बाड़मेर

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बाड़मेर
—  city  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश साँचा:flag
राज्य राजस्थान
ज़िला बाड़मेर
जनसंख्या
घनत्व
२६,०४,४५३ (साँचा:as of)
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लिंगानुपात 900 /
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)

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साँचा:coord बाड़मेर राजस्थान राज्य के तीसरा सबसे बड़े ज़िले, बाड़मेर ज़िले, का मुख्यालय है। यह क्षेत्र देश के सबसे बड़े तेल और कोयला उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। इसे भारत का dubai कहा जाता है। इस शहर की स्थापना बहाड़ राव ने 1552 शताब्दी में की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम बाड़मेर पड़ा यानि बार का पहाड़ी किला। एक समय ‘मालाणी' के नाम से जाना जाने वाला बाड़मेर अपनी जीवंतता के कारण सैलानियों को बहुत भाता है। बाड़मेर की यात्रा की एक विशेषता यह भी है कि यह हमें राजस्थान के ग्रामीण जीवन से रूबरू कराता है। यात्रा के दौरान रास्ते में पड़ने वाले गांव, पारंपरिक पोशाकें पहने लोग और रेत पर पड़ती सुनहरी धूप, बाड़मेर की यह मनोरम छवि आंखों में बस जाती है। मार्च के महीने में पूरा बाड़मेर रंगों से भर जाता है क्योंकि वह वक्त ‘बाड़मेर महोत्सव’का होता है। यह समय यहां आने का सबसे सही समय है। बाड़मेर के लोग बहुत मेहनती होते हैं | बाड़मेर में 18 तहसीले हैं, नोखड़ा, गुड़ामालानी, धोरीमन्ना, चौहटन, सेड़वा, बाड़मेर आदि।

मुख्य आकर्षण

बाटाड़ू का कुआँ

संंगमरमर से निर्मित यह कुआँ बायतू तहसील के बाटाड़ू कस्बे में बना हुआ है। कलात्मकता व धार्मिक आस्था का केंद्र यह कुआं ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जाता है। राजस्थान के इतिहास में इस कुएं को जलमहल के नाम से जाना जाता है। रियासतकालीन यह कुआं जो बीते कई दशकों से बाटाड़ू एवं आस-पास के गांवों के लिए पीने के पानी का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत रहा है,हालांकि अभी वहां पर केयर्न कंपनी द्वारा पानी को 'RO filtered' करके 'Water ATM' के जरिए भी उपलब्ध करवाया जा रहा है। लेकिन फिर भी इस कुऐं का महत्व कम नहीं हुआ है,आजकल के युवा इसका महत्व जानकर इस ऐतिहासिक स्थल पर 'सेल्फ़ी क्लिक' करते अमूमन नज़र आ जाते हैंं।

इसलिए ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है यह कुआं

बाटाडू मुख्यालय पर स्थित यह कुआं 60 फीट लंबा, 35 फीट चौड़ा, 6 फीट ऊंचा व 80 फीट गहरा है। कुएं की उत्तर दिशा में एक बड़ा कुंड बना है, जिसकी गहराई 5 फीट है। इस कुंड के बीच में एक मकराना निर्मित पत्थर के स्टैंड के ऊपर बड़े आकार में संगमरमर की गरुड़ प्रतिमा बनी हुई है,जिस पर भगवान विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ विराजित है। जो कुएं का मुख्य आकर्षक है। इस कुएं पर जाने के लिए एक मुख्य द्वार तथा एक निकासी द्वार है। इस दोनों द्वार पर दो सिंह प्रतिमाएं लगी हुई है। इसके चारों ओर श्लोकों के साथ ही कई राजा-महाराजाओं और देवी-देवताओं की कला का वर्णन किया गया है। इसके साथ ही यहां पर संस्कृत में उत्कीर्ण श्लोकों में गाय की महिमा का वर्णन किया हुआ है।

