चंदायन

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चंदायन, मुल्ला दाऊदकृत हिंदी का ज्ञात प्रथम सूफी प्रेमकाव्य। इसमें नायक लोर, लारा, लोरक, लोरिक अथवा नूरक और नायिका चाँदा या चंदा की प्रेमकथा वर्णित है। रचनाकाल विवादग्रस्त है। प्रसिद्ध इतिहासकार अल् बदायूनी के आधार पर, जिसने सन् 772 हिजरी के आसपास इसकी प्रसिद्धि का उल्लेख किया है, ई. सन् की 14वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में (1379 ई.) इसकी रचना का अनुमान किया जाता है। इसके नामकरण तथा पाठों में भी एकतानता नहीं है। प्राचीन उल्लेखों में विशेष रूप से "चंदायन" और सामान्यत: "नूरक चंदा" नाम मिलता है।

लोकगाथा के रूप में इस काव्य की मौखिक परंपरा भी है। उत्तर प्रदेश और बिहार के अंचलों में, कथावस्तु में हेरफेर के साथ लोकप्रचलित छंदों में "लोरिकायन", "लोरिकी" और "चनैनी" नाम से इस प्रेमगाथा के अनेक संस्करण प्राप्त हैं। प्राचीन काल से ही इस कथा की ख्याति इतिहासकारों और कवियों के उल्लेखों से सिद्ध है।

कुछ विद्वान् इसकी भाषा ठेठ अवधी मानते हैं और कुछ हिंदी की बोलियों के मिश्रण से बनी किसी "सांस्कृतिक भाषा" की कल्पना करते हैं। अन्य सूफी काव्यों की भाँति इसमें भी रहस्यभावना की प्रतिष्ठा है। इसमें आए कतिपय सौंदर्यचित्र और प्रसंग मर्मस्पर्शी हैं। कथा दोहा, चौपाई शैली में वर्णित है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मध्य प्रदेश में इस कथा के अनेक संस्करण लोकगाथा के रूप में प्रचलित हैं।

पात्र

इसके प्रमुख तीन ही पात्र हैं।

नायिका- चंदा

नायक- लोर

और एक उपनायिका - मैना( लोरिक की पहली पत्नी)

इसकी कथा लोर और चंदा के उन्मुक्त प्रेम पर आधारित है।प्रथम दर्शन दर्शाया ही दोनों में प्रेम की उत्पत्ति तथा विभिन्न व्यक्तियों द्वारा उनके प्रेम में बांधा,नाग द्वारा नायिका को डस लेना एवं गारुड़ी द्वारा उसे ठीक करना आदि का बड़ा रोचक वर्णन किया गया है।

अन्य पात्र- गोवरगढ़ के राजा सहदेव(चंदा के पिता)

बाबन( जिससे चंदा का ४ वर्ष की अवस्था में विवाह हुआ था)

बाजुर(भिक्षुक) चंदा पर मोहित हुआ।

राव रूपचंद (राजापुर के राव) जिसे बाजपुर दर्शाया चंदा के बारे में पता चला था।और उसने गोवरगढ़ पर चढ़ाई।

वृहस्पति (चंदा की सखी)

आदि।