चाकमय कल्प

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चाकमय कल्प का कल्पित दृष्य
ट्राइसेराटोप्स, चाकमय कल्प का एक बहुत पहचाने जाने वाला डायनासौर वंश है
चाकमय कल्प के अंत में एक क्षुद्रग्रह ने पृथ्वी पर प्रहार करा जिस से क्रीटेशस-पैलियोजीन विलुप्ति घटना हुई (काल्पनिक चित्रण)

चाकमय कल्प या खटी कल्प या क्रिटेशस कल्प (Cretaceous Period) पृथ्वी के मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic) का एक कल्प है। यह लगभग 14.5 करोड़ वर्ष पूर्व शुरू हुआ था और लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व तक रहा। इस से पहले जुरैसिक कल्प (Jurassic) चल रहा था और इसके अंत के साथ-साथ मध्यजीवी महाकल्प का भी अंत हुआ और नूतनजीवी महाकल्प (Cenozoic) के पहले कल्प, पेलियोजीन कल्प (Paleogene), का आरम्भ हुआ। पेलोयोजीन कल्प और चाकमय कल्प की समय-सीमा पर क्रीटेशस-पैलियोजीन विलुप्ति घटना हुई जिसमें डायनासौर समेत पृथ्वी की बहुत-सी जीव जातियाँ मारी गई और स्तनधारियों को उभरने का अवसर मिला।[१]

परिचय

भूवैज्ञानिक समय-मान के अनुसार पृथ्वी का मध्यजीवी महाकल्प तीन भागों में विभाजित है जिसमें चाकमय कल्प सबसे नवीन है। इस युग का नामकरण लैटिन शब्द क्रिटा के मूल से होमेलियमस डी हैलवा ने 1822 ई. में किया था। क्रिटा का अर्थ है - 'खड़िया', जो इस युग की शिलाओं में बहुतायत से मिलती है। चाकमय का प्रारंभ महासरट युग (Jurassic Period) के पश्चात्‌ होता है। इन दोनों युगों के मध्य किसी प्रकार की असमरूपता नहीं है, जिससे विदित होता है कि इस युग के पहले पृथ्वी की भौमिक दशा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। इसके विपरीत इस युग के अपराह्नकाल में अनेकों भौमिक उत्क्षेप, आग्नेय उद्गार आदि ऐसी परिवृत्तियाँ हुई जिनसे भूपटल पर पर्याप्त असर पड़ा। यही कारण है कि चाकमय कल्प के निक्षेपों के समान विभिन्नता अन्य किसी युग में नहीं पाई जाती।

चाकमय कल्प के संस्तर (beds) संसार में कई स्थानों पर मिलते हैं जिनमें यूरोप, उत्तरी अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, भारतवर्ष, उत्तरी चीन और अमरीका मुख्य हैं। इन संस्तरों में खड़िया मिट्टी, चूना पत्थर, बालू का पत्थर (sand stones) और कॉं‌ग लोमरेट (conglomerate) विशेष हैं।

चाकमय कल्प के जीवाश्मों में शृंगाश्नगण (ऐमोनाम्‌इड्स Ammonoids), शलयाश्न प्रजाति (बेलेम्नाइट्स Belemnites), पादछिद्रगति (फोरामिनिऐरा forminiera) और प्रवालों (Corals) का विशेष महत्व है, यद्यपि बाहुपाद (ब्रैक्रियोपॉडस Brachiopods), फलकक्लोम (लैमेलिब्रैंक्स Lamellibranchs), शल्यकंदुक वर्ग (एकिनॉयड्स Echinoids) और स्पंज भी बहुतायत से मिलते हैं। मेरु दंडधारी जीवों में रेंगनेवाले वग (उरग, Reptilia) के जीवों का अत्यधिक बाहुल्य इस युग में था। यहाँ तक कि जल, थल और आकाश तीनों स्थानों में इन जीवों का आधिपत्य था। स्तनपायी जीवों (Mammalia) का विकास अभी धीरे धीरे हो रहा था और वे कम संख्या में तथा छोटे होते थे। पौधों में कंगुताल (साइकेड्स Cycads), शंकुधर (कोनिफर्स Conifers) और पर्णांग (फर्न fern) अधिक थे।

