीं सकता था। अपनी स्थिति से यह इतना असंतुष्ट था। कि उस वर्ष उसे कई स्थानों पर श्रीमंतों के घास के गट्ठरों में आग लगाकर और कहीं मिलों से मशीनों की तोड़ फोड़ कर अपना रोष व्यक्त किया था। राजनीतिक अधिकारों में इस वर्ग का कोई स्थान न था और न उसकी कहीं सुनवाई थी1 यद्यपि 1793 में 'फ्रेंडस ऑव दि पीपुल', 1816 में 'बर्मिघम पोलिटिकल यूनियन' और 1819 में 'मैचेस्टर ब्लैंकेटिअस' संस्थाएँ इस वर्ग की स्थिति को सुधारने के लिये संगठित हुई और उन्होंने इस दिशा में कार्य भी किया, किंतु उन्हें अपने प्रयत्नों में सफलता नहीं मिली। 1832 में पार्लमेंट के सुधार कानून से उन्हें कुछ आशा हुई थी, किंतु पार्लमेंट ने जो सुधार कानून बनाए, उनमें इस वर्ग के उद्धार की कोई व्यवस्था न थी। व्यापार यूनियनों के संगठन द्वारा उनकी स्थिति को सुधारने का राबर्ट ओवेन का प्रयास भी असफल रहा था। ऐसी स्थिति में उनके हितचिंतकों का यह विचार प्रबल होता गया कि पार्लमेंट की सदस्यता और सदस्यों के निर्वाचन का अधिकार पाए बिना उनकी मुक्ति संभव नहीं है। अधिक कार्य करने के उद्देश्य से 1836 में 'लंदन वकिंग मेंस ऐसोसिएशन' की स्थापना हुई। दो वर्षों में ही इसके समर्थकां की संख्या बढ़ गई।

इस संस्था को दो उत्साही कार्यकर्ताओं- लोवेट और फ्रांसिस प्लेस- ने 1838 में संस्था की ओर से प्रजाधिकारपत्र (पीपुल्स चार्टर) प्रकाशित किया। इस अधिकारपत्र में वयस्क मताधिकार, गुप्त मतदान, पार्लमेंट का वार्षिक निर्वाचन, सदस्यों के वेतन, संपत्ति पर आधारित मतदान योग्यता की समाप्ति और समान निर्वाचनमंडल, इन छ: बातों की माँग थी। सरकार से इन माँगों को मनवाने के लिये इंग्लैंड में जबर्दस्त आंदोलन हुआ। यह आंदोलन चार्टरवाद आंदोलन (चार्टिज्म) के नाम से प्रसिद्ध है। सार्वजनिक सभाओं, व्याख्यानों प्रचार समितियों, प्रकाशनों, समाचारपत्रों, जलूसों आदि सभी का इस कार्य में उपयोग किया गया। समग्र देश से माँगों के समर्थन में हस्ताक्षरों का संग्रह किया गया। 1839 के आरंभ में पार्लमेंट भवन के समीप वेस्टमिंस्टर प्रासाद के भूमि में अधिकारपत्र के समर्थकों का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ और 14 जून का 12,25,000 व्यक्तियों के हस्ताक्षरों सहित अधिकारपत्र पार्लमेंट की स्वीकृति के लिये भेज दिया गया। पार्लमेंट के अभिजातवर्गीय और श्रीसंपन्न सदस्य अपनी जड़ काटनेवाली अधिकारपत्र की इन उग्र माँगों को स्वीकार नहीं कर सकते थे। पार्लमेंट ने प्रजा का आवेदन अस्वीकृत कर दिया। सरकार के निर्णय के विरोध में सभाओं, हड़तालों, तोड़ फोड़ और दंगों के रूप में बकिंघम, शेफील्ड और न्यूकासिल आदि कई स्थानों पर उपद्रव हुए। सरकार ने उपद्रवों के दमन में कठोरता बरती। आजीवन कारावास, निर्वासन और प्राणहरण के दंड दिए गए।

माँगों की पूर्ति के साधनों के उपयोग के संबंध में आंदोलनकारियों में दो दल हो गए। लोवेट और दक्षिणी प्रांतों के उसके समर्थक सांवैधानिक और शांतिमय उपायों के पक्ष में थे। किंतु आयलैंड के ओकोनर और उत्तरी प्रांतों के उनके अनुनायी उग्र और हिंसात्मक उपायों को भी काम में लाना चाहते थे। तोड़ फोड़ के कार्यों में इनका पूरा सहयोग था। सरकार की सतर्कता और तैयारी के कारण इनके प्रयत्न असफल रहे। आंदोलन पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुआ। 1842 में एक दूसरा आवेदन पार्लमेंट में भेजा गया पर उसकी भी पहले आवेदन जैसी गति हुई। इस वर्ष के बाद यह आंदोलन शिथिल हो गया। अधिकांश व्यक्तियों का ध्यान 1815 के प्रजापीड़क अनाज कानून को रद्द कराने और सस्ते अनाज की प्राप्ति के प्रयत्नों में लग गया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये 1838 में ही 'ऐंटी कार्न ला लीग' की स्थापना हो चुकी थी। चार पाँच वर्षों से लीग ने अपने कार्य में काफी प्रगति कर ली थी। मध्यम वर्ग इस आंदोलन का समर्थक था। सरकार की उग्र नीति और हिंसात्मक कार्यों के विषम परिणाम के कारण बहुत से मजदूर भी इसके समर्थक हो गए। पार्लमेंट में आज कानून को रद्द कराने के प्रस्ताव लाए गए। 1845 में आयरलैंड में आलू के अकाल और मजदूर वर्ग की दयनीय स्थिति ने अनाज के संबंध में संरक्षणनीति के कुछ समर्थकों को भी मतपरिवर्तन करने के लिय बाध्य किया। 1846 में पार्लमेंट ने अनाज कानून रद्द कर दिया। बाहर से अनाज के आने की सुविघा से मजदूरों और किसानों की भी स्थिति में कुछ सुधार हुआ। पर मताधिकार से वे अभी भी वंचित थे। ओकोनर और उसके समर्थक समय समय पर अधिकारपत्र की माँगों की चर्चा करते रहते थे। इस बीच ओकोनर पार्लमेंट का सदस्य भी निर्वाचित हो चुका था। जब 1848 में यूरोप के कुछ देशों में क्रांतियाँ हुई, उन्होंने नया आवेदन भेजने के लिये फिर हस्ताक्षर संग्रह कराए। सरकार की सतर्कता के कारण कैनिंगटन कामन में आयोजित विशाल सभा न हो सकी और लंदन में पार्लमेंट के समक्ष प्रदर्शन करने का विशाल समूह का अभियान भी कार्यान्वित न हो सका। पर 20 लाख से अधिक हस्ताक्षरों का आवेदन इस बार भी पार्लमेंट को भेजा गया। आवेदन को छीनबीन से मालूम हुआ कि उसमें बहुत से जाली हस्ताक्षर थे। राज्य को अधिपति रानी विक्टोरिया और उसके पति तथा आंदोलन के प्रबल विरोधी वेलिंग्टन के ड्यूक के आवेदन में हस्ताक्षर थे। पार्लमेंट ने आवेदन को कोई महत्व न दिया और इस बार की असफलता के बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया। पर चार्टरवादियों की माँगों के सिद्धांत सारहीन न थे। पार्लमेंट के वार्षिक निर्वाचन के अतिरिक्त सभी माँगे भविष्य में मान ली गई। उस समय की परिस्थिति में इन माँगों की स्वीकृति संभव न थी।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

लेख