घी-त्यार

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घी-त्यार (अर्थात घी त्यौहार) भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक लोक उत्सव है। यह त्यौहार भी हरेले की ही तरह ऋतु आधारित त्यौहार है। हरेला जहाँ बीजों को बोने और वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक त्यौहार है, वहीं घी-त्यार फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाने वाला त्यौहार है।

उत्तराखंड में हिंदू कैलेंडर अनुसार संक्रान्ति को लोक पर्व के रूप में मनाने का प्रचलन रहा है। भाद्रपद मास की संक्रान्ति, जिस दिन सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करता है और जिसे सिंह संक्रांति कहते हैं, यहाँ घी-त्यार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी घी का सेवन अवश्य करते हैं और परंपरागत मान्यता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता उसे अगले जन्म में घोंघे के रूप में पैदा होना पड़ता है।[१]

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घी त्यार के दिन एक दूसरे को दूध, दही और फल सब्जियों के उपहार (भेंट ) बांटे जाते हैं –

घी संक्रांति या घी त्यार के दिन दूध दही, फल सब्जियों के उपहार एक दूसरे को बाटे जाते हैं. इस परम्परा को उत्तराखंड में ओग देने की परम्परा या ओलग परम्परा कहा जाता है. इसीलिए इस त्यौहार को ओलगिया त्यौहार, ओगी त्यार भी कहा जाता है. यह परम्परा चंद राजाओं के समय से चली आ रही है, उस समय भूमिहीनों को और शासन और समाज मे वरिष्ठ लोगों को उपहार दिए जाते थे. इन उपहारों में काठ के बर्तन ( स्थानीय भाषा मे ठेकी कहते हैं ) में दही या दूध और अरबी के पत्ते और मौसमी सब्जी और फल दिये जाते थे.

इस दिन अरबी के पत्तों का मुख्यतः प्रयोग किया जाता है. सर्वोत्तम अरबी के पत्ते और मौसमी फल सब्जियां और फल अपने कुल देवताओं को चढ़ाई जाती है. उसके बाद गाँव के लोगो के पास उपहार लेकर जाते हैं. फिर रिश्तेदारों को दिया जाता है.

सन्दर्भ

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