चतुर्भुजदास
चतुर्भुजदास की वल्लभ सम्प्रदाय के भक्त कवियों में गणना की जाती है[१]
जीवन परिचय
ये कुम्भनदास के पुत्र और गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। डा ० दीन दयाल गुप्त के अनुसार इनका जन्म वि ० सं ० 1520 और मृत्यु वि ० सं ० 1624 में हुई थी।[२] इनका जन्म जमुनावती गांव में गौरवा क्षत्रिय कुल में हुआ था।[३] वार्ता के अनुसार ये स्वभाव से साधु और प्रकृति से सरल थे। इनकी रूचि भक्ति में आरम्भ से ही थी। अतः भक्ति भावना की इस तीव्रता के कारण श्रीनाथ जी के अन्तरंग सखा बनने का सम्मान प्राप्त कर सके।
रचनाएँ
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने-अपने साहित्य के इतिहास के ग्रन्थ में निम्न रचनाओं का उल्लेख किया है :
- द्वादश यश
- हित जू को मंगल[४]
- भक्ति प्रकाश
इसके अतिरिक्त कुछ स्फुट पद। [५]
माधुर्य भक्ति का वर्णन
चतुर्भुजदास के आराध्य नन्दनन्दन श्रीकृष्ण हैं। रूप, गुण और प्रेम सभी दृष्टियों से ये भक्त का मनोरंजन करने वाले हैं। इनकी रमणीयता भी विचित्र है ,नित्यप्रति उसे देखिये तो उसमें नित्य नवीनता दिखाई देगी:
- माई री आज और काल्ह और ,
- दिन प्रति और,देखिये रसिक गिरिराजबरन।
- दिन प्रति नई छवि बरणै सो कौन कवि,
- नित ही शृंगार बागे बरत बरन।।
- शोभासिन्धु श्याम अंग छवि के उठत तरंग,
- लाजत कौटिक अनंग विश्व को मनहरन।
- चतुर्भुज प्रभु श्री गिरधारी को स्वरुप,
- सुधा पान कीजिये जीजिए रहिये सदा ही सरन।।
प्रेम के क्षेत्र में भक्तों के लिए आदर्श गोपियाँ भी श्रीकृष्ण की रूप माधुरी से मुग्ध हैं। उसकी सुन्दर छवि को देखकर गोपियों का तन मन सभी कुछ पराया हो जाता है वे सदा श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती हैं। इसी से उनके मन का संताप दूर होता है। श्रीकृष्ण से वे लोक- लाज ,कुल के नियम एवं बन्धन सब तोड़कर मिलना चाती हैं:
- तब ते और न कछु सुहाय।
- सुन्दर श्याम जबहिं ते देखे खरिक दुहावत गाय।।
- आवति हुति चली मारग सखि, हौं अपने सति भाय।
- मदन गोपाल देखि कै इकटक रही ठगी मुरझाय।।
- बिखरी लोक लाज यह काजर बंधु अरु भाय।
- दास चतुर्भुज प्रभु गिरिवरधर तन मन लियो चुराय।।[६]
गोपियों के मन को वश में करने में कृष्ण की रूप माधुरी के साथ- साथ उनके गुण तथा मुरली माधुरी का भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है। उनकी मुरली माधुरी का भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है। मुरली माधुरी तो चेतन-अचेतन सभी को अपनी तान से मुग्ध कर देती है। अतः बन में जाती हुई गोपी के कान में पहुँचकर सप्त-स्वर बंधान युक्त मुरली की ध्वनि यदि अपना प्रभाव डालती हो तो आश्चर्य क्या :
- बेनु धरयो कर गोविन्द गुण निधान।
- जाति हुति बन काज सखिन संग ठगी धुनि सुनि कान।।
- मोहन सहस कल खग मृग पसु बहु बिधि सप्तक सुर बंधान।
- चतुर्भुजदास प्रभु गिरिधर तन मन चोरि लियो करि मधुर गान।।[७]
सन्दर्भ
- ↑ http://hindisahityainfo.blogspot.in/2017/06/blog-post_2.htmlसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- ↑ http://hindisahityainfo.blogspot.in/2017/06/blog-post_2.htmlसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- ↑ http://hindisahityainfo.blogspot.in/2017/06/blog-post_2.htmlसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
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- ↑ http://hindisahityainfo.blogspot.in/2017/06/blog-post_2.htmlसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
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