सिणधरी रावल ने करवाया था निर्माण

सन् 1947 के काल में मारवाड़ क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा। उस दौरान यहां के लोग रोजी रोटी की तलाश में बाहर जाने के लिए मजबूर हुए और दूर-दूर तक कहीं पीने का पानी उपलब्ध नहीं था। ऐसी स्थिति को देखते हुए सिणधरी रावल गुलाबसिंह ने इस कुएं का निर्माण करवाया था।एक समय में जसोल मालाणी का प्रमुख क्षेत्र था। रावल मल्लीनाथ के नाम पर परगने का नाम मालाणी पड़ा, इस प्राचीन गांव का नाम राठौड़ उपवंश के वंशजों के नाम पर पड़ा। यहां पर माता राणी भटियाणी का मंदिर जसोल का मुख्य आकर्षण हैं। यहां एक चमत्कारिक देवी माता रानी भटीयाणी का मन्दिर है। देश भर से इस मंदिर और जसोल हर साल लाखों लोग पहुँचते है।

खेड़

राठौड़ वंश के संस्थापक राव सिहा और उनके पुत्र ने खेड़ को गुहिल राजपूतों से जीता और यहां राठौड़ों का गढ़ बनाया। रणछोड़जी का विष्णु मंदिर यहां का प्रमुख आकर्षण है। मंदिर के चारों और दीवार बनी है और द्वार पर गुरुड़ की प्रतिमा लगी है जिसे देख कर लगता है मानो वे मंदिर की रक्षा कर रहे हों। पास ही ब्रह्मा, भैरव, महादेव और जैन मंदिर भी हैं। जो सैलानियो क मुख्य आकर्स्न का केन्द्र है। गुहिल राजपूत यहाँ से भावनगर चले गये और १९४७ तक शासन किया।


ब्रह्मधाम आसोतरा

बालोतरा उपखण्ड मुख्यालय से 12 किमी दूर जालोर रोड़ पर एक आसोतरा गांव है। यह वही गाँव है जहाँ विश्व का दूसरा ब्रह्मा मन्दिर है। जिनका निर्माण ब्रह्मऋषि संत खेतारामजी महाराज ने करवाया था। पहला मन्दिर जो पुष्कर (अजमेर),राजस्थान में स्थित है। इस मंदिर के साथ साथ संत शिरोमणि खेतेश्वर महाराज के खेतेश्वर जी की समाधि और ब्रम्ह सरोवर विख्यात है। इस मंदिर की मूर्ति 1984 में स्थापित की गई।

मल्लीनाथ मेला

तिलवाड़ा में आयोजित होने वाला पशुमेला राज्य का तीसरा बड़ा मेला है। पुष्कर, नागौर के बाद यह राजस्थान का तीसरा बड़ा पशु मेला है जहाँ आने वाले पशुओं की तादात लाखो में होती है।राठौड़ राजवंश के रावल रावल मल्लीनाथ के नाम पर मल्लीनाथ मेला राजस्थान के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक है। यह बाड़मेर जिले के तिलवाडा गांव में चैत्र बुदी एकादशी से चैत्र सुदी एकादशी (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है। इस मेले में उच्च प्रजाति के गाय, ऊंटों, बकरी और घोडों की बिक्री के लिए लाया जाता है। इस मेले में भाग लेने के लिए सिर्फ गुजरात से ही नहीं बल्कि गुजरात और मध्य प्रदेश से भी लोग आते हैं। इस मेले का विशेष तौर पर पशु व्यापारी प्रतिक्षा करते हैं। मलिनाथ का जन्म माता रानिदे के घर पर 1358 को हुआ था बाड़मेर का परगने का नाम मालानी इन्हीं के नाम पर रखा गया तिलवाड़ा के पास में ही मालाजाल के पास में मलीनाथ की पत्नी रूपादे का मंदिर है मलीनथ के गुरु का नाम उगमसी भाटी थे

मेवा नगर नाकोड़ा

जैन धर्म का राजस्थान का सबसे प्रमुख तीर्थ मेवानगर नाकोड़ा। साल भर में करोड़ो लोगो को अपनी धरा पर देखनी वाली यह जगह सबसे ज्यादा वीवीआईपी विजिट यहाँ देखती है। 12वीं शताब्दी का यह गांव किसी समय विरानीपुर के नाम से जाना जाता था। इस गांव में तीन जैन मंदिर हैं। इनमें से सबसे बड़ा मंदिर नाकोडा पार्श्‍वनाथ का समर्पित है। इसके अलावा एक विष्णु मंदिर भी है जो देखने लायक है। इस जगह का राठौड़ राजवन्श के इतिहास में प्रमुख स्थान है। राठौड़ राजवन्श के रावल सलखा के पुत्र रावल मल्लीनाथ के वन्शज महेचा राठौड़ कहलाते थे, उन मल्लीनाथ के नाम पर ही इसका नाम महेवानगर पड़ा जो कि कालान्तर में मेवा नगर हो गया।

