गैस नली
साँचा:asbox गैस नली या 'गैसयुक्त नली' (gas-filled tube) एकप्रकार की एलेक्ट्रॉन नली है जिसमें विद्युत का प्रचालन मूलतः नलिका में भरी गैस या वाष्प के द्वारा होता है। इसको गैस विसर्जन नलिका (gas discharge tube) भी कहते हैं। इसमें किसी कुचालक ताप-रोधी पात्र (इनवेलप) के अन्दर कोई समुचित गैस भरी होती है और उसके भीतर एलेक्ट्रोडों का समुचित विन्यास (arrangement) किया गया होता है। प्राय: पात्र कांच की बनी होती है किन्तु कुछ नलिकाओं (विशेषतः शक्तिनलिकों के) के पात्र सिरैमिक के भी बनाये जाते हैं। सैनिक उपयोग की नलिकाओं के पात्र धातु के बने होते हैं जिनकी भीतरी सतह काँच की परत होती है।
गैस नलिकाओं के वैद्युत गुणधर्म (electrical characteristics) इन नलिकाओं में भरी गैसों की प्रकृति और उनके दाब पर बहुत सीमा तक निर्भर करते हैं।
गैस द्विध्रुवी नली (Gas Diode Tube)
इन नलियों में थोड़ी सी गैस डाल दी जाती है। अधिकतर जो गैसें प्रयोग में लाई जाती हैं, वे हैं पारदवाष्प, आरगन, नियन आदि। गैसनली में ये 1 से 30*10-3 मिलीमीटर दबाव पर रहती हैं।
जैसे-जैसे धनाग्र की वोल्टता शून्य से बढ़ाई जाती है, पट्टिक धारा निर्वात नलियों के समान इन नलियों में भी बढ़ने लगती है। तथापि जब वोल्टता गैस के आयनीकरण विभव पर (जो 10 से 15 वोल्ट तक होता है) पहुँच जाती है, तो मुठभेड़ के द्वारा आयनीकरण हो जाता है। पट्टिक धारा अपने पूर्ण मान पर पहुँच जाती है और फिर पट्टिक वोल्टत को अधिक बढ़ाने का उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस परिणाम को चित्र 9 में दिखया गया है। ऐसा इस कारण होता है कि मुठभेड़ के द्वारा जो धनात्मक आयन पैदा हो जाते हैं, वे पूर्ण रूप से अंतरण आवेश के प्रभाव को हटा देते हैं, तभी इलेक्ट्रान धारा पर इसका नियंत्रण समाप्त हो जाता है और पूर्ण इलेक्ट्रान धारा प्रवाहित होने लगती है।
जैसा पहले ही बताया जा चुका है, इस गैस द्विध्रुवी का उपयोग ऋजुकरण में किया जाता है, जहाँ अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है; उदाहरणत: प्रेषी के शक्तिस्रोत (पावर सप्लाई) में।
ग्रिडनियंत्रित गैस त्रिध्रुवी (थाइरेट्रान)
ये वे गैस द्विध्रुवी हैं जिनमें पट्टिक और ऋणाग्र के बीच एक नियंत्रक ग्रिड लगा दिया जाता है। इस नियंत्रक ग्रिड का कार्य भी लगभग निर्वात नली के ग्रिडनियंत्रण सा ही है, परंतु एक बहुत बड़ी विभिन्नता दोनों के नियंत्रण में है। यदि इस ग्रिड के विभव को ऋणात्मक मान से धीरे धीरे बढ़ाया जाए तो यह देखा जाएगा कि जैसे ही उसका मान उस बिंदु तक आ जाता है जिसपर धारा प्रवाहन आरंभ हो जाता है, वैसे ही धारा एकदम न्यून से अपने पूर्ण मान पर प्रवाहित होने लगती है। जैसे ही पूर्ण धारा प्रवाहित होने लगती है, नियत्रंक ग्रिड पर धारा का किसी प्रकार का प्रभाव नहीं रह जाता। उसके बाद चाहे ग्रिड में कितना ही ऋणात्मक विभव लगा दिया जाए, पट्टिक धारा का प्रवाहन नहीं रुक सकता। केवल पट्टिक वोल्टता को आयनीकरण विभव के कम करके पट्टिक धारा के प्रवाहन को रोका जा सकता है। इसका कारण यह है कि जैसे ही विद्युद्धारा प्रवाहित होती है, धन आयन ऋणात्मक, ग्रिड को ढक लेते हैं और ग्रिउ के विभव का कोई प्रभाव धाराप्रवाहन में नहीं रह जाता।
इस प्रकार की नलियों का उपयोग योजना तथा 'ट्रिगर' के रूपों में किया जाता है जिसका बहुत ही महत्वपूर्ण उपयोग आजकल के इलेक्ट्रनिक उपकरणों में किया जा रहा है।
ऋणाग्र-किरण-नली (कैथोड रे टयूब)
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सूक्ष्म तरंग (माइक्रोवेव ट्यूब), क्लाइस्ट्रान, मैगनिट्रान तथा प्रगामी तरंग नली (ट्रैवेलिंग वेव ट्यूब)
इन नलियों में सबसे अधिक उपयोगी क्लाइस्ट्रान है, जो अति सूक्ष्म तरंग के लिए दोलक तथा प्रवर्धक के रूप में काम में लाई जाती है। मैगनिस्ट्रान अधिक शक्तिशाली, अति सूक्ष्म तरंग के उत्पादन कार्य में लाई जाती है, जिसका उपयोग राडार में किया जाता है। प्रगामी तरंग नली अति उच्च आवृति पर विस्तीर्णपट्ट-प्रवर्धक (वाइड बैंड ऐंप्लिफ़ायर) के रूप में बहुत ही अधिक उपयोगी है। इन नलियों में उच्च-आवृत्ति-विद्युत्-क्षेत्र की प्रतिक्रिया इलेक्ट्रान के साथ होती हैं। इस प्रतिक्रिया में इलेक्ट्रान कुछ ऊर्जा उच्च आवृत्ति दोलन के रूप दे देते हैं। इस प्रकार उच्च आवृत्ति दोलक की ऊर्जा बढ़ जाती है। यह ऊर्जा प्रवर्धक के रूप में कार्य करती हैं।