इंग्लैंड और जर्मनी में पाए जानेवाले चाकमय कल्प के शैलों का वर्गीकरण दो मुख्य भागों में हुआ है, जिनमें नीचे महाद्वीपीय और ऊपर भूद्रोणी निक्षेप हैं। फ्रांस और स्विट्जरलैंड में इस प्रकार का वर्गीकरण संभव न होने से वहाँ चाकमय शैल समूह पाँच भागों में बँटे हैं। भारतवर्ष में मिलनेवाले इस युग के शैल तीन प्रकार के हैं। विभिन्न स्थानों के चाकमय संस्तरों का संक्षिप्त विवरण और सह-तुल्यांक विन्यास (correlation) दिया गया हैं।

चाकमय कल्प और भारत

भारतवर्ष में इस युग का प्रादुर्भाव महासरट युग के स्पिटी शेल्स (Spiti shales) के उपरांत हुआ था। उत्पत्ति के आधार पर इस संस्थान के शैलसमूहों का विभाजन पाँच प्रकार का है: पहला वर्ग उन भूद्रोणी निक्षेपों का है जो हिमालय के स्पिटी प्रदेश से लेकर कुमायू, गढ़वाल और नेपाल तक फैले हैं। कश्मीर के चाकमय कल्प के संस्तर भी इसी वर्ग में आते हैं। दूसरा, महाद्वीपीय निक्षेप जो साल्ट रेंज, सिंध और बलूचिस्तान में मिलता है। तीसरा समुद्री उत्थान (Marine Transgression) से बने संस्तर, जो नर्मदा नदी की घाटी में ग्वालियर से बाघ तक और भारत के पूर्वी किनारों पर, मुख्यत: त्रिचनापल्ली में मिलते हैं। चौथा वर्ग अक्षारीय जलजों का है, जो मध्य प्रदेश और जबलपुर में लैमेटा शैलसमूह के नाम से विख्यात हैं। पाँचवें वर्ग में वे आग्नेय शिलाएँ आती है जो दक्षिण सोपानाश्म (Deccan Trap) के अंतर्गत हैं और बंबई, हैदराबाद, मध्यप्रदेश और गुजरात से लेकर बिहार तक फैली हैं। भारत के भूद्रोणी निक्षेप दो भागों में बँटे हैं: नीचे पाए जानेवाले बलुआ पत्थर, जो जिउमल शैलसमूल (Giumal series) कहलाते हैं और उनके ऊपर मिलनेवाले शैल, जिन्हें चिक्कम समूह कहते हैं।

भारत के चाकमय कल्प के निक्षेपों में बाघ और त्रिचनापल्ली में स्थित निक्षेपों का बहुत महत्व है, क्योंकि इनसे न केवल इस युग के अपर्ह्रा में हुए भौमिक उत्क्षेपों का पता लगता है अपितु उस समय के जीवधारियों का भी ज्ञान होता है। त्रिचनापल्ली की चाकमय कल्प की शिलाओं में अत्यधिक संख्या में विभिन्न प्रकार के जीवाश्म पाए जाते हैं, यहाँ तक कि इसी आधार पर इस प्रदेश को भूगर्भवेताओं ने पुराजैविकीय संग्रहालय कहा है। आर्थिक दृष्टिकोण से चाकमय संस्थान का भारत में महत्व उसमें पाए जानेवाले चूना पत्थर, जिप्सम, चीनी मिट्टी आदि से है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. Robert W. Meredith, Jan E. Janecka, John Gatesy, Oliver A. Ryder, Colleen A. Fisher, Emma C. Teeling, Alisha Goodbla, Eduardo Eizirik, Taiz L. L. Simão, Tanja Stadler, Daniel L. Rabosky, Rodney L. Honeycutt, John J. Flynn, Colleen M. Ingram, Cynthia Steiner, Tiffani L. Williams, Terence J. Robinson, Angela Burk-Herrick, Michael Westerman, Nadia A. Ayoub, Mark S. Springer, William J. Murphy. 2011. Impacts of the Cretaceous Terrestrial Revolution and KPg extinction on mammal diversification. Science 334:521-524.