सिद्वेश्वर महादेव मेला महाबार

बाड़मेर से २ किलोमीटर की दूरी पर महाबार रोड़ पर सिद्वेश्वर महादेव का मन्दिर आया हुआ है, जहां पर श्री महादेव जी के साथ, सन्तोषीमाता, बंजरग बली आदि के मन्दिर है। जहां हर वर्ष श्रावण महिने में प्रत्येक सोमवार को मेला लगता है। श्रावण के अन्तिम सोमवार की रात्रि में भजन संध्या का आयोजन होता है, जिसमे बड़ी संख्या में श्रद्वालू सम्मिलित होते है।

सुंईया मेला

बाड़मेर जिले के चौहटन कस्बे में सांईया महादेव का मेला भरता है जिसमे दूर दराज से भारी संख्या में लोग आते हैं।

अर्द्ध सुंईया मेला

बाड़मेर जिले के धोरीमन्ना कस्बे धुंदळेश्वर महादेव की पहाड़ियाँ में सुंईया का मेला भरता है जो चौहटन के सुंईया मेले की तरह ही होता है तथा यहाँ पर अमृत जल चौहटन के मेले से जल्दी आता है। और यहाँ हर अमावस्या को स्थानीय लोग जाते हैं तथा इन पहाड़ियाँ में एक प्रचलित गुफा है जो 70किमी दुर चौहटन की पहाड़ियाँ में निकलती है हाल में इस गुफा को बन्द कर रखा है।

आलम नगरी धोरीमना

बाड़मेर जिले से 67 किलोमीटर दूर साचौँर मार्ग पर स्थित है। यहां भगवान श्री आलमजी का पावन मन्दिर,व यहां सर्व जातीयों का बहुल क्षेत्र हैं । यहाँ प्रतिवर्ष आलमजी का पशु मेला लगता है, जिसमें मुख्यतः ऊँट व बैल खरीदे व बेचे जाते हैं। धोरीमन्ना में एक कहावत प्रचलित है कि "धोरीमन्ना धळ थापियो धरती आधो-आध" का अर्थ है कि धरती के केन्द्र में बसा नगर है मतलब धोरीमन्ना नगर सम्पूर्ण धरती का केन्द्र माना गया है।

खेमाबाबा मंदिर बायतु

बायतु स्थित खेमाबाबा मंदिर समाज के हर वर्ग में पूजनीय हैं।भादवा और माघ शुक्ल नवमी को यहाँ विशाल मेला लगता है। खेमा बाबा गोगाजी के भक्त थे मेले में भोपो का नृत्य मुख्य आकर्षण है

अंंकलेश्वर महादेव मन्दिर, अरटा

यहाँ भगवान शिव जी का शानदार मन्दिर है। यह मंदिर स्कूल परिसर के आगे व बाखासर रोड के दाई ओर स्थित है। यह मंदिर अपनी सुंदर कलाकृति के लिए पूरे क्षेत्र में विख्यात है। इस मंदिर के सामने ओर बाखासर रोड के बायी ओर एक नाडी ओर जोगमाया का मंदिर स्थित है। ये सभी मंदिर अपनी पुरातन सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए हैं।

गरीबनाथ जी गुफ़ा
  • बाड़मेर जिले की शिव तहसील में गरीबनाथ जी की प्रसिद्ध गुफा है, जो एक आध्यात्मिक केंद्र है ।

