गिरनार

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
गिरनार पर्वत
ગિરનાર પર્વત
गिरिनगर
रेवतक पर्वत
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
गिरनार पर्वत
उच्चतम बिंदु
शिखरलुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
ऊँचाईसाँचा:convert
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
उदग्रतालुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
एकाकी अवस्थितिलुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
to लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
निर्देशांकसाँचा:if emptyसाँचा:if empty
भूगोल
देशसाँचा:enum
राज्यसाँचा:enum
राज्य/प्रांतसाँचा:enum
जिलासाँचा:enum
बस्तीसाँचा:enum
सीमा निर्माणसाँचा:enum
उपविभागसाँचा:enum
टोपोग्राफिक नक्शासाँचा:if empty
चट्टान पुरातनतासाँचा:if empty
चट्टान प्रकारसाँचा:enum
साँचा:if empty

साँचा:template otherसाँचा:main other

भारत के गुजरात राज्य के जूनागढ़ जिले स्थित पहाड़ियाँ गिरनार नाम से जानी जाती हैं। यह योगी,महात्मा,साधुओ का सिद्ध क्षेत्र है यहाँ से नारायण श्री कृष्ण के सबसे बड़े भ्राता तीर्थंकर भगवन 1008 नेमीनाथ भगवान ने मोक्ष प्राप्त किया है यह अहमदाबाद से 327 किलोमीटर की दूरी पर जूनागढ़ के १० मील पूर्व भवनाथ में स्थित हैं। यह एक पवित्र स्थान है जो जैन एवं हिंदू धर्मावलंबियों दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। हरे-भरे गिर वन के बीच पर्वत-शृंखला धार्मिक गतिविधि के केंद्र के रूप में कार्य करती है।

इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 3,500 फुट है पर चोटियों की संख्या अधिक है। इनमें जैन तीर्थंकर नेमिनाथ, अंबामाता, गोरखनाथ, औघड़ शिखर, गुरू दत्तात्रेय और कालिका शिखर प्रमुख हैं। सर्वोच्च चोटी 3,666 फुट ऊँची है; इस चोटी को गुरू दत्तात्रेय के नाम से जाना जाता है |[१][२] यहां सब धर्म के भक्त आते है और श्री गुरुदत्त जी के साथ-साथ जैन मंदिर का भी दर्शन करते है एशियाई सिंहों के लिए विख्यात 'गिर वन राष्ट्रीय उद्यान' इसी पर्वत के जंगल क्षेत्र में स्थित है। यहां मल्लिनाथ और नेमिनाथ के मंदिर बने हुए हैं । यहीं पर सम्राट अशोक का एक स्तंभ भी है । महाभारत में अनुसार रेवतक पर्वत की गोद में बसा हुआ प्राचीन तीर्थ स्थल है ।

इतिहास

गिरिनार का प्राचीन नाम उर्ज्जयंत था। ये पहाड़ियाँ ऐतिहासिक मंदिरों, राजाओं के शिलालेखों तथा अभिलेखों (जो अब प्राय: ध्वस्तप्राय स्थिति में हैं) के लिए भी प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी की तलहटी में एक बृहत चट्टान पर अशोक के मुख्य 14 धर्मलेख उत्कीर्ण हैं। इसी चट्टान पर क्षत्रप रुद्रदामन् का लगभग 150 ई. का प्रसिद्ध संस्कृत अभिलेख है। इसमें सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य तथा परवर्ती राजाओं द्वारा निर्मित तथा जीर्णोद्वारकृत जैन और विष्णुमंदिर का सुंदर वर्णन है। यह लेख संस्कृत काव्यशैली के विकास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण समझा जाता है। इस बृहत अभिलेख में रुद्रदमन के नाम और वंश का उल्लेख तथा रूद्रदमन्‌ संवत्‌ 72 में, भयानक आँधी पानी के कारण प्राचीन सुदर्शन झील टूट फूट जाने का काव्यमय वर्णन है। विशेषकर सुवर्णसिकता तथा पलाशिनी नदियों के पानी को रोककर बाँध बनाए जाने तथा महावृष्टि एवं तूफान से छूट जाने का वर्णन तो बहुत ही सुंदर है।

इस अभिलेख की चट्टान पर 458 ई. का एक अन्य अभिलेख गुप्तसम्राट् स्कंदगुप्त के समय का भी है जिसमें सुराष्ट्र के तत्कालीन राष्ट्रिक पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित द्वारा सुदर्शन तड़ाग के सेतु या बाँध का पुन: एक बार जीर्णोद्धार किए जाने का उल्लेख है क्योंकि पुराना बाँध, जिसे रूद्रदामन्‌ ने बनवाया था, स्कंदगुप्त के राज्याभिषेक वर्ष में जल के महावेग से नष्ट भ्रष्ट हो गया था।

