राजलेख

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अंग्रेजी शब्द "चार्टर" (Charter), लैटिन "चार्टा" (Charta) से निकला है, जिसका अर्थ होता है 'कागज या उसपर लिखी कोई चीज'। राजलेख (Charta) का यह आधुनिक रूप हुआ। पर जब कागज का आविष्कार नहीं हुआ था, उस समय भी राजलेख निकलते थे। भोजपत्र, तालपत्र, ताम्रपत्र, रेशमी वस्त्र (Scroll) आदि कागज के ही भिन्न भिन्न रूप थे। सम्राटों के शिलालेख (Edicts) तो राजलेख के विशिष्ट उदाहरण हैं। सम्राट अशोक के शिलालेख अब भी वर्तमान हैं।

परिचय

राजलेख के दो क्षेत्र हैं - एक निजी, दूसरा सार्वजनिक। निजी क्षेत्र अर्थात् प्राइवेट लॉ में इसका पर्याय दस्तावेज (Deed) है एवं किसी भी औपचारिक लेख (Formal writing) के प्रसंग में इसका व्यवहार किया जा सकता है। प्राइवेट लॉ में इसका सबसे अधिक उपयोग भूमि के क्रय विक्रय में किया जाता है। विक्रता खरीददार को जो दस्तावेज लिखता है, उससे खरीदार को हक (Title) मिलता है एवं राजा या राज्य का कोई अधिकारी दस्तावेज पर अपना हस्ताक्षर का एवं सरकारी मुहर लगाकर इसे मान्यता देता है। यह राजलेख का ही दृष्टांत है, यद्यपि भारत या इंग्लैंड में इसका प्रयोग लिखित दस्तावेज के प्रसंग में अब प्रचलित नहीं है। किंतु फ्रांस में इसका प्रयोग अब भी किया जाता है।

सार्वजनिक क्षेत्र में अर्थात् पब्लिक लॉ में राजलेख वह आदेश है, जिसके द्वारा राजा अपनी प्रजा के अधिकार की रक्षा की घोषणा करता है या कोई सार्वभौम राज्य अपने उपनिवेश को अधिकार प्रदान करता है। राजलेख का प्रयोग बैंक या अन्यान्य कंपनी के प्रसंग में भी होता है। इस अर्थ में राजलेख वह दस्तावेज है, जिसके द्वारा राज्य चुने हुए लोगों की एक जमायत को किसी खास लक्ष्य के लिए अधिकार वा विशेषाधिकार प्रदान करता है।

13वीं सदी के आरंभ में इंग्लैंड के राजा जॉन ने अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहा। उसके सामंतों ने अपने अधिकारों का अपहरण होते देख उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। निदान जॉन को एक विशिष्ट लिखित घोषणा के द्वारा उनके अधिकार की रक्षा का वचन देना पड़ा। यह घोषणापत्र मैगनाकार्टा (यानी विशिष्ट दस्तावेज) के नाम से प्रसिद्ध है। इसके बाद इस शब्द का प्रयोग वैधानिक विशेषाधिकार (Privileges) के लिए होने लगा। वर्तमान युग में राजलेख का प्रयोग राज्य द्वारा प्रदत्त विधान के प्रसंग में किया जाता है।

मध्य युग में राजा के अतिरिक्त उसके अनुचर सामंत लोग भी व्यक्ति विशेष को विशेषाधिकार देते थे। गिर्जा के मंहत भी ऐसा करते थे। नगरपालिका एवं गिल्ड आदि सार्वजनिक संस्थाओं ने भी अपने "नगर की स्वतन्त्रता" मान्य नेताओं को उनकी सार्वजनिक सेवाओं के लिए प्रदान करने का प्रचलन किया। वर्तमान समय में यह परंपरा प्राय: समाप्त हो चुकी है; तथापि इंग्लैंड में इस रूप में राज्य अब भी सार्वजनिक संस्थाओं का सनद प्रदान करता है।

वर्तमान युग में राजलेख का एक प्रमुख दृष्टांत राजपत्रित कंपनी (Chartered Company) है। ऐसी कंपनी को निगम कह सकते हैं। इसके अपने सामान्य अधिकार एवं विशेषाधिकार होते हैं। राज्य के सर्वोच्च प्राधिकार द्वारा प्रदत्त विशेष राजलेख में वर्णित कतिपय शर्तों से ऐसी कंपनी के अधिकार के अधिकार, विशेषाधिका, भिन्न भिन्न शर्तें एवं क्षेत्र जिसमें कंपनी इनका उपयोग कर सकती हैं या निर्धारित नियमों के पालन करने को बाध्य है, वर्णित रहते हैं। इस प्रकार की कंपनी का ऐतिहासिक उद्गम राजाश्रित होने के कारण प्राप्त होनेवाले लाभों से संबद्ध है। बड़ी कंपनी स्थापित करने के लिए पर्याप्त रकम की आवश्यकता होती है। कोई व्यक्ति स्वयं उतनी अधिक रकम नहीं लगा सकता। अत: उसे इसके लिए अन्यान्य लोगों के पास जाना पड़ता है। बहुधा उसे साधारण जनता से कर्ज लेना पड़ता है। कंपनी यदि राजनुमोदित होती है तो इसके प्रति लोगों का स्वत: विश्वास हो जाता है और उसे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने में कठिनाई नहीं होती। वर्तमान युग में इस प्रकार की कंपनी राजसंपोषित रूप में देखी जाती है। किसी कंपनी में सरकार साझेदार होती है, तो किसी को ऋण देती है।

भाटक (Charterparty) तथा राजलेख (Charter)

भाटक एवं राजलेख सर्वथा एक दूसरे से भिन्न हैं। भाटक एक विशेष प्रकार की संविदा है, जिसके द्वारा समुद्रमार्ग से एक निश्चित अवधि में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जहाज द्वारा माल ढोने के लिए दो या अधिक पक्ष परस्पर सहमत होते हैं। जहाज का पूरा भाड़ा या तो यात्रा आरंभ होने के पहले एक मुश्त दे दिया जाता है अथवा संविदा की शर्तों के अनुसार यात्रा के दौरान यात्रा के भिन्न भिन्न चरणों की समाप्ति पर दिया जाता है। अवैध व्यापार भाटक की परिधि से बाहर है। कानून की प्रकल्पना है कि माल ढोने के निमित्त प्रस्तुत जहाज समुद्रयात्रा के लिए उपयुक्त हो, भले ही यात्रा आरंभ होने के पश्चात् इसमें अक्षमता क्यों न आ जाए। यदि यात्रा के कई चरण हों तो प्रत्येक यात्रा के आरंभ में जहाज का उपयुक्त होना आवश्यक है। यदि किसी अप्रत्याशित घटना, यथा युद्ध, के कारण भाटक का क्रियान्वयन न हो सके तो न्यायालय प्रसंगाधीन संविदा की समाप्ति घोषित करेगा। यदि किसी अवैध उद्देश्य से भाटक का आयोजन किया गया हो तो उक्त संविदा का आरंभ से ही कोई अस्तित्व नहीं माना जाएगा। राजलेख प्राप्त कर ही व्यापारी मध्ययुग में बहुधा समुद्रमार्ग से माल ले जाते थे। संभवत: इसी कारण "भाटक" एवं "राजलेख" में निकट संबंध है।

सन्दर्भ ग्रन्थ

  • एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, भाग 1 (1959);
  • कैरेज ऑव गुड्स बाइ सी : टी. जी. कारमर (1925),
  • चार्टर पार्टीज़ ऐंड बिल्स ऑव लोडिंग : टी. ई. स्क्रटन (1925)