धोरों के गढ़ बाड़मेर में किराड़ू का मंदिर और जगत (उदयपुर) का अंबिका मंदिर और नीलकंठ महादेव मंदिर। किराड़ू को राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है, जबकि जगत लघु खजुराहो के रूप में जाना जाता है। दक्षिण भारतीय शैली में बना किराड़ू का मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। बाड़मेर से 43 किलोमीटर दूर हात्मा गांव में ये मंदिर है। खंडहरनुमा जर्जर से दिखते पांच मंदिरों की श्रृंखला की कलात्मक बनावट देखने वालों को मोहित कर लेती हैं। कहा जाता है कि 1161 ईसा पूर्व इस स्थान का नाम 'किराट कूप' था। करीब 1000 ई. में यहां पर पांच मंदिरों का निर्माण कराया गया। लेकिन इन मंदिरों का निर्माण किसने कराया, इसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन मंदिरों की बनावट शैली देखकर लोग अनुमान लगाते है कि इनका निर्माण दक्षिण के गुर्जर-प्रतिहार वंश, संगम वंश या फिर गुप्त वंश ने किया होगा।[1] मंदिरों की इस शृंखला में केवल विष्णु मंदिर और शिव मंदिर (सोमेश्वर मंदिर) थोड़े ठीक हालात में है। बाकि मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। श्रृंखला में सबसे बड़ा मंदिर शिव को समर्पित नजर आता है। खम्भों के सहारे निर्मित यह मंदिर भीतर से दक्षिण के मीनाक्षी मंदिर की याद दिलाता है, तो इसका बाहरी आवरण खजुराहो का रंग लिए हैं। काले व नीले पत्थर पर हाथी-घोड़े व अन्य आकृतियों की नक्काशी मंदिर की कलात्मक भव्यता को दर्शाती है। श्रृंखला का दूसरा मंदिर पहले से आकार में छोटा है। लेकिन यहां शिव की नहीं विष्णु की प्रधानता है। जो स्थापत्य और कलात्मक दृष्टि से काफी समृद्ध है। शेष मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। लेकिन बिखरा स्थापत्य अपनी मौजूदगी का एहसास कराता है। किराड़ू के इन मंदिरों को देखने के बाद ये सवाल उठता है कि आखिर इन्हें खजुराहो की तरह लोकप्रियता क्यों नहीं मिली। साथ ही इन्हें सहेजने के प्रयास क्यों नहीं किए गए।

मेले

तिलवाड़ा पशु मेला

लूनी नदी के तट पर स्थित तिलवाड़ा गाँव में यह मेला लगता है। यह जिले का प्रमुख पशु मेला है। यह मेला व्यावससायिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यह गाँव तिलवाड़ा रेलवे स्टेशन से ३ किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यह मेला जिला कृषि तथा पशुधन विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है तथा यह प्रत्येक वर्ष बड़्ी चैत्र ११ से चैत्र सुदी ११ तक (मार्च-अप्रैल) में लगता है। हजारों की संख्या में लाग यहाँ इकट्ठे होते हैं तथा संन्यासी रावल के दर्शन हेतु आते है। हजारों जानवारो यहां खरीद-बिक्री के लिए लाए जाते हैं।

नाकोड़ा पार्श्वनाथ

पंचपदरा तहसील के मेवानगर गाँव में एक मेला लगता है। यह स्थान बालोतरा शहर से १० किलो मीटर की दूरी पर है। यहाँ पर नाकोड़ा पार्श्वनाथ का जैन मंदिर है, जिसके चारों ओर का वातावरण काफी सुंदर है। यहाँ प्रत्येक वर्ष बड़्ी पूस १० (दिसम्बर-जनवरी) को पार्श्वनाथ का जन्म उत्सव मनाने के लिए मेला लगता है। यहाँ पर तीन जैन मंदिर है, जो पार्श्वनाथ, शांतिनाथ तथा आदिनाथ को समर्पित हैं। हर साल लगभग दस हजार की संख्या में लोग यहाँ इकट्ठे होते हैं, जिसमें ज्यादातर लोग जैन धर्म को मानने वाले होते हैं।

सुईया मेला चौहटन

भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। ऐसे में प्रथम महाकुंभ मेला और भारत का दूसरा सबसे बड़ा मेला यानी की अर्द्ध महाकुंभ कहा जाने वाला सुईया मेला जो बाड़मेर जिले के चौहटन कस्बे में 12 साल के अंतराल में एक बार लगता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु इस पवित्र तीर्थ स्थान के दर्शन कर महा स्नान का लाभ लेते हैं। मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि पांडवों की एस तपोभूमि के दर्शन करने एवं पवित्र स्नान से लाखों पाप धुल जाते हैं ऐसी मान्यता है। पाकिस्तान की सरहद से सटे बाड़मेर जिले के चौहटन में लगने वाले इस मेले को अर्द्ध महाकुंभ के नाम से जाना जाता है। इस दो दिवसीय मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु भारत के दूर-दूर प्रदेशों से यहां दर्शन करने आते हैं। 12 वर्ष के अंतराल में इस मेले का आयोजन उसी दिन होता है। जिस दिन अमावस्या के साथ सोमवार भी हो और कई नक्षत्रों का संयोग जब मेले के लायक बनता है, तभी इस अर्द्ध महाकुंभ का आयोजन होता है। अनुमान के तौर पर करीब 10 लाख श्रद्धालु इस मेले में शिरकत करते हैंऔर महास्नान का लाभ लेते हैं।