यहाँ के सिंहों की नस्ल भी अधिक विख्यात है जिनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है।[३]

हिन्दू तीर्थस्थल के रूप मे उल्लेख

प्राचीन काल में ये पहाड़ियाँ अघोरी संतों की क्रीड़ास्थली रहीं।[४]

कुंड

गौमुखी, हनुमानधारा और कमंडल नामक तीन कुंड यहाँ स्थित हैं।

अंबामाता का मंदिर

यह मंदिर नवविवाहित जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण है।

गोरखनाथ का मंदिर

यहाँ गोरखनाथ जी के चरण एवं प्रतिमा स्थापित है।

दत्तात्रेय का मंदिर

२००४ मे निर्मित इस मन्दिर मे गुरु दत्तात्रेय की प्रतिमा स्थापित है।

जैन तीर्थस्थल के रूप मे उल्लेख

पालिताना और सम्मेद शिखर के बाद यह जैनियों का प्रमुख तीर्थ हैं। पर्वत पर स्थित जैन मंदिर प्राचीन एवं सुंदर हैं। जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों की आराधना का विधान किया गया है जिसमें से 22 वे तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी [ अरिष्ठनेमी ] का केवल ज्ञान प्राप्ति व मोक्ष [ निर्वाण ] प्राप्ति स्थल ऐतिहासिक रूप से गिरनार पर्वत, जिला-जूनागढ़, राज्य-गुजरात से बताया गया है; जिस कारण उक्त पर्वत जैन धर्मानुयायियो  हेतु पवित्र व पूजनीय है | पुराणों के अनुसार श्री नेमिनाथ जी शौर्यपुर के राजा समुद्रविजय और रानी शिवादेवी के पुत्र थे। समुद्रविजय के अनुज (छोटे भाई) का नाम वसुदेव था जिनकी दो रानियाँ थीं—रोहिणी और देवकी। रोहिणी के पुत्र का नाम बलराम बलभद्र व देवकी के पुत्र का नाम श्रीकृष्ण था । इस तरह नेमिनाथ श्रीकृष्ण के बाबा(ताऊ) थे। [५][६][७][८][९][१०][११][१२]

उक्त पर्वत पर जैनों हेतु ऐतिहासिक रूप से आठ स्थल पूजनीय बताए गए हैं जिनमें से प्रथम पॉच स्थल टोंक कहा जाता है; द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ टोंक का उल्लेख उत्तर पुराण सर्ग ७२ श्लोक १८९-१९० में आचार्य गुणभद्र सुरी ( 741 ईसवी ) ने भी किया है |[१३]

पाँच टोक

प्रथम टोक

इस स्थल पर पांचवी सदी से सोलवीं सदी के श्वेतांबर/ दिगंबर  पंथ के 100 से अधिक मंदिर बने हुए हैं |[१४]

श्वेताम्बर जैन मंदिर समूह
गिरनार के जैन मन्दिर

पहाड़ की चोटी पर कई जैनमंदिर हैं। यहां तक पहुँचने के लिए 7,000 सीढ़ियाँ हैं। इनमें सर्वप्राचीन मंदिर गुजरात नरेश कुमारपाल के समय का बना हुआ है। दूसरा वास्तुपाल और तेजपाल नामक भाइयों ने बनवाया था। इसे तीर्थंकर मल्लिनाथ मंदिर कहते हैं। यह विक्रम संवत्‌ 1288 (1237 ई.) में बना। तीसरा मंदिर नेमिनाथ का है जो लगभग 1277 ई. में तैयार हुआ। यह सबसे अधिक विशाल एवं भव्य है। प्राचीन काल में इन पर्वतों की शोभा अपूर्व थी क्योंकि इनके सभामंडप, स्तंभ, शिखर, गर्भगृह आदि स्वच्छ संगमरमर से निर्मित होने के कारण बहुत चमकदार और सुंदर दिखते थे। अब अनेक बार मरम्मत होने से इनका स्वभाविक सौंदर्य कुछ फीका पड़ गया है।

दिगंबर जैन मंदिर समूह

द्वितीय टोक

मुनि अनिरुद्ध कुमार जी के चरण स्थित है।

तृतीय टोक

मुनि शंभू कुमार जी के चरण स्थित है।

चतुर्थ टोक

मुनि प्रदुम कुमार जी के चरण एवं पत्थर पर तीर्थंकर की प्रतिमा उत्कीर्ण है; जैन मन्यतानुसार ये श्री कृष्ण के पुत्र है।

