चंद्रसेन राजा

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चंद्रसेन राजा संभाजी भोंसले के विश्वासपात्र सरदार धनाजी यादव का पुत्र। पिता के बाद चंद्रसेन प्रधान सेनापति बना। गुप्त रूप से शिवाजी की माता ताराबाई का पक्ष करने से साहूजी ने बालाजी विश्वनाथ को इनपर दृष्टि रखने के लिये नियुक्त किया। संयोग से एक दिन शिकार खेलते समय चंद्रसेन और बालाजी विश्वनाथ में लड़ाई हो गई। चंद्रसेन भागकर ताराबाई के पास पहुँचा। सन्‌ 1712 ई. में जब ताराबाई और शिवाजी कारागार में डाले गए और महारानी राजसबाई कोल्हापुर में प्रधान नियुक्त हुई चंद्रसेन इस डर से कि कहीं वह पकड़कर साहूजी के पास न भेज दिया जाय, भागकर निजामुल्मुल्क आसफजाह के पास पहुँचा और उसकी सलाह से वह बादशाह फर्रुखसियर की सेवा में चला आया। बादशाह ने उसे सातहजारी मंसब दिया और बीदर प्रांत की कई जागीरें दे दी। इसने पंचमहाल ताल्लुके में कष्णा नदी के पास एक पहाड़ी पर छोटा सा दुर्ग बनवाया जिसका नाम चंद्रगढ़ रखा। सन्‌ 1726 ई. में निजामुल्मुल्क आसफजाह की साहूजी पर चढ़ाई के समय चंद्रसेन ने आसफजाह की सहायता की।