हुडो की ढाणी

यह बायतु तहसील का एक गाँव है। जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर सुनहरे धौरो के बीच बसा हुआ एक गाँव है। यहाँ पर भगवान ठाकुरजी का प्रसिद मन्द्रिर है। यहा पर हर-वर्ष ज्येष्ठ सुदी दशम को भव्य जागरण होती है एवं ग्यारस को मेला भरा जाता है। और बाबा रामदेव जी का प्रसिद़ मन्दिर है। भादवा शुदी ग्यारस को बाबा की जागरण रखी जाती है। एवं श्रावण सुदी 15 से 15 भादवा सुदी तक बाबा रामदेव जी के पैदलयात्रियो के लिए भोजन एवं रुकने के लिए उतम व्यवस्था है। गांव में सबसे पहले शिक्षा की अलख श्री राम पारीक ने जगाई उन्हें के प्रयासों से यहां उनके द्वारा भूमि दान देकर उच्च प्राथमिक विद्यालय राज्य सरकार से सन 1957 स्वीकृत करवाया तथा वर्तमान में यह विद्यालय उच्च माध्यमिक है इस विद्यालय को वर्तमान में हम इस मरुस्थल का अजायबघर कहें तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि इस विद्यालय में हजारों हजार पेड़ लगाए हुए हैं तथा मोर तथा अन्य पक्षियों की शरण स्थली है यहां तकरीबन 50 मोर विद्यालय में रहते हैं।

विरात्रा माता का मेला

चोहटन तहसील से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विरात्रा में मेला आयोजित किया जाता है। यहाँ साल में तीन बार चैत्र, भाद्रपद तथा माघ में वांकल देवी की पूजा का मेला लगता है। विरात्रा माता की मूर्ति की स्थापना वीर विक्रमादित्य ने की थी। वांकल देवी के पुजारी गहेलड़ा परमार जिनको आदर भाव से भोपा भी कहा जाता है , यहां पर देवी की पूजा करते है। गहेलड़ा( भोपा) पांच गाँवो घोनिया , ढोक , सनाउ , जसाई और परो में निवास करते है। इस स्थान पर मूर्ति लाते हुए विक्रमादित्य ने रात्रि विश्राम किया था।

खेड़मेला

पचपद्रा तहसील के अन्तर्गत खेड़ गाँव में हरेक पूर्णिमा पर मंदिर के निकट एक धार्मिक मेला लगता है। राधा अष्टमी भाद्रपद सुदी ८ और ९ (अगस्त-सितम्बर) को एक बड़ा मेला लगता है। यह गाँव बालोतरा से लगभग १० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। खे प्राचीन काल में सभ्यता का मुख्य केन्द्र था।

कल्याण सिंह का मेला

यह मेला सिवाना दुर्ग में अलाउद्दीन की सेना के विजय अवसर पर लगता है। यह श्रावण सुदी २ (जुलाई-अगस्त) में प्रत्येक वर्ष लगता है। लगभग ५००० लोग इस अवसर पर जमा होते हैं।

जिले के अन्य मुख्य त्योहारों में होली, शीतला अष्टमी, गणगौर, रक्षा-बंधन, अक्षय-त्रितिया, दशहरा, दीपावली, ईद-उल-जुहा आदि है। महावरी जयंती तथा पयूशन जैन लोगों का महत्वपूर्ण पर्व है।

सिणधरी पशु मेला

लूनी नदी के तट पर स्थित सिणधरी गाँव में यह मेला लगता है। यह जिले का प्रमुख पशु मेला है। यह मेला मनोरंजक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यह शहर बालोतरा एवं बाड़मेर रेलवे स्टेशन से ६० किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यह प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष बदी ५ (नवंबर-दिसम्बर) में लगता है। जो एक माह तक चलता हैं। हजारों की संख्या में लोग यहाँ इकट्ठे होते हैं। हजारों जानवार यहां खरीद-बिक्री के लिए लाए जाते हैं। तथा ऊनी कपड़ों की अच्छी वैरायटी यहाँ मिलती हैं।