पंचम टोक

तीर्थंकर नेमिनाथ जी का मोक्ष [ निर्वाण ] प्राप्ति स्थल, यहां नेमिनाथ जी के चरण स्थित है साथ ही पहाड़ी के पत्थर पर नेमिनाथ जी की प्रतिमा उत्कीर्ण है।

           (It has a small open shrine or pavilion over the footmarks or paduka of Neminatha cut in the rock, and was being ministered to by a naked ascetic. Beside it hung a heavy bell.- ‘’The Report on the Antiquities of Kathiawad and Kachha’’ 1874-75 -Mr. Burgess, page no-175)[२]

इस स्थल पर चरण के ऊपर चार खम्बों पर एक छतरी बनी हुई थी साथ ही इक शिलालेख स्थित था जिसमे उल्लेख था कि बूंदी (राजपूताना) के जैन अनुयायी द्वारा पर्वत की सीढ़ियों का निर्माण कार्य कराया गया है |[१५] (उक्त छत्री १९८१ मे आकाशीय बिजली से नष्ट हो गयी है।)

सहसावन

नेमिनाथ जी का केवल ज्ञान प्राप्ति स्थल; यहां नेमिनाथ जी के चरण स्थित है एवं एक भव्य  मंदिर निर्मित है |

राजुल की गुफा

यहां माता राजुल की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है[१६]; इनका विवाह भगवान नेमिनाथ से होने से पूर्व  ही नेमिनाथ जी को वैराग्य हो गया था जिस् कारण इन्होंने भी वैराग्य् धारण कर  इस स्थल पर साधना की है।

अंबामाता का मंदिर

Ambika Mata temple

यह मंदिर शक्तिरूप अंबिका देवी का मंदिर हैं।[१७] वह नीले वर्ण वाली, सिंह की सवारी करने वाली, आम्रछाया में रहने वाली दो भुजा वाली है। बायें हाथ में प्रियंकर नामक पुत्र के प्रेम के कारण आम की डाली को और दायें हाथ में अपने द्वितीय पुत्र शुभंकर को धारण करने वाली है। चूंकि अम्बिका जी हाथो मे आम्र वृक्ष धारण करती है जिस कारण इस मन्दिर के आस-पास आम्र वृक्ष लगाने की प्रथा पुरातन समय मे यहाँ थी।

अन्य स्थल

अन्य स्थलो मे चौबीस तीर्थंकरो के चरण (यह गौमुखी गंगा के परिसर मे स्थित है ) ,एवम पर्वत पर जगह-जगह पर स्थित तीर्थंकरो के चरण एवं पत्थरो पर तीर्थंकर की उत्कीर्ण प्रतिमाएं है |

साहित्यिक उल्लेख

  1. उत्तर पुराण-आचार्य गुणभद्र सुरी ( 741 ईसवी ) सर्ग-71, श्लोक 179-181
  2. तिलोयपण्ण्ती- आचार्य यतिवृषभ ( 176 ईसवी )-4/1206
  3. नाग कुमार चरित्र- महाकवि पुष्पदंत (10 वीं शताब्दी)
  4. निर्माण कांड - कवि श्री भैया भगवती दास (1741सवंत )    
  5. हरिवंश पुराण , आचार्य जिनसेन कृत् ( ईस्वी की आठवीं शताब्दी ), सर्ग-65, श्लोक 4-17
  6.  प्रभास पाटन से प्राप्त बेबिलोन के शासक नभश्चन्द्र का प्राचीन ताम्रपत्र,
  7. नेमिनाथ पुराण- ब्रह्मचारी नेमिदत्त कृत् ( ईस्वी 1528 ),
  8. आचार्य वीरसेन कृत धवला टीका ( ईस्वी की आठवीं शताब्दी )
  9. आचार्य मदन कीर्ति यतिपति की शासन चतुस्त्रिशतिका  (वि. स.1405 ),
  10. श्री शत्रुंजय महात्म्य ग्रंथ - श्री धनेश्वर सूरी कृत्,                                                                  

चित्र वीथिका

डी एच् साइक्स द्वारा १८६९ , फोटोग्राफर एफ नेलसोन द्वारा १८९० के दशक मे एवमं सोलंकी स्टूडियो द्वारा १९०० मे इस क्षेत्र की विस्तृत फोटोग्राफी की है जो ब्रिटिश लाइब्रेरी मे उपलब्ध है |[१८]

बाहरी कड़ियाँ

संन्दर्भ्

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  5. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  6. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  7. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  8. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  9. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  10. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  11. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  12. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  13. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  14. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  15. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  16. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  17. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  18. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।