गौड ब्राम्हण

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

गौड ब्राम्हण

गौडाश्च द्वादश प्रोक्ता: कायस्थास्तावदेवहि।

संदर्भ-पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, कायस्थानांसमुत्पत्ति एवं ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड।

अर्थ-गौड ब्राह्मण 12 प्रकार के बताये गये हैं। उन्हें ही कालान्तर में "कायस्थ" जानें।

ब्रम्हकायस्थ ब्राह्मणों की सर्वश्रेष्ठ जाति है। ब्राह्मणों में केवल ब्रम्ह कायस्थों की ही उत्पत्ति और ऋषियों से संस्कार ग्रहण करके ब्राह्मण के रूप में स्थापित होने का वर्णन है। यह वर्णन पद्मपुराण, उत्तरखंड में विद्यमान है।


भगवान् विष्णु के नाभि से भगवान् ब्रह्मा प्रकट हुये थे।

भगवान् ब्रह्मा ने 18 मानस सन्तान का सृजन किया। इसका वर्णन पद्मपुराण के सृष्टिखंड एवं भागवतपुराण के स्कन्ध 3 में विद्यमान है। भगवान् ब्रह्मा ने सर्वप्रथम अपने दशांश शक्ति से 10 ऋषियों को उत्पन्न किया। इनमें गोद से नारद, अंगूठे से दक्ष, श्वास से वसिष्ठ, त्वचा से भृगु, हाथ से क्रतु, नाभि से पुलह, कानों से पुलस्त्य, मुख से अंगिरा, नेत्रों से अत्रि और मन से मरीचि ऋषि उत्पन्न हुये। भगवान् ब्रह्मा के 10 अलग-अलग अंगों से उत्पन्न होने के कारण प्रत्येक ऋषि भगवान् ब्रह्मा से "दशांश शक्ति" के हैं। ये ऋषि पुरुष होने के कारण संतान उत्पन्न करने में सक्षम नहीं हैं, इससे चिन्तित होकर भगवान् ब्रह्मा विचार कर रहे थे तभी उनके बायेंअंग से शतरूपा तथा दायेंअंग से स्वायंभुवमनु उत्पन्न हुये। भगवान् ब्रह्मा ने उनका विवाह कराया। शतरूपा से प्रसूति नामक कन्या उत्पन्न हुई। उसका विवाह दक्ष ऋषि से हुआ, प्रसूति से 24 कन्याओं का जन्म हुआ। उनमें से 8 कन्याओं का विवाह मरीचि इत्यादि 8 ऋषियों से हुआ, इनमें नारद वैरागी हो गये। 8 ऋषियों से उत्पन्न प्रजा का मृत्युलोक में विस्तार हुआ। स्वायंभुवमनु ने मनुस्मृति की रचना करके, 4 वर्णों में प्रजा को व्यवस्थित किया। ऋषियों से उत्पन्न प्रजा सत्-रज-तम से मिश्रित त्रिगुणात्मक थी।

संदर्भ-भागवतपुराण, स्कन्ध : 3-4

तत्पश्चात भगवान् ब्रह्मा ने सतोगुणी प्रजा के विस्तार के लिये 4 सनकादि (सनक, सनन्दन, सनत्कुमार एवं सनातन) को उत्पन्न किया और ऋषियों की पुत्रियों से विवाह करके सतोगुणी प्रजा के विस्तार के लिये आदेश दिया, तब सनकादि ने ब्रह्मचर्य रहने की इच्छा व्यक्त की, इससे भगवान् ब्रह्मा को अत्यंत क्रोध आया, तब भगवान् ब्रह्मा के क्रोध से भगवान् रुद्र (शंकर) प्रकट हुये। इनका विवाह दक्ष की पुत्री सती से हुआ, जो शरीर त्याग कर पार्वती हुईं।


संदर्भ-पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड, अध्याय-3



"गुरु निगम, गुरु गौतम, गुरु श्रीवास्तव, गुरु श्रेणीपति, गुरु वाल्मीकी, गुरु वसिष्ठ, गुरु सौरभ, गुरु दालभ्य, गुरु सुखसेन, गुरु भट्टनागर, गुरु सूर्यध्वज तथा गुरु माथुर" नाम के "गौडब्राह्मण" हुये।

संदर्भ, उत्तरखण्ड, कायस्थानांसमुत्पत्ति।

ऋषि ब्राह्मणों का कर्म-

ऋषि ब्राह्मणों को 6 कर्म श्रुति-स्मृति द्वारा करना निर्धारित था।

अध्यापनमध्ययनं यजनं याजनं तथा।

दानं प्रतिग्रहं चैव ब्राह्मणानामकल्पयत्॥

संदर्भ-मनुस्मृति, अध्याय-1

अर्थ-ब्राह्मणों के लिये अध्ययन-अध्यापन, यज्ञकरना-यज्ञकरना तथा दानदेना-दानलेना, ये 6 कर्म निर्धारित किया गया है।

चित्रगुप्त वंशीय कायस्थ गौड ब्राह्मणों का कर्म-

ब्रम्ह कायस्थ गौड ब्राह्मणों को 7 कर्म निर्धारित किया गया है। यथा-

द्विजातीनां यथादानं यजनाध्ययने तथा।

कर्तव्यानीति कायस्थै: सदा तु निगमान् लिखेत्॥

संदर्भ-पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, कायस्थानांसमुत्पत्ति।

अर्थ- ब्रम्हकायस्थ द्विजों के लिये पढ़ना-पढ़ाना, यज्ञकरना-यज्ञकरना, दानदेना-दानलेना तथा वेद को लिखना ये 7 कर्म निर्धारित किया गया है।

ब्रम्ह कायस्थ गौड ब्राह्मणों के पूर्व लिखने की परम्परा नहीं थी। ऋषियों की ज्ञान परम्परा श्रुति-स्मृति पर आधारित थी।

ब्राह्मण के 3 प्रकार-

उपाध्याय ब्राह्मण-यह ब्राह्मण शिक्षा देने का कार्य किया करते थे। इन्हें उपाध्याय ब्राह्मण कहा जाता था। इन्हें श्रेष्ठ ब्राह्मण माना जाता था।

राजन्य ब्राह्मण-ये ब्राह्मण राजसी होते थे, कलियुग के इतिहास में कायस्थ ब्राह्मण राजाओं का अनेक गौरवपूर्ण इतिहास है।

ऋषिवंशीय राजा भी हुये, महादानी बलि, विरोचन, प्रह्लाद, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, मेघनाद इत्यादि इसके उदाहरण हैं।


याज्ञिक ब्राह्मण-इन ब्राह्मणों का कार्य यज्ञ कराना और पूजा-पाठ कराना है।


ब्रम्हकायस्थ गौड ब्राम्हण ने शिक्षक एवं राजन्य रूप में सदैव से सनातन धर्म का मान बढ़ाया।


सौजन्य से-

सौजन्य से ,

महाकाल चित्रगुप्त ट्रस्ट, गोरखपुर।