गोयणेश्वर महादेव

गोयणेश्वर महादेव का विशाल मेला शिवरात्री को लगता है जो तीन दिन तक चलता है यह बाड़मेर जिले की सिणधरी तहसील के डँडाली गाँव में विशाल पहाड़ी पर मेला लगता है यहीं पर रावळ गुलाबसिह सिणधरी रहा करते थे वे परम गौ भक्त थे यहाँ पर रावळ गूलाबसिह की विशाल प्रतिमा लगी हुई है यहाँ पर दुर्लभ दुर्गम पहाड़ी है और यहाँ दूर दूर से यात्री आते

बायतु

यह प्रसिद्ध लोक देवता खेमा बाबा का जन्म स्थल है। यहाँ पर गुजरात और राजस्थान के दूर दूर से यात्री आते है। भादों सुदी नवमी, माघ सुदी नवमी और चैत्र सुदी नवमी को मेला लगता है।

सिणधरी

यहां मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी को मेला लगता हैं जो एक महिने तक चलता हैं।इस मेले को बजरंग मेले के नाम से जाना जाता है

मेहलू

जिला मुख्यालय से 41 किमी दूर मेहलू गांव में धर्मपुरी का मंदिर है यहां वर्ष में 3 बार विशाल मेला भरता है हजारों श्रद्धालु यहां आकर मन्नत मांगते है|

थाटी री खेजड़ी

शिव तहसील के अंतर्गत ऊंडू काश्मीर गांव में लोक देवता बाबा रामदेव जी का मेला, भाद्रपद शुक्ल दूज को लगता है। यह स्थान रामदेव जी की जन्मस्थली कहलाती है, यहां भव्य मंदिर बनाया गया है। जिसके दर्शनार्थ दूर दराज पैदल यात्री आते हैं।

खरीदारी

खरीदारी के शौकीन लोगों के लिए बाड़मेर किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां रंगबिरंगी कढ़ाई में जड़े हुए शीशे सैलानियों को आकर्षित करते हैं। विशेषरूप से विदेशी सैलानी इन वस्तुओं को अवश्य खरीदते हैं। पारंपरिक रंगों और बुनाई से बने शॉल, कालीन, दरी और कंबल इस क्षेत्र की खासियत हैं। सदर बाजार के आसपास बनी छोटी-बड़ी दुकानों से इन चीजों की खरीदारी की जा सकती है। यहाँ की मोज़ड़िया भी बहुत पसंद की जाती हैं।

परिवहन

वायु मार्ग

नजदीकी हवाई अड्डा [[जैसलमेर ]] है जो देश के बाकि हिस्सों से जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग

बाड़मेर रेलवे के जरिए जोधपुर से जुड़ा है। यहाँ से मुख्यत: चार ट्रेनों का संचालन होता हैं। यहाँ से हरिद्वार ,दिल्ली ,गुहावटी और दक्षिण भारत केे लिए ट्रेने जाती हैं।

सड़क

बाड़मेर सड़कमार्ग के द्वारा राजस्थान के अन्य जिलो और गुजरात राज्य से जुड़ा हुआ है। बाड़मेर जिले में से दो राष्ट्रीय राजमार्ग NH.68और NH.25 गुजरते है। NH.25 जिले को अन्य जिलो और राज्य की राजधानी जयपुर से जोड़ता है।

बाड़मेर के लोहारवा (धोरीमना तहसील )गांव में शनि देव का मंदिर प्रसिद्ध मंदिर है यहां पर हर शनिवार को मेला लगता है या पर लोग दूर-दूर से शनि देव जी के मंदिर आते हैं दर्शन करने के लिए शनिदेव के मंदिर के पास नवग्रह मंदिर बनाए जा रहे हैं नवग्रह मंदिरों का काम चल रहा है एवं शनि देव का मंदिर काफी प्राचीन है शनि देव जी के मंदिर पर हर शनिवार को लोग नारियल तिल एवं तेल चढ़ाते हैं और भी कई मंदिर लोहारवा में प्रसिद्ध मंदिर है जिसमें ठाकुर जी का मंदिर जोगमाया का मंदिर गोगाजी का मंदिर मामा जी का मंदिर इत्यादि