गुस्ताव फ्लोवेर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
युवावस्था में गुस्ताव फ्लोवेर

गुस्ताव फ्लोवेर (Gustave Flaubert ; फ्रांसीसी उच्चारण: [ɡystav flobɛʁ]; 12 दिसम्बर 1821 – 8 मई 1880)) फ्रेंच उपन्यासकार थे।

जीवन परिचय

लेखक गुस्ताव फ्लोवेर (१८२१-८०) का जन्म रूआँ में १२ दिसम्बर सन् १८२१ को हुआ था। उनके पिता शल्यचिकित्सक थे। ११ वर्ष की अवस्था में आप साहित्य की ओर प्रवृत्त हुए। आप पेरिस में कानून का अध्ययन करने लगे, किंतु सन् १८४५ में पिता की मृत्यु के पश्चात् रूआँ लौट आए और अपने पैतृक निवासस्थान पर रहने लगे जहाँ ८ मई सन् १८८० को आपका शरीरांत हुआ। दो या तीन प्रेमव्यापार; पिरेनीज़, कार्सिका, ब्रिटेन, यूनान, मिस्र तथा फिलिस्तीन की यात्राएँ और पैरिस के संक्षिप्त अनेक अवलोकन आपके जीवन की बाह्य घटनाएँ थीं। साहित्यसेवा के लिए ही उनका जीवन था। वे लज्जाशील, स्पर्शकातर, स्वाभिमानी साहित्यसेवी थे।

यथार्थवाद के ह्रासकाल में भी फ्रेंच यर्थाथवादी संप्रदाय के नेता के रूप में फ्लोबेर की प्रतिष्ठा थी। आप गोतिये के शिष्य और ह्यूगो के प्रशंसक थे। गांकर बंधु, ज़ोला, दादे और मोपासाँ आपके शिष्य थे। आप स्वछंदतावादी (रोमैंटिस्ट) तथा यथार्थवादी थे। कल्पना की अधिकता, प्राच्य, विदेशी, भयानक तथा अतीत के प्रति आकर्षण एवं मध्यवर्ग के प्रति घृणा के कारण आप स्वछंदतावादी और व्यक्तित्वशून्यता, स्वानुभूतिव्यंजना, प्रामाणिकतानुराग के आग्रह के कारण यथार्थवादी थे। आपकी कला संयत थी। आप स्वच्छंदतावादियों की अत्यधिक निजी पूर्वधारणा से मुक्त थे।

आपके उपन्यास शैली के आदर्श हैं। उनमें प्रतिपाद्य विषय एवं उसके स्वरूप में पूर्ण एकरूपता है जो शेक्सपीयर में भी सदैव नहीं रही। फ्लोबेर ने मूर्तिमत्ता, शब्दौचित्य और एकरूपता के लिए कठिन परिश्रम किया। आप 'कला के लिए कला' सिद्धांत के प्रवर्तक थे। आपके मतानुसार कला जीवन की सार्थकता है और कला से इतर वस्तुएँ मृगमरीचिका मात्र हैं।

आपकी सर्वोत्कृष्ट रचना 'मादाम बोवारी' (१८५७) है। 'सालामबो' (१८६२) में कार्थेज के सुंदर पुनर्निर्माण एवं उसकी सभ्यता का चित्रण है। यह एक व्यक्तित्वशून्य सिनेमा फिल्म है। 'लेदुकाशिआँ सानंतिमांताल' (१८७३) आपकी युवावस्था की स्मृतियों एवं राजनीतिक प्रश्न संबंधी चिंताओं पर आधारित है। 'ला तांताशिआंदसे आंत्वान' के तीन संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण क्रमश: सन् १८४९, १८५६ और १८७२ में प्रकाशित हुए। यह आपके कलात्मक विकास एवं चिंतनशीलता का परिचायक है। 'अ काँत सिंप्ल्' सरल हृदय की छोटी सी कहानी है, 'बुव्हार ए पेकुशे' आपके निधनोपरांत प्रकाशित अपूर्ण उपन्यास है।