गौचर मेला
यह लेख विषयवस्तु पर व्यक्तिगत टिप्पणी अथवा निबंध की तरह लिखा है। कृपया इसे ज्ञानकोष की शैली में लिखकर इसे बेहतर बनाने में मदद करें। (मार्च 2022) |
भारत मेलों एवं सांस्कृतिक आयोजनों का देश रहा है। मेले किसी भी समाज के न सिर्फ लोगों के मिलन के अवसर होते है वरन संस्कृति, रोजमर्रे की आवश्यकता की पूर्ति के स्थल व विचारों और रचनाओं के भी साम्य स्थल होते हैं। पर्वतीय समाज के मेलों का स्वरूप भी अपने में एक आकर्षण का केन्द्र है। उत्तराखण्ड में मेले संस्कृति और विचारों के मिलन स्थल रहे है। यहां के प्रसिद्ध मेलों में से एक अनूठा मेला गौचर मेला है।
मेले का स्वरुप
साँचा:if empty | |
---|---|
{{{type}}} | |
सुरक्षित करते हुए। | |
साँचा:location map |
तिब्बत में लगने वाले दो जनपदों पिथौरागढ व चमोली में भोटिया जनजाति के लोगों की पहल पर शुरू हुआ यह मेला उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में जीवन के रोजमर्रे की आवश्यकताओं का हाट बाजार और यही हाट बाजार धीरे-धीरे मेले के स्वरूप में परिवर्तित हो गया। चमोली जनपद में नीति माणा घाटी के जनजातिय क्षेत्र के प्रमुख व्यापारी एवं जागृत जनप्रतिनिधि स्व0 बालासिंह पॉल, पानसिंह बम्पाल एवं गोविन्द सिंह राणा ने चमोली जनपद में भी इसी प्रकार के व्यापारिक मेले के आयोजन का विचार प्रतिष्ठित पत्रकार एवं समाजसेवी स्व.गोविन्द प्रसाद नौटियाल के सम्मुख रखा। गढवाल के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर के सुझाव पर माह नवम्बर, 1943 में प्रथम बार गौचर में व्यापारिक मेले का आयोजन शुरू हुआ बाद में धीरे-धीरे औद्योगिक विकास मेले एवं सांस्कृतिक मेले का स्वरूप धारण कर लिया।
मेले की तिथि
मेले में पहले तिथि का निर्धारण हर वर्ष भिन्न-भिन्न होता था, परन्तु आजादी के पश्चात गौचर में मेले का आयोजन भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पं॰ जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिन के अवसर पर 14 नवम्बर से एक सप्ताह की अवधि तक किये जाने का निर्णय लिया गया।
कार्यक्रम
यह मेला संस्कृति, बाजार, उद्योग तीनों के समन्वय के कारण पूरे उत्तराखण्ड में लोकप्रिय बन गया है। मेले में जहां रोज की आवश्यक वस्तुओं की दुकाने लगाई जाती है वहीं जनपद में शासन की नीतियों के अनुसार प्राप्त उपलब्धियों के स्टॉल भी लगाये जाते हैं। मेले में स्वास्थ्य, पंचायत, सहकारिता, कृषि, पर्यटन आदि विषयों पर विचार गोष्ठियां होती है तथा मेले में स्वस्थ मनोरंजन, संस्कृति के आधार पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। इस हेतु प्रत्येक वर्ष पर्यटन विभाग, उत्तराखण्ड द्वारा अनुदान की धनराशि उपलब्ध कराई जाती है।
कैसे पहुंचें
गौचर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवस्थित है तथा चार धाम यात्रा मार्ग पर पडता है एवं राज्य के अन्य मुख्य शहरों से सड़क मार्ग से जुडा है। बस, टैक्सी तथा अन्य स्थानीय यातायात की सुविधायें उपलब्ध है।
- निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश 163 कि.मी.
- निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट 180 